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बिहार की लीचियों से गायब रहेगा रस

इस वर्ष बिहार में लीची की रंगत फीकी नजर आ सकती है.

लीची की फसल में पिछले वर्ष की तुलना में 15 से 20 प्रतिशत की कमी होने की आशंका है.हालांकि, समय पर अब भी बारिश हो जाए तो लीची की पैदावार बढ़ने के आसार हैं.

वैसे तो उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और बिहार में लीची की खेती की जाती है. लेकिन देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 74 प्रतिशत है.

बिहार में कुल 30,600 हेक्टेयर भूमि में लीची की खेती होती है.

आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष पूरे देश में करीब 4. 90 लाख टन लीची का उत्पादन हुआ था जिसमें बिहार का योगदान करीब तीन लाख टन था.

इसके पहले वर्ष 2010-11 में करीब 2.50 लाख टन लीची का उत्पादन बिहार में हुआ था, जबकि वर्ष 2009-10 में राज्य में कुल 2.15 लाख टन लीची का उत्पादन हुआ था.

राज्य में लीची की उत्पादकता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वर्ष 2001 में मुजफ्फरपुर में लीची के लिए एक राष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना की.

राज्य में वैसे तो कई जिलों में लीची की खेती की जाती है लेकिन मुजफ्फरपुर लीची की खेती का मुख्य केंद्र है.

राष्ट्रीय शोध संस्थान के निदेशक डॉ़ विशाल नाथ ने बताया कि राज्य में इस वर्ष लीची के उत्पादन में बढ़ोतरी की सम्भावना नहीं है.

उन्होंने बताया, ‘मौसम की मार के कारण लीची के उत्पादन में बढ़ोतरी होने के अनुमान नहीं के बराबर हैं.

35 डिग्री सेल्सियस लीची के लिए आदर्श तापमान माना जाता है, लेकिन इस वर्ष गर्मी की शुरुआत से ही अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया है.’

उन्होंने बताया, ‘अब भी अगर छोटे-छोटे अंतराल पर एक-दो बारिश हो जाए तो पैदावार की स्थिति में सुधार आ सकता है.’

नाथ ने बताया कि राज्य में शाही, चाइना, लौंगिया, बेखना सहित कई प्रकार की लीची का उत्पादन किया जाता है, लेकिन शाही और चाइना लीची का उत्पादन सर्वाधिक होता है.

शाही और चाइना लीची में जितना रस होता है उतना रस अन्य लीची में नहीं होता.