
16वीं शताब्दी के आसपास कहीं से गंगा नदी से बहते हुए मां भगवती का मेढ़ तेतरी गांव के पास कलबलिया धार में आ गया था। उसी कालखंड में किसी रात तेतरी निवासी प्रीतम सौरया के स्वप्न में मां भगवती आकर बोली कि हमे उठाकर यहां से ले चलो। सुबह उठकर जब प्रीतम कलबलिया धार जाकर देखा तो वहां मेढ़ पड़ा हुआ था। तभी मेढ़ खोजते खोजते खरीक स्थित काजीकोरैया के बीस व्यक्ति वहां आ पहुंचे। वे लोग मेढ़ उठाकर यहां से ले जाने का प्रयास करने लगा किंतु मेढ़ टस से मस नहीं हुआ। तेतरी गांव के प्रीतम सौरेया सहित पांच व्यक्ति मेढ़ को उठाकर तेतरी ले आए। प्रीतम मेढ़ को अपने घर ले जाने के प्रयास में थे। किंतु उस स्थान से मेढ़ आगे नहीं बढ़ रहा था। मजबूरन मेढ़ को वहीं रखना पड़ा। उसी स्थान पर मेढ़ रखकर मंदिर की स्थापना की गई। उसी समय मंदिर की स्थापना की गई। यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में जाना जाने लगा है। जो भी भक्त यहां स्वच्छ मन से मन्नतें मांगते है, उनकी मुरादें पुरी होती है।