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BHAGALPUR: मोहन भागवत ने स्वयं सेवकों को दिया संदेश- नए स्वयं सेवक तैयार कर शाखाओं की संख्या बढ़ाएं

BHAGALPUR: मोहन भागवत ने स्वयं सेवकों को दिया संदेश- नए स्वयं सेवक तैयार कर शाखाओं की संख्या बढ़ाएं 
नव- बिहार समाचार, भागलपुर। राष्ट्रीय स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भागलपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवकों को साफ संदेश दिया है कि वे समाज से जुड़े रहें। मिलने- जुलने का कार्यक्रम भी करते रहें। समाज के हर वर्ग के लोगों तक अपना संदेश देते रहें। शाखा के माध्यम से नए स्वयंसेवक तैयार करें और शाखाओं की संख्या भी बढ़ाएं। उन्होंने नसीहत दी कि विवाद से जुड़े मसलों पर अनावश्यक चर्चा करने के बजाय राष्ट्र निर्माण को लेकर बातें करें। यह ज्यादा बेहतर होगा। ये बातें उन्होंने खलीफाबाग चौक स्थित आनंदराम ढांढनियां स्कूल में शुक्रवार को परिवार मिलन कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवकों से बातचीत में कहीं। परिवार मिलन कार्यक्रम में स्वयंसेवकों से परिचय लेने के दौरान उन्होंने कहा कि जिनके मन में जो सवाल उठ रहे हैं, वह पूछ सकते हैं। एक स्वयंसेवक ने उनसे पंडितों द्वारा लोगों को जातियों व अलग-अलग वर्गों में बांटने के उनके बयान पर सवाल पूछा। इस पर भागवत ने कहा कि मैंने कभी ब्राह्मण शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। मैंने पंडित शब्द का उच्चारण किया था। यह किसी भी जाति का हो सकता है। पंडित उसे कहते हैं जो बुद्धिमान है। वह किसी भी जाति का हो सकता है।

भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा कि केवल काम नहीं, बल्कि काम का उदाहरण भी पेश करते रहिए। हिंदू समाज इकट्ठा होकर रहें और हर मंडल में आना-जाना करता रहे, ताकि शाखाओं की संख्या भी निरंतर बढ़ती रहे। उन्होंने काशी, मथुरा व अयोध्या के मुद्दे पर भी एक स्वयंसेवक के पूछे सवालों का जवाब दिया। नगर प्रचार प्रमुख आशीष आनंद व प्रांत बौद्धिक प्रमुख बालमुकुंद ने बताया कि संघ प्रमुख का सिर्फ स्वयंसेवकों से परिचय व मिलन का कार्यक्रम था।

इससे पूर्व कुप्पा घाट स्थित महर्षि मेंहीं आश्रम में नए सदगुरु निवास के लोकार्पण के दौरान भागवत ने कहा कि जीवन में बदलाव लाने के लिए संतों के पास जाना जरूरी है। संतों के साथ बैठने और उनका सत्संग सुनने से जो लाभ मिलता है, वह हमारे जीवन में बदलाव लाने का कार्य करता है। संतों के बीच आकर मैं भी वो चीज पाता हूं जिसका स्वभावतः हकदार नहीं हूं। सत्य से मिला हुआ सुख कभी फीका नहीं पड़ता। सत्य का सुख पाने वाले लोगों में भी सुख बांटते हैं और दुखों को दूर करते हैं। इसलिए अपने हृदय के अहंकार को भूलकर सत्य का साक्षात्कार करना चाहिए। वर्तमान समय में समस्त भारत में संतों की ओर से अपनी सभ्यता संस्कृति को लेकर काम हो रहा है, वह भारत को विश्व गुरु बनाने की ओर अग्रसर करेगा।