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टीएमबीयू: आत्महत्या रोकथाम जागरूकता विषय पर एक दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस का हुआ आयोजन

टीएमबीयू: आत्महत्या रोकथाम जागरूकता विषय पर एक दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस का हुआ आयोजन
भागलपुर। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के पीजी मनोविज्ञान विभाग में बुधवार (10 सितम्बर) को आत्महत्या रोकथाम एवं जागरूकता विषय पर एक दिवसीय कॉन्फ्रेस का आयोजन किया गया। पीजी मनोविज्ञान विभाग की हेड डॉ लक्ष्मी पाण्डेय ने बताया की मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के प्रयास से 10 सितंबर 2025 को "विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस" के उपलक्ष्य में विभाग में "आत्महत्या रोकथाम और जागरूकता" पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मलेन के विषय वस्तु पर व्याख्यान देने के लिए कई विशेषज्ञओं को आमंत्रित किया गया था। हाइब्रिड मोड में व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक टीएमबीयू के प्रभारी कुलपति प्रो. बिमलेन्दु शेखर झा ने ऑनलाइन मोड में कार्यक्रम को सम्बोधित किया। प्रभारी कुलपति प्रो. झा ने कहा की कांफ्रेंस का विषय अपने आप में महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है। आत्महत्या जैसी समस्याओं के रोकथाम के लिए सार्थक प्रयास की जरुरत है। आत्म हत्या के पीछे बहुत से कारक जिम्मेवार होते हैं। जिसमें पारिवारिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण, अनुवांशिक कारण, आर्थिक कारण, मानसिक स्वास्थ्य, नशा, असंतुलित व्यक्तित्व आदि मुख्य रूप से जिम्मेवार है। कुलपति ने कहा की बच्चों को पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए। बच्चों को उनके पसंद और रूचि का करियर चुनने की आजादी हो, दबाब में कोई काम नहीं सौंपे। बच्चों के ऊपर कभी भी किसी भी तरह का मानसिक दबाब नहीं बनाना चाहिए। सेमिनार और कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा सकता है। पीजी मनोविज्ञान विभाग विश्वविद्यालय के एनएसएस के साथ समन्वय स्थापित कर समाज में जागरूकता का कार्यक्रम चलाये। आत्महत्या के कदम को रोकने के लिए काउंसीलिंग का महत्व काफी बढ़ जाता है। इस तरह के आयोजन निरंतर होने चाहिए। कुलपति ने पीजी मनोविज्ञान विभाग की हेड डॉ लक्ष्मी पाण्डेय के इस सार्थक प्रयास की सराहना भी किया। 
इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया। विभाग की हेड डॉ लक्ष्मी पाण्डेय ने आगत अतिथियों का स्वागत अंग वस्त्र और पौधा भेंट कर किया। मौके पर उन्होंने स्वागत भाषण भी दिया। छात्राओं ने कुलगीत की प्रस्तुति दी।
मनोविज्ञान की हेड डॉ लक्ष्मी पाण्डेय ने बताया की जेपी विश्वविद्यालय छपरा के पूर्व कुलपति प्रो. फारूक अली, टीएमबीयू के सोशल साइंस के डीन प्रो. सीपी सिंह, एसएम कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस विभाग के सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर व टीएमबीयू के पीआरओ डॉ दीपक कुमार दिनकर, सागर विश्वविद्यालय की डॉ दिव्या भानोत, डॉ मधु कुमारी गुप्ता, विवेकानंद कुमार आदि मुख्य रूप से इस अवसर पर व्याख्यान दिया। 
जेपी विश्वविद्यालय छपरा के पूर्व कुलपति प्रो. फारूक अली ने पीपीटी के माध्यम से सुसाइड रोकथाम और जागरूकता विषय पर अपने विचार रखे। डॉ अली ने  कहा की सुसाइड न केवल भारत में ही बल्कि एक ग्लोबल घटना है। आत्महत्या की 73% घटनायें निम्न और मध्यम इनकम वाले देशों में देखने को मिलता है। 15 से 29 साल के युवाओं मे आत्महत्या की ज्यादातर घटनायें सामने आती हैं। डॉ अली ने आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य आदि कारकों की चर्चा की। मजबूत पारिवारिक संबंध, कम्युनिटी सपोर्ट, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक मूल्य, मेडिटेशन, हॉबीज, शिक्षा और जागरूकता आदि के माध्यम से स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
    टीएमबीयू के सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रो. सीपी सिंह ने आत्महत्या के आर्थिक कारकों की चर्चा की। विशेष रूप से उन्होंने किसानों के आत्महत्या मामले में डेटा के साथ अपने विचार रखे।
       एसएम कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस विभाग के सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर व टीएमबीयू के पीआरओ डॉ दीपक कुमार दिनकर ने आत्महत्या के कानूनी और संवैधानिक पक्ष पर अपने विचार साझा करते हुए कहा की आज समाज में विकृति बढ़ी है, लोग समाज और सामाजिक मूल्यों से से दूर होते चले जा रहे हैं। संयुक्त परिवार की जगह न्यूक्लियर फैमिली की अवधारणा तेजी से बढ़ी है। ऐसे में लोग अपने घर-परिवार और रिश्तेदारों से दूर होते चले जा रहे हैं। पाश्चात्य जीवन शैली के हॉबी होने के कारण भी समस्यायें जटिल हो रही हैं। संवादहीनता भी एक बड़ा फैक्टर है। डॉ दिनकर ने कहा की आत्महत्या एक समाजिक चुनौती बन गया है, यह सभ्य समाज के लिए पाप  और कलंक है। उन्होंने कहा की मानव का जीवन अनमोल है, यह प्रकृति का अनुपम उपहार भी है। इसलिए हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। आत्महत्या या इसके लिए प्रयास किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। युवाओं को गलत रास्ते पर जाने से बचना चाहिए। आज नशा, गलत संगत या सोशल मीडिया के कुप्रभाव के कारण अधिकांश युवा भटकाव के रास्ते पर हैं। सदियों पहले नेचुरल लॉ के समर्थक सेंट ऑगस्टाइन ने भी आत्महत्या को पाप घोषित किया था।
डॉ दिनकर ने कहा की भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 21(a) के तहत लोगों की जीवन जीने का अधिकार प्रदान किया है। मानवधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा पत्र में भी व्यक्ति के गरिमा पूर्ण जीवन के अधिकारों की चर्चा की गई है।
मौके पर विभाग के सेमेस्टर तीन के छात्र-छात्राओं द्वारा मेंटल हेल्थ पर आधारित नुक्कड़ नाटक की आकर्षक और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति दी गई।
मंच संचालन पीजी मनोविज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सपना ने की जबकि धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ चंदा ने की। तकनीकी संयोजन विभाग के सहायक प्रोफेसर विवेकानंद कुमार ने किया। कॉन्फ्रेंस में दर्जनों की संख्या में शोधार्थी और छात्र छात्राएँ मौजूद थे।