26 जून से शुरू हो रहा है दाता का उर्स-ए-पाक
नवगछिया अनुमंडल अंतर्गत सांप्रदायिक सद्भाव व आपसी भाईचारे का प्रतीक बिहपुर प्रखंड के मिल्की गांव स्थित दाता मांगनशाह रहमतुल्ला अलेह का सलाना उर्स-ए-पाक 26 जून से शुरू हो रहा है. इसकी तैयारियों में
उर्स कमेटी एवं पुलिस प्रशासन जुट गया है. दाता के सात दिनों तक चलने वाले इस उर्स में देश के विभित्र राज्यों के साथ-साथ पड.ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश से भी बड.ी संख्या में जायरीन पहुंचते हैं. धर्म व मजहब के नाम पर नफरत की राजनीति करने वालों के लिए दाता का उर्स एक नसीहत है. दाता मांगन शाह मुसलिम सूफी संत थे, लेकिन आज भी उनके सालाना उर्स-ए-पाक पर पहली चादरपोशी बिहपुर के कायस्थ परिवार के स्वर्गीय लालबिहारी मजुमदार के वंशज अरविंद कुमार दास सपरिवार यहां आ कर करते हैं. इसके बाद आम जायरीनों द्वारा चादरपोशी करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. उर्स इन्तेजामिया कमेटी के सदस्य मो इरफान आलम ने बताया कि 26 जून की मध्य रात 12:06 बजे परंपरा के अनुसार दाता के मजार पर पहली चादरपोशी होगी. यहां हिंदू व मुसलमान एक साथ नियाज फातिहा, पूजा-अर्चना व चादरपोशी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि दाता के दर से कोई भी आज तक निराश नहीं लौटा है. दाता के दर पर मांगी गयी मुरादें देर सवेर जरूर पूरी होती हैं. तभी तो दाता के उर्स में हर साल तकरीबन तीन से पांच लाख जायरीन पहुंचते हैं. मजार से जुड.ी मान्यता यह भी है कि मजार से सटे वट वृक्ष में नि:संतान महिला यदि अपने आंचल के टुकडे. में पत्थर बांध कर पेड. के तना में बांधती है, तो दाता उस महिला की सुनी गोद को आबाद कर देते हैं. दाता के मजार व इनके सालाना उर्स में गहरी आस्था दो सौ वर्षों से बरकरार है.
नवगछिया अनुमंडल अंतर्गत सांप्रदायिक सद्भाव व आपसी भाईचारे का प्रतीक बिहपुर प्रखंड के मिल्की गांव स्थित दाता मांगनशाह रहमतुल्ला अलेह का सलाना उर्स-ए-पाक 26 जून से शुरू हो रहा है. इसकी तैयारियों में
उर्स कमेटी एवं पुलिस प्रशासन जुट गया है. दाता के सात दिनों तक चलने वाले इस उर्स में देश के विभित्र राज्यों के साथ-साथ पड.ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश से भी बड.ी संख्या में जायरीन पहुंचते हैं. धर्म व मजहब के नाम पर नफरत की राजनीति करने वालों के लिए दाता का उर्स एक नसीहत है. दाता मांगन शाह मुसलिम सूफी संत थे, लेकिन आज भी उनके सालाना उर्स-ए-पाक पर पहली चादरपोशी बिहपुर के कायस्थ परिवार के स्वर्गीय लालबिहारी मजुमदार के वंशज अरविंद कुमार दास सपरिवार यहां आ कर करते हैं. इसके बाद आम जायरीनों द्वारा चादरपोशी करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. उर्स इन्तेजामिया कमेटी के सदस्य मो इरफान आलम ने बताया कि 26 जून की मध्य रात 12:06 बजे परंपरा के अनुसार दाता के मजार पर पहली चादरपोशी होगी. यहां हिंदू व मुसलमान एक साथ नियाज फातिहा, पूजा-अर्चना व चादरपोशी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि दाता के दर से कोई भी आज तक निराश नहीं लौटा है. दाता के दर पर मांगी गयी मुरादें देर सवेर जरूर पूरी होती हैं. तभी तो दाता के उर्स में हर साल तकरीबन तीन से पांच लाख जायरीन पहुंचते हैं. मजार से जुड.ी मान्यता यह भी है कि मजार से सटे वट वृक्ष में नि:संतान महिला यदि अपने आंचल के टुकडे. में पत्थर बांध कर पेड. के तना में बांधती है, तो दाता उस महिला की सुनी गोद को आबाद कर देते हैं. दाता के मजार व इनके सालाना उर्स में गहरी आस्था दो सौ वर्षों से बरकरार है.