ताजा समाचार :

6/Posts/ticker posts

अखबारी लाल का मोटा चश्मा : हिन्दी का टूट रहा है हाथ पाँव


अखबारी लाल। 
जय हो भैया अखबारी लाल की। आज तो अखबारी लाल का मोटा चश्मा कहीं छुट गया था। फिर भी अखबार पढ़ने की आदत है कि जाती नहीं, सो एक अखबार हाथ में ले ही लिया। पलटते हुए जब पहुंचा छठे पेज पर तो बिना चश्मे के ही मोटे मोटे अक्षरों में छपा समाचार देखा तो लगा कि जहां एक ओर लोग हिन्दी का पखवाड़ा मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हिन्दी अखबार द्वारा हिन्दी का हाथ पाँव टूट रहा है अथवा तोड़ा जा रहा है। जबकि हिन्दी अखबार तो हिन्दी के रचयिता और संरक्षक होते हैं। जिससे नयी पीढ़ी के छात्र हिन्दी सीखते भी हैं। अखबारी लाल तो सोचता ही रह गया कि इस तरह की हिन्दी परोसने से हिन्दी के साथ साथ हिन्द का अगला भविष्य कैसा होगा।

अखबारी लाल बताते हैं कि यह हाल किसी दूसरे का नहीं है, देश के नम्बर वन अखबार कहे जाने वाले दैनिक जागरण के भागलपुर से प्रकाशित नगर संस्करण का है । जिसके पेज नम्बर छह पर छापे समाचारों का शीर्षक ही लग रहा है कि हिन्दी का हाथ पाँव तोड़ रहा है। अब आप ही पढ़ कर बताइये “सधुआ के बाढ़ पीड़ितों को मिला राहत सामग्री” , “ गणपति बप्पा की जयकारा से गूंजा शहर” , “नाथगर प्रखंड पर भैंसों का कब्जा” इन शीर्षकों को पढ़ने से कैसा लग रहा है। अगर इनकी जगह “सधुआ के बाढ़ पीड़ितों को मिली राहत सामग्री”, “गणपति बप्पा के जयकारों से गूंजा शहर”, “नाथनगर प्रखंड पर भैंसों का कब्जा” छापा जाता तो छापने वाले का कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन हिन्दी के हाथ पाँव सही सलामत रह जाते।  

तब तक कुछ ही देर में एक भाई साहब आ गये । संयोगवश जिनके पास भी एक मोटा चश्मा था। मैंने अखबार पढ़ने के लिये उनसे चश्मा मांग लिया। उन्होने कहा कि लाओ मैं ही पढ़ कर सुना देता हूँ। शुरू किया इसी पेज का पहला मुख्य समाचार। जिसके दो तीन वाक्य पढ़ने के बाद ही बोल बैठे अखबारी लाल यह अखबार है या और कुछ। जिसमें छपा था - शौचालय की टंकी टूटा हुआ है। इसी समाचार में आगे छपा था - कई पंखा खराब होकर दिखावा बनकर रह गई है। बस क्या था न तो उसने अखबार पढ़ा और न ही मैं अखबार पढ़ सका। बेचारा अखबारी लाल अखबार की खबर को तरसता ही रह गया।