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कविता: कोरोना से एक मुलाकात

कविता: कोरोना से एक मुलाकात

आज रात 11 बजे कोरोना से मुलाकात हो गई
चलते चलते 6 फीट दूर से बात हो गयी
मैंने कहा कोरोना बड़ा ऊधम मचाए हो
चुनावी रैली छोड़कर क्यों मेलों ,शादी और कवि सम्मेलनों में आए हो
क्या तुमको भी लगता है़ डर सरकारी आयोजनों से
या लाए गए हो तुम भी किन्हीं प्रयोजनों से
अब मैं तुमसे तुम्हारा इलाज चाहता हूँ
कल या परसो नही अभी और आज चाहता हूँ
ये सुनकर कोरोना रुआंसा होकर बोला
कवि महोदय तुम सब की पीड़ा गाते हो
मैं भी तो पीडित हूँ क्यों ना मेरी व्यथा सुनाते हो
मैं तो पहले आया था लेकिन अब बुलाया है़
सत्ता के सरदारों ने मुझको हथियार बनाया है़
उनकी मर्जी से ही अब मैं अंदर बाहर जाता हूँ
फिर भी जाते जाते तुम्हें मैं ..इलाज बताता हूँ
जहाँ जहाँ हिन्दुस्तान में  चुनाव कराया  जाएगा
वहाँ कोरोना का एक भी मरीज नही पाया जाएगा
देश की भोली जनता  में समझ का अभाव है़ 
सुनो कविवर मेरा इलाज सिर्फ और सिर्फ चुनाव है़