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छपरा के लाल ने बनाया भारत को जूनियर हॉकी चैंपियन

छपरा। यह कहानी चक दे इंडिया के ‘चक दे इंडिया’ के कोच कबीर खान (शाहरूख खान) जैसा ही फिल्मी है जिन्होंने अपने ऊपर लगे कलंक को मिटाने के लिए एक युवा टीम कि कमान संभाली और भारत को जूनियर हॉकी चैंपियन बना कर अपने जख्म को भरने में सफल हुए. जी हां हम बात कर रहे है जूनियर हॉकी टीम के कोच हरेन्द्र सिंह की.
बिहार के माटी में जन्मे हरेन्द्र सिंह छपरा के रहने वाले हैं, जब भारतीय टीम विश्व चैम्पियन वैन जश्न मन रहा था इस बिहार के लाल के आँखों से झर-झर आंसू गिर रहे थे जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था ये आंसू सिर्फ जीत के खुशी भर का ही नहीं था कि ये ग्यारह साल पहले मिला जख्म था जिसे भरने में उन्हें आज कामयाबी हासिल हुई थी, कल भारत ने जूनियर हॉकी वर्ल्‍ड कप के फाइनल में बेल्जियम को 2-1 से हराकर जीत गया.
भारत ठीक पंद्रह साल पहले 2001 में इस खिताब को हासिल किया था जिसके बाद अब टीम ने यह कमाल किया है, भारत ने 15 साल पहले इससे पहले यह खिताब जीता था. दरअसल ग्यारह साल पहले भी भारतीय टीम के कोच हरेन्द्र सिंह ही थे जिनके मार्गदर्शन में भारतीय टीम खेल रही थी लेकिन दुर्भाग्यवश भारतीय टीम 2005 की रोटरडम में सेमीफाइनल ने दौड़ से लगभग बाहर कर दिया रही सही कसर मैच में स्पेन के हाथों पेनल्टी शूट आउट में हारकर कांस्य के लिए खेले गए उम्मीद को भी झटका लगा. शयद ग्यारह साल का टिस अभी भी उनके दिल में थी जो जख्म उनके दिल में नासूर कि तरह घर कर गई थी.

फाइनल में भारतीय टीम के प्रवेश के बाद जब कोच हरेंद्र सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘यह मेरे अपने जख्म है और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता, मैंने खिलाड़ियों को इतना ही कहा था कि हमें पदक जीतना है, रंग आप तय कर लो. उनको टीम के युवाओं ने अपना गुरु दक्षिणा के रूप में ग्यारह साल के पुराने सपने को पूरा कर दे दिया जिन खिलाड़ियों को हरेन्द्र ने तराशा उन्होंने अपने गुरु को उसका मान रखा.
हमें इस बिहार के लाल पर गर्व है जिन्होंने भारतीय टीम को मार्गदर्शन देने का काम किया है आसाह करते है कि बिहार के प्रतिभा को भी वो तराशने का काम करेंगे और बिहार सरकार से नम्र निवेदन है कि हमारे राज्य के युवाओं को इस खेल में आगे बढाने के लिए काम करें और सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाए जिससे आगे चलकर हरेन्द्र सिंह कि तरह राज्य का नाम देश और दुनिया का नाम रौशन करें.