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विवाह पंचमी : 4 दिसंबर विशेष

विवाह पंचमी के शुभ दिन ही त्रेतायुग में श्रीराम और मां सीता का विवाह हुआ था। यह दिन हमें गृहस्थ जीवन की महत्ता से परिचित करवाता है और बताता है कि पति और पत्नी का संबंध
समर्पण और त्याग से महान बनता है। इस दिन व्रत रखकर राम और सीता से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए ताकि दांपत्य जीवन में प्रसन्नता बनी रहे।
भगवान राम और मां जानकी का विवाह जनकपुरी से 14 किमी दूर उत्तर धनुषानामक स्थान पर हुआ था जो वर्तमान में नेपाल में स्थित है। बताया जाता है कि उत्तर धनुषा में ही श्रीराम ने धनुष तोड़ा था। विवाह पंचमी के अवसर पर यहां दर्शनार्थियों का तांता लगता है।
भगवान के अवतार राम और कृष्ण ने भी विवाह किया। भगवान राम ने विवाह से पूर्व धनुष तोड़ा और विद्वान कहते हैं कि उन्होंने अहंकार रूपी धनुष को तोड़ा। यह प्रतीकात्मक है। जब दो लोग एक बंधन में बंधते हैं तो उन्हें सबसे पहले अहंकार से मुक्ति पाना चाहिए क्योंकि कोई भी संबंध बिना अहंकार के ही आगे बढ़ता है।
इसलिए मनाते हैं विवाह पंचमी
विवाह पंचमी यानी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर अयोध्या के राजकुमार श्रीराम और जनकपुर की राजकुमारी सीता का विवाह हुआ था। भगवान राम ने शिव धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई और सीताजी का स्वयंवर जीतकर उनसे विवाह किया था।
विवाह पंचमी का उत्सव उत्तर भारत, मिथिलांचल और नेपाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। जो दंपति अपने वैवाहिक जीवन को सुचारू रूप से चलाना चाहते हैं और खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं उन्हें विवाह पंचमी का व्रत करना चाहिए।
जिस तरह श्रीराम ने मर्यादा का पालन करके पुरुषोत्तम का पद पाया, तो माता सीता ने संसार के समक्ष पतिव्रता होने का सर्वोपरि उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पावन दिन सुखी दांपत्य की कामना से लोग श्रीराम-सीता का आशीर्वाद पाते हैं। हर वर्ष अगहन मास की शुक्ल पंचमी को राम मंदिरों में विशेष उत्सव मनाया जाता है।
विवाह पंचमी के इस प्रसंग के जरिए हम गृहस्थ जीवन की उपयोगिता और उसकी महत्ता से परिचित होते हैं। श्रीराम और मां सीता के जरिए हम सभी यह जान पाते हैं कि स्त्री और पुरुष को सुख-दुख में एकदूसरे का साथ देना चाहिए और एक-दूसरे के सम्मान के लिए किसी भी तरह के त्याग के लिए तैयार रहना चाहिए।
कहीं-कहीं यह प्रश्न उठता है कि श्रीराम ने मां सीता का त्याग करके उन्हें कष्ट दिए लेकिन इस प्रश्न के उत्तर में विद्वान बताते हैं कि श्रीराम ने सीता को लंका से वापस लाने के लिए लंबा सफर तय भी किया। दरअसल रामायण या राम और सीता की कथा आदर्श दांपत्य जीवन का अनुपम उदाहरण है। यह कथा बताती है कि स्त्री और पुरुष को अपना धर्म किस समर्पण के साथ निभाना चाहिए। अपने इस महत्तम अर्थ में यह कथा सभी के सामने आदर्श उपस्थित करती है।
श्रीराम के मंगलमय विवाह में अंतर
प्रभु राम ने मां जानकी के साथ विवाह रचाकर विवाह संस्कार के महत्व को भी सामने रखा है। तुलसीदासजी लिखते हैं, श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्ना समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया है। एक तरह से श्रीराम ने बताया कि विवाह किस तरह जीवन में व्यवस्था लाता है और उसमें हमारे कर्तव्य क्या होते हैं। हर स्त्री अपने पति में प्रभु राम समान गुणों की इच्छा रखती है और हर पुरुष मां सीता जैसी पत्नी का आकांक्षा रखता है।
श्री रामकिंकर जी महाराज ने राम विवाह की व्याख्या अत्यंत सुंदर ढंग से की है। वे लिखते हैं, संसार के विवाह और श्रीराम के मंगलमय विवाह में अंतर क्या है? यह जो भगवद् रस है, वह व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाता है और बाहर से भीतर जाना जीवन में परम आवश्यक है।
व्यवहार में भी आप देखते हैं, अनुभव करते हैं कि जब तीव्र गर्मी पड़ने लगे, धूप हो तो आप क्या करते हैं? बाहर से भीतर चले जाते हैं।
वर्षा में भी आप बाहर से भीतर चले जाते हैं, अर्थात बाहर चाहे वर्षा या धूप हो, घर में तो आप सुरक्षित हैं। इसी प्रकार जीवन में भी कभी वासना के बादल बरसने लगते हैं, क्रोध की धूप व्यक्ति को संतप्त करने लगती है, मनोनुकूल घटनाएं नहीं घटती हैं, ऐसे समय में अगर हम अंतर्जगत में, भाव राज्य में प्रविष्ठ हो सकें तो एक दिव्य शीतला, प्रेम और आनंद की अनुभूति होगी।
भगवान श्रीराम के विवाह को हम अन्तरहृदय में देखें, ध्यान करें, लीला में स्वयं सम्मिलित हों, इस विवाह का उद्देश्य है।