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रमजान का तोहफा है ईद, एक दूसरे को बांटें खुशियां

रमजान का तोहफा है ईद, एक दूसरे को बांटें खुशियां
नव-बिहार समाचार। मुल्लाचक शरीफ स्थित खानकाह शहबाजिया के 16वें गद्दीनशीं सैयद शाह इंतखाब आलम शहबाजी मियां साहब ने बताया कि इस्लाम के अंतिम पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से पूर्व जितने भी पैगंबर आए सबके समय में अलग अलग तरीके से रमजान का रोजा था। कुरान आने के बाद यह स्थायी हो गया। उन्होंने कहा, रमजान का रोजा अल्लाह को खुश करने के लिए रख जाता है। तीस दिनों तक दिनभर भूखा प्यास रहकर, अपने नित्य कार्यों को करते हुए नमाज पढ़ने और तिलावत करने से अल्लाह अपने बंदों से खुश होता है। रमजान के प्रति अपने बंदों का समर्पण देखकर अल्लाह ने ईंद का त्योहार तोहफे के तौर पर दिया।

त्योहार में छोटे-बड़े, अमीर-गरीब और समुदाय का भेद नहीं होता। सभी मिलकर खुशियों को एक-दूसरे से वांटना ही ईद का असली मतलब है। खुशियों के इस त्यौहार में आम लोग गरीबों को भी शामिल करते हैं। वैसे जरूरतमंदों की ईद आम लोगों के फितरे और जकात की राशि से मनती है। कहीं कोई भेद-भाव नहीं। ईद की नमाज के बाद सभी एक दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं। भागलपुर सहित देशभर में ईद का त्योहार गंगा जमुनी तहजीब को भी दर्शाता है। ईद का असल मतलब भी यही है। गद्दीनशी सैयद शाह इंतखाब आलम शहबाजी मियां साहब ने कहा कि यह त्योहार आपसे कटुता को खत्म करता है। इंसान कोई भी हो ईद में उनसे खुले दिल से मिलें। इस त्योहार में छोटे बड़े अमीर गरीब और समुदाय का भेद नहीं होता। खुशियों को एक दूसरे में बांटना ही ईद का मतलब है।