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अब नेताजी गए जेल तो खत्म होगा राजनीति का खेल

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजनीति में अपराधीकरण रोकने की दिशा में एक और अहम फैसला दिया.
शीर्ष कोर्ट ने आज अपने एक फैसले में कहा कि यदि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है, वह विधायी निकायों के लिए चुनाव लड़ने का हकदार नहीं है. इस फैसले से उन राजनीतिक लोगों को झटका लगेगा जो किसी आपराधिक मामले में दोषी करार दिए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि कोई भी व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ पाएगा. इस का मतलब यह हुआ कि कोई भी शख्स अगर पुलिस हिरासत, न्यायिक हिरासत या जेल में होगा तो वो चुनाव नहीं लड़ पाएगा. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि विचाराधीन कैदी भी जेल से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.
पटना हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि
पटना हाईकोर्ट ने साल 2004 में चुनाव आयोग को जेल में बंद लोगों के नाम मतदाता सूचियों से हटाने के निर्देश दिए थे और शीर्ष अदालत ने उस वक्त इस फैसले पर स्थगन आदेश जारी किया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के इस फैसले की पुष्टि कर दी है. इस फैसले में एक और बात कही गई है कि अगर किसी को भी एहितायात के तौर पर हिरासत में लिया गया है तो उसपर यह फैसला लागू नहीं होगा.
कल ही आया था ऐतिहासिक फैसला
गौरतलब है कि कल देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया था कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा सुनाई जाती है, तो उसकी कुर्सी तुरंत छिन जाएगी, उसकी सांसद या विधायक पद की सदस्यता तुरंत खत्म हो जाएगी. अब किसी भी सांसद या विधायक को ऊपरी अदालत में अपील करने के नाम पर राहत नहीं मिलेगी. ये फैसला कल से लागू हो गया है.
रद्द किया संरक्षण देने वाला प्रावधान
संसद और विधान सभाओं को अपराधियों से मुक्त कराने में मददगार होने वाले ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कल जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जो दोषी ठहराए गए कानून निर्माताओं को उच्च न्यायालय में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था.
न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि इसमें सिर्फ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) के अधिकारातीत होने का सवाल है और हम इसे अधिकारातीत घोषित करते हैं और दोषी ठहराये जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होगी. इसके साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह फैसला उन सांसदों और विधायकों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने इस निर्णय से पहले ही उच्च न्यायालय में अपील दायर कर रखी है.
भेदभाव करने वाला था प्रावधान
यह निर्णय आम आदमी और जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत संरक्षण प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच भेदभाव करने वाला प्रावधान खत्म करता है. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) के तहत ऐसा व्यक्ति जो किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है और उसे दो साल से कम की कैद की सजा नहीं हुई है तो वह रिहाई के बाद दो साल तक अयोग्य रहेगा. धारा 8 (4) कहती है कि कानून निर्माता दोषी ठहराये जाने की तिथि से तीन महीने तक और यदि इस दौरान उसने अपील दायर कर दी है तो इसका निबटारा होने तक अयोग्य घोषित नहीं किए जाएंगे.
निर्वाचन आयोग ने समय समय पर अपनी रिपोर्ट में विभिन्न अपराधों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को लाभ की स्थिति प्रदान करने वाला यह प्रावधान खत्म करने के लिए कानून में संशोधन की सिफारिश की थी.