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खास खबर: बिहार में मोती की खेती


बेगूसराय। बिहार में जहाँ ज्यादातर मक्का और गेहूं की खेती होती है कभी कभार गांजे या अफीम की खेती सुनी जाती है। वहीं मोती की खेती
सुनकर असंभव सा लगता है, लेकिन यह सच है. यहां के किसान अब मोती पैदा कर रहे हैं. इससे फायदा भी खूब है. सही से इसकी खेती की जाए तो लाखों कमाया जा सकता है. बेगूसराय के किसान जयशंकर ने सीप पालन या यों कहिए कि मोती की खेती कर एक मिसाल कायम की है. जयशंकर अब एक रोल मॉडल बन चुके हैं. उनके लिए जो पारम्परिक खेती को कोसते रहते हैं. अब वक्त बदल चुका है. कुछ नया करने का टाइम है. जयशंकर जैसे किसानों से सीख लेने की जरूरत है.
जयशंकर को कृषि के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई इनामों से नवाजा गया. लोग जयशंकर की प्रतिभा का लोहा मान चुके हैं. मोती की खेती जमीन पर नहीं बल्कि पानी के भीतर की जाती है. इसकी खेती के लिए किसान जयशंकर ने स्वयं एक छोटे से तालाब का निर्माण किया, जिसमें सीप पालन के जरिए हजारों की संख्या में मोती तैयार किए जा रहे हैं. आज जयशंकर के पास तालाब से निकाले गए कई दुर्लभ मोती हैं.
तालाब में मोतियों का उत्पादन कर जयशंकर नाम के साथ-साथ अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. सीप के जरिए मोती का उत्पादन करने के कारण अब आस-पास के लोग जयशंकर को सीप का डॉक्टर भी कहने लगे हैं. उन्‍होंने प्रदेश के लिए कृषि में नए रास्ते खोल दिए हैं, जिससे पारंपरिक खेती के साथ ही गैर-पारंपरिक खेती के जरिए मुनाफा कमाने का रास्ता साफ हो गया है.
मोती उत्पादन पर बात करते हुए जयशंकर बताते हैं कि इसकी शुरुआत के दौरान लोगों ने काफी मजाक बनाया और उन्हें पागल तक कहा, क्योंकि घोंघा सितुआ को हमारे समाज में काफी उपेक्षा से देखा जाता है. एक कहावत प्रचलित है कि सीप के मुंह में स्वाति नक्षत्र की बूंदें जाती हैं, तो मोती बन जाता है. ये पर्ल फार्मिंग उसी क्रिया पर आधारित है. बिहार के पानी में मोती उत्पादन की काफी संभावनाएं हैं, लेकिन सरकार को भी इसकी ओर ध्यान देना होगा.