सियासत में इसे महज संयोग कहा जाए या फिर पूर्व नियोजित कार्यक्रम कि महाराष्ट्र में लंबे समय से चल रहे दो अहम राजनीति गठबंधन गुरुवार को खत्म हो गए। भाजपा ने जहां शिवसेना के साथ 25 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ दिया वहीं राकांपा ने कांग्रेस एवं राज्य में सरकार से भी अलग होने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई है।
महाराष्ट्र में आगामी 15 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में अब चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना प्रबल हो गयी है। भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन तोड़ने की घोषणा की क्योंकि सीट बंटवारे को लेकर वार्ता असफल हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिवसेना छोटी सहयोगियों के लिए सीटें छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई और पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे कथित तौर पर मुख्यमंत्री पद को लेकर अडे हुए थे।
सबसे पहले भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने की खबर आयी जो शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे और भाजपा नेताओं प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के प्रयासों से बना था और जो समय की कसौटी पर खरा उतरा। यह गठबंधन इसलिए टूटा क्योंकि कई दौर की वार्ता के बावजूद सीट बंटवारे को लेकर कोई हल नहीं निकल पाया।
इसके बाद नम्बर राकांपा का था जो कि संप्रग में कांग्रेस की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी थी। राकांपा ने 15 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ने की घोषणा की और इसके लिए मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया। राकांपा ने इसके साथ ही सरकार से समर्थन वापसी की भी घोषणा कर दी। वैचारिक स्तर पर दो हिन्दुत्व समर्थक पार्टियों शिव सेना और भाजपा ने अपने और कुछ छोटी पार्टियों के लिये कई दिनों तक सीटों के बंटवारे के मसले पर बातचीत की । हालांकि कांग्रेस और रांकापा का गठबंधन दोनों ओर से रूखेपन के कारण टूटा ।
गत लोकसभा चुनावों के परिणाम से उत्साहित भाजपा ने सीटों की अपनी मांग थोडी उंची करते हुये 135 सीटें देने की मांग की थी जिसे शिवसेना मानने को तैयार नहीं हुई। शिवसेना भाजपा को वही 119 सीटें देने पर तैयार थी जिस पर भाजपा पूर्व में चुनाव लड़ चुकी थी हालांकि बाद में शिवसेना कुछ और सीटें देने पर राजी हो गयी थी। भाजपा ने बाद में अपनी मांग को कम करते हुये 130 सीटें देने को कहा लेकिन इस पर भी दोनों पार्टियों में समझौता नहीं हो सका। महाराष्ट्र में पार्टी के प्रभारी राजीव प्रताप रूडी ने आरोप लगाया कि शिवसेना के अड़ियल दृष्टिकोण के चलते गठबंधन टूटा। इन घटनाक्रमों से महाराष्ट्र में राजनीतिक परिदृश्य में नाटकीय बदलाव आया है जहां पहले दो धड़े हुआ करते थे- शिवसेना-भाजपा और कांग्रेस-राकांपा।
वरिष्ठ भाजपा नेता एवं विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा, ‘25 वर्ष तक चलने वाला शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया है।’ फड़नवीस ने शिवसेना पर सीट बंटवारे को लेकर लचीला नहीं होने का आरोप लगाया। उन्होंने विस्तृत जानकारी दिये बिना कहा, ‘आज वे एक और प्रस्ताव के साथ आये लेकिन कहा कि चर्चा एक निश्चित संख्या के आगे नहीं बढ़ सकती।’ ऐसी जानकारी मिली कि शिवसेना 151 सीटों के अपने हिस्से को कम करने को तैयार नहीं थी जिसकी घोषणा उद्धव ने कुछ दिनों पहले अपने ‘अंतिम’ पेशकश के तौर पर की थी।
फड़नवीस और खडसे ने कहा कि भाजपा छोटी पार्टियों जैसे स्वाभिमान शेतकारी संगठन और राष्ट्रीय समाज पक्ष के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। फड़नवीस ने कहा, ‘हमने आरएसपी और एसएसएस के साथ सीट बंटवारा तय कर लिया है। इसी तरह से हमने शिवसंग्राम के साथ भी कर लिया है।’ राष्ट्रीय समाज पार्टी (आरएसपी), स्वाभिमान शेतकारी संगठन (एसएसएस) और मराठा नेता विनायक मेते नीत शिव संग्राम गठबंधन का हिस्सा हैं और उनका महाराष्ट्र के हिस्सों में प्रभाव हैं।
चुनाव बाद परिदृश्य में शिवसेना के लिए एक विकल्प खुला छोड़ते हुए भाजपा नेताओं ने कहा कि वे चुनाव प्रचार के दौरान उसकी आलोचना नहीं करेंगे और ‘मित्र’ रहेंगे। यद्यपि गठबंधन टूटने के तत्काल बाद शिवसेना ने अपनी पूर्व सहयोगी भाजपा पर तीखा हमला करते हुए कहा, ‘यह घटनाक्रम भाजपा और शरद पवार नीत राकांपा के बीच मौन सहमति का परिणाम है।’
शिवसेना सांसद आनंद अदसुल ने कहा, ‘भाजपा और राकांपा के बीच एक गुप्त समझौता हुआ है। भाजपा का गठबंधन तोड़ने का नतीजा उसी का परिणाम है।’ उद्धव के पुत्र आदित्य ने गठबंधन टूटने पर प्रतिक्रिया में कहा, ‘बहुत दुख की बात है कि प्रदेश भाजपा ने 25 वर्ष पुराने शिवसेना के साथ गठबंधन तोड़ने का निर्णय किया जबकि हम उनके बुरे दिनों में भी बिना शर्त उनके साथ रहे।’