रेल बजट 8 जुलाई को पेश किया जाएगा, जबकि आम बजट 10 जुलाई को। अच्छे दिन लाने का वादा कर चुके नरेंद्र मोदी लोगों की उम्मीदों पर कैसे खरे उतरेंगे, सभी की नजर इस पर टिकी हुई है। हालांकि, रेल बजट से पहले ही किराए में 14 पर्सेंट से ज्यादा का इजाफा करके मोदी सरकार ने आम आदमी को पहला झटका दे दिया है। मोदी यह भी कह चुके हैं कि कुछ कड़े फैसले लेने होंगे। ऐसे में बजट में जनता की उम्मीदों का क्या होगा यह बजट आने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल हम बात करते हैं बजट से जनता की कुछ स्वाभाविक और मूलभूत उम्मीदों और उन्हें पूरा करने को लेकर सरकार की चुनौतियों व संभावनाओं के बारे में:
1. यात्री सुविधाएं
उम्मीदें: रेल में कम किराये की उम्मीदें टूटने के बाद भी बहुत सारे आम भारतीयों की राय है कि यात्री सुविधाओं में बेहतरी होती है तो वे बढ़े किराए का बोझ सहने के लिए तैयार हैं। किराया बढ़ने के बाद सरकार भी कह चुकी है कि वह यात्री सुविधाओं में इजाफा करेगी। इसलिए बजट से पहले ये सवाल प्रमुखता से उठने लगे हैं- क्या ट्रेनें वक्त पर चलेंगी? क्या ट्रेन में बेहतर साफ-सफाई के इंतजाम होंगे? क्या ट्रेन में खान-पान की बेहतर सुविधा बहाल होगी? क्या टिकट के दलालों से लोगों को मुक्ति मिलेगी? स्टेशनों पर पीने का साफ पानी आसानी से सुलभ हो पाएगा? क्या अासानी से रिजर्वेशन मिल सकेगा? इन सवालों में उन समस्याओं का जिक्र है, जिन्हें साबित करने के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है। ट्रेन से सफर करने वाला हर आम आदमी हर रोज इन समस्याओं से दो-चार हो रहा है।
उम्मीदें: रेल में कम किराये की उम्मीदें टूटने के बाद भी बहुत सारे आम भारतीयों की राय है कि यात्री सुविधाओं में बेहतरी होती है तो वे बढ़े किराए का बोझ सहने के लिए तैयार हैं। किराया बढ़ने के बाद सरकार भी कह चुकी है कि वह यात्री सुविधाओं में इजाफा करेगी। इसलिए बजट से पहले ये सवाल प्रमुखता से उठने लगे हैं- क्या ट्रेनें वक्त पर चलेंगी? क्या ट्रेन में बेहतर साफ-सफाई के इंतजाम होंगे? क्या ट्रेन में खान-पान की बेहतर सुविधा बहाल होगी? क्या टिकट के दलालों से लोगों को मुक्ति मिलेगी? स्टेशनों पर पीने का साफ पानी आसानी से सुलभ हो पाएगा? क्या अासानी से रिजर्वेशन मिल सकेगा? इन सवालों में उन समस्याओं का जिक्र है, जिन्हें साबित करने के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है। ट्रेन से सफर करने वाला हर आम आदमी हर रोज इन समस्याओं से दो-चार हो रहा है।
चुनौतियां: रेलवे के पास पैसे और बुनियादी ढांचे की भारी कमी है और पैसे जुटाने का कोई ठोस उपाय अब तक सामने नहीं आया है। राजनीतिक मजबूरियों के चलते अब फिलहाल किराया बढ़ाना भी आसान नहीं होगा (बजट से पहले ही यात्री किराया 14.2 फीसदी बढ़ाया जा चुका है)। 2006 से 2011 के दौरान रेलवे मात्र 1750 किमी लंबी लाइन ही बिछा सका है। जबकि, चीन में इस दौरान 4000 किमी नई लाइन बिछ गई और दस हजार किलोमीटर लंबी हाई-स्पीड लिंक्स भी काम करने लग गई। यहां बजट में हर साल नई ट्रेनों का एलान हो जाता है, लेकिन उन्हें चलाने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचों के विकास की रफ्तार सुस्त ही रहती है।
2. ट्रेन में सुरक्षा
4 मई 2014: महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में एक पैसेंजर ट्रेन के इंजन और 6 बोगियां पटरी से उतरने की वजह से कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई।
17 फरवरी 2014: नासिक जिले में इगतपुरी के करीब एक ट्रेन के दस कोच पटरी से उतर गए जिसमें 3 यात्रियों की मौत हो गई, जबकि 37 घायल हो गए।
8 जनवरी 2014: बांद्रा-देहरादून एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में लगी आग के कारण 4 लोग जलकर, जबकि 5 की दम घुटने से मौत हो गई।
उम्मीदें: ये तो बस बड़े उदाहरण हैं। बहुत सारे छोटे- मोटे मामले खबरें भी नहीं बनतीं। ट्रेनों की सेफ्टी एक बड़ा मुद्दा है। ऐसे में आम जनता यही चाहेगी कि रेलवे सेफ्टी पर विशेष जोर दे। वहीं, ट्रेन में सफर करने के दौरान यात्रियों की सुरक्षा भी अहम मुद्दा है। आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच साल में ट्रेनों में होने वाले अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है। सिर्फ रेप की बात करें तो 2009 में 27 के मुकाबले 2013 में 54 मामले सामने आए। आम जनता को उम्मीद है कि रेल बजट में यात्रियों की सुरक्षा को लेकर नए प्रावधान जरूर शामिल किए जाएंगे।
चुनौतियां: 18 672 रेलवे क्रॉसिंग में से 12582 बिना गार्ड के हैं। स्टेशनों पर सीसीटीवी लगाना, यात्रियों और सामान की स्क्रीनिंग की दुरुस्त व्यवस्था बहाल करना आदि योजनाएं पूरी नहीं हो पा रहीं। ट्रेन में रेल यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले आरपीएफ और जीआरपी में जवानों की कमी, जीआरपी का नियंत्रण राज्य सरकारों के अधीन होने के चलते तालमेल की समस्या जैसी चुनौतियों के चलते ट्रेनों में बढ़ते अपराध को रोकना मुश्किल हो रहा है।
3. टैक्स स्लैब
उम्मीदें: दस जुलाई को पेश होने वाले आम बजट से नौकरीपेशा कर्मचारियों को मोदी सरकार से उम्मीद है कि वे उन्हें इनकम टैक्स में छूट देंगे। आयकर छूट की सीमा मौजूदा दो लाख रुपए से थोड़ा बढ़े, ताकि बढ़ती महंगाई से कुछ हद तक निपटा जा सके। आयकर अधिनियम की धारा 80 (सी) के तहत मिलने वाली छूट की सीमा भी थोड़ी बढ़ाई जाए, ताकि बचत को बढ़ावा मिले। एक्साइज और कस्टम्स जैसे अप्रत्यक्ष करों में ज्यादा बदलाव नहीं हो।
उम्मीदें: दस जुलाई को पेश होने वाले आम बजट से नौकरीपेशा कर्मचारियों को मोदी सरकार से उम्मीद है कि वे उन्हें इनकम टैक्स में छूट देंगे। आयकर छूट की सीमा मौजूदा दो लाख रुपए से थोड़ा बढ़े, ताकि बढ़ती महंगाई से कुछ हद तक निपटा जा सके। आयकर अधिनियम की धारा 80 (सी) के तहत मिलने वाली छूट की सीमा भी थोड़ी बढ़ाई जाए, ताकि बचत को बढ़ावा मिले। एक्साइज और कस्टम्स जैसे अप्रत्यक्ष करों में ज्यादा बदलाव नहीं हो।
अभी तक इनकम टैक्स छूट का जो दायरा है, वो अधिकतम 2 लाख सालाना तक की कमाई पर है। 2 लाख से 5 लाख सालाना कमाई पर 10 पर्सेंट, 5 लाख से 10 लाख सालाना आमदनी पर 10 पर्सेंट जबकि इससे ऊपर कमाई होने पर 30 प्रतिशत इनकम टैक्स का प्रावधान है। यूपीए सरकार ने 2013 में सुपर रिच श्रेणी के लोगों से एक्स्ट्रा सरचार्ज भी लेने का फैसला किया। मोदी के सत्ता में आने के बाद इस बात की उम्मीद बंधी थी कि वह इनकम टैक्स छूट के स्लैब में बदलाव करके बहुत सारे लोगों को राहत पहुंचाएंगे, लेकिन हालिया दिनों में सरकार की ओर से उठाए गए कड़े कदमों की वजह से लोगों की नजरें अब आम बजट की ओर टिक गई हैं।
संभावनाएं: चुनाव के दौरान आयकर हटा कर बैंक ट्रांजैक्शन टैक्स लगाने की चर्चा भी चली थी। पर वित्त मंत्री अरुण जेटली अब इस राय के पक्ष में नहीं बताए जाते हैं। उनका कहना है कि इस व्यवस्था से अमीर-गरीब, सभी पर लगभग एक जैसा ही कर का बोझ पड़ेगा। यह एक तथ्य है कि जितना इनकम टैक्स वसूला जाता है उसका 60 प्रतिशत केवल चार लाख लोग देते हैं। वेतनभोगी लोगों को अमेरिका, चीन की तुलना में भी ज्यादा टैक्स देना पड़ता है। जबकि, अगर कोई किसान लखपति भी है तो उसे टैक्स नहीं देना पड़ता है। और, कारोबारी तरह-तरह के हथकंडों से टैक्स बचा लेते हैं। ऐसे में टैक्स व्यवस्था में बदलाव की भारी जरूरत है।
टैक्स से जुड़े कुछ प्रावधान बदलने की जरूरत है। उदाहरण के लिए हाउसिंग लोन पर दिए जाने वाले ब्याज पर टैक्स छूट की सीमा 2001 से नहीं बदली गई है, जबकि इस दौरान प्रॉपर्टी की कीमतें तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई हैं।
इनकम टैक्स की दर में कमी से लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे बढ़ेंगे, जो अर्थव्यवस्था के कई सेक्टर (मसलन, ऑटो) को तेजी देने में मददगार साबित होगा।
4. महंगाई पर काबू
उम्मीदें: मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद थोक महंगाई दर में बढ़ोतरी दर्ज की गई। मई में थोक महंगाई दर बढ़कर 6.01 फीसदी हो गई। वहीं अप्रैल में थोक महंगाई दर 5.2 फीसदी रही थी। मई में थोक महंगाई दर, दिसंबर 2013 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इसके अलावा, खाने-पीने की चीजों में भी मई में काफी तेजी आ गई है। उधर रिजर्व बैंक ने इशारा किया है कि वर्तमान हालात को देखते हुए ब्याज दरों में छूट देना मुमकिन नहीं हो सकेगा। आम जनता को आंकड़ों से मतलब नहीं है। जनता चाहती है कि मोदी महंगाई दूर करने के अपने चुनावी वादे को पूरा करें और बजट में वे सभी प्रावधान शामिल करें, जिससे लोगों को महंगाई से तुरंत राहत मिले।
चुनौतियां: महंगाई दर बढ़ रही है। इराक संकट से स्थिति और गंभीर होने की आशंका है। रेलवे द्वारा माल भाड़ा बढ़ाए जाने से भी महंगाई बढ़ने का डर है। राजकोषीय घाटा (सरकार के खर्च और आमदनी का अंतर) खतरनाक स्तर तक है। 2013-14 में यह 4.5 फीसदी था। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी का कहना है कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दे सकता है। सरकार को नई योजनाओं को पूरा करने के लिए पैसे चाहिए। इन स्थितियों के मद्देनजर महंगाई पर काबू रख पाना बड़ी चुनौती होगा।