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स्कूली बच्चों ने जाना गरुड़ संरक्षण का महत्व, देखा कछुआ रेस्क्यू सेंटर भी

स्कूली बच्चों ने जाना गरुड़ संरक्षण का महत्व, देखा कछुआ रेस्क्यू सेंटर भी 
नव-बिहार समाचार, भागलपुर। ढोलबज्जा के रेसिडेंशियल मॉडर्न इंग्लिश स्कूल के छात्र-छात्राओं को पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, वन प्रमंडल, भागलपुर की ओर से शहर के सुंदरवन में गरुड़ जागरूकता अभियान के तहत गरुड़ सेवा व पुनर्वास केंद्र का अवलोकन कराया गया। स्कूली बच्चों को गरुड़ के संरक्षण के बारे में मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने प्रोजेक्टर से कई महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। बच्चों को बिहार-झारखंड का एकमात्र कछुआ रेस्क्यू सेंटर भी दिखाया गया। मौके पर पशु-पक्षी प्रेमी मुकेश चौधरी, गौरव सिन्हा, वतनए पक्षी पालक अख्तर, मुमताज सहित वनरक्षी अनुराधा सिन्हा, वनरक्षी प्रियंका कुमारी, गरुड़ सेवियर्स प्रशांत कुमार कन्हैया, स्कूल के निदेशक कुमार रामानंद सागर, शंभु कुमार सुमन, गरुड़ सेवियर्स दीपक कुमार, विनय कुमार, सुकुमल कुमार सोनी सहित कई पर्यावरण प्रेमी उपस्थित थे। 
2006 से गरुड़ संरक्षण के लिए कार्य करने वाले मंदार नेचर क्लब के संस्थापक ने विस्तार पूर्वक बताया कि हमने इस प्रजाति को बचाने के लिए लोगों को गरुड़ पुराण से खेती तक में इनके महत्व को समझाया है। हर टोले के लोगों को जोड़ा, हमने हर टोले से गरुड़ सेविअर, गरुड़ गार्जियन और गरुड़ सेविका जैसे सक्रिय सदस्य बनाये, जो हमारे नेटवर्क की तरह काम करते हैं. अरविंद मिश्रा ने बच्चों को बताया कि भागलपुर जिले के दियारा क्षेत्र के गांवों में शुरू से ऐसा नहीं था। गरुड़ पक्षी को लेकर कई भ्रांतियां थीं। वर्ष 2006 से पहले लोग दियारा क्षेत्र में जाने से डरते थे। 2006 में इन्हें इस जगह पर गरुड़ों के होने की खबर लगी। साल के नौ महीने यहां गरुड़ का ठिकाना रहता है।
 इस कार्य में जय नंदन मंडल की बड़ी भूमिका रही है। अरण्य विहार के वन्य जीव चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संजीत कुमार ने स्कूली बच्चों को बताया कि भागलपुर जिले के कंदवा दियारा में भोजन की पर्याप्त उपलब्धता व मौसम अनुकूल होने से यहां गरुड़ों की संख्या बढ़ रही है। कंबोडिया व भारत के असम राज्य में गरुड़ों की संख्या घट रही है।