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बाढ़ पीड़ितों का सहारा बना रेल लाइन का किनारा


अनुमंडल में लगातार बढ़ रहे कोसी नदी के जलस्तर से सहोड़ा मदरौनी सधुआ इत्यादि गाँवों के हजारों लोग प्रभावित हो चुके हैं। जिनमें से मदरौनी गांव के अधिकांश लोग अपने ही घरों में पानी के बीच फंसे हुए हैं। लेकिन सहोड़ा और सधुआ गांव के लगभग लोग घरों को छोड़कर रेल लाइन किनारे खुले आसमान के नीचे तथा कटरिया स्टेशन के दोनों प्लेटफार्म पर पिछले चार पांच दिनों से अपनी शरणस्थली बनाये हुए हैं। जहां अब तक कोई भी सरकारी पदाधिकारी अथवा कर्मचारी ने कोई सुध बुध नहीं ली है।

सधुआ गांव के अरूण कुमार सिंह जो पिछले चार पांच दिनों से कटरिया स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर अपने चार भाइयों के परिवार और बच्चों के साथ गुजारा कर रहे हैं ने बताया कि 17 अगस्त की शाम से ही सहोड़ा और मदरौनी की तरफ से गांव में पानी आना शुरू हो गया था। घर द्वार झोपड़ी सब गिर गया। किसी तरह से जरुरत का थोड़ा सामान रात के 12 बजे तक स्टेशन पर ला सके। बांकी सारा सामान वहीं रह गया था। जिसका कोई अतापता नहीं है। इसकी सूचना गांव के मुखिया पति दिलीप सिंह को दे दी है। इसके बावजूद अब तक न तो कोई सरकारी कर्मचारी या पदाधिकारी आया है और न ही किसी तरह की राहत मिली है।

इसके अलावा इसी प्लेटफार्म पर रह रहे छात्र सूरज कुमार बिट्टू कुमार राकेश कुमार अजीत कुमार पीताम्बर कुमार इत्यादि ने बताया कि गांव की महावीर सिंह मदरौनी उच्च विद्यालय चापरहाट और मध्य विद्यालय तथा प्राथमिक विद्यालय चापरहाट में भी पानी आ गया है। इसके साथ ही दुर्गा स्थान के समीप गांव जाने वाली सड़क पर से पानी बह रहा है। जिससे यूको बैंक चापरहाट शाखा जाने में भी ठेहुना भर पानी से गुजरना पड़ रहा है।
ठीक इसी तरह की बात कटरिया स्टेशन के प्लेटफार्म पर बच्चों और पशुओं के साथ जिंदगी जी रहे सधुआ निवासी मो0 सफी आजम अवधेश सिंह फूलो देवी रंजीत सिंह रामाधीन सिंह भी बताते हैं। इन लोगों ने यह भी कहा कि अब तक सिर्फ कांग्रेस नेता शीतल सिंह आये थे। जिसने बीडीओ और सीओ से बात कर जानकारी देने की बात कही थी। इसके बाद भी अब तक कुछ भी नहीं मिला है।
सहोड़ा के बिनोद सिंह पवन सिंह सहित दर्जनों बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि 1987 से ही हमारी बस्ती के लोगों के नशीब में रहने के लिए गांव नहीं रेलवे लाइन का किनारा ही लिखा है। 1987 में आई प्रलयंकारी बाढ़ से पूरा गांव ही विलीन हो गया था। तब से पुरानी रेल लाइन पर गुजर बसर कर रहे थे। इस बार उसपर भी संकट आ गया तो चालू रेल लाइन के किनारे आकर रहना पड़ रहा है। जहां अब तक किसी के द्वारा किसी भी तरह की राहत सामग्री अथवा सुखा राशन इत्यादि कुछ भी नहीं मिला है।