मुंबई
के वर्ली के जयंत अपार्टमेंट में दो फ्लैट थे, लेकिन 1984 में सुनीता ने
अपना पुणे वाला बंगला महज 6 लाख रुपये में ही बेच दिया। बदहाली और मुफलिसी
का ये दौर तब शुरू हुआ जब मराठी पत्रिका गृहलक्ष्मी का प्रकाशन बंद हो गया।
मोटी तनख्वाह पाने वाली सुनीता रातों-रात बेरोजगार हो गईं। बचाकर रखे पैसे
खत्म होने लगे, जेब तंग हुई तो 2007 में सुनीता ने वरली के दोनों फ्लैट
बेच दिए। इससे उन्हें 80 लाख रुपये मिला सारे पैसे बैंक में जमा कर सुनीता
ठाणे के एक बंगले में शिफ्ट हो गईं। इसी दौरान उनके बैंक खाते की रकम
रहस्यमय तरीके से गायब होने लगी। सुनीता का आरोप है कि उनके घर नौकरी करने
वाले कमल रायकर ने उनके खाते में गड़बड़ी की है। सुनीता के मुताबिक ताड़देव
में रहने वाला कमल ही उनके बैंक खातों का कामकाज देखता था, लेकिन मोबाइल
फोन बारिश में भींगने की वजह से उसका नंबर गायब हो चुका है और वो उससे
संपर्क नहीं कर पा रही हैं।