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नवगछिया का उजानी: हकीकत है यहाँ की कहानी

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशक की खोज टीम ने नवगछिया इलाके में दो ऐतिहासिक मूर्तियों की खोज की है। एक मूर्ति गणेश भगवान की है और दूसरी वाराही (भगवान विष्णु के वाराह अवतार का स्त्री रूप) की। ये मूर्तियां प्रमाणित करती हैं कि पौराणिक काव्य-किताबों में लिखी उजानी नगर की कहानी सिर्फ कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।

खोज टीम की अगुआई कर रहे पुराविद अरविंद सिन्हा रॉय बताते हैं कि नवगछिया के उजानी गांव से डेढ़ किमी आगे कोरचक्का गांव में मिट्टी खोदाई के दौरान ये दोनों मूर्तियां एक साथ मिली। ग्रामीणों के मुताबिक खोदाई सात साल पहले हुई थी। कोरचक्का गांव का जमीनी अस्तित्व वर्तमान में समाप्त हो गया है। यह कोसी की गोद में समा चुका है। कटाव से विस्थापित हुए कोरचक्का के ग्रामीण अपने मूल गांव से करीब 13 किमी दक्षिण में मगधतपुर नाम से गांव ही बसा लिया और यहीं दोनों मूर्तियों को मंदिर बनाकर स्थापित किया है। ये मूर्तियां सातवीं-आठवीं शताब्दी की हैं। सबसे अच्छी बात यह कि दोनों मूर्तियां सलामत हैं। गणेश और बाराही की मूर्ति विरले ही मिलती है। यहां मिली मूर्तियों में गणेश भगवान के आठ हाथ हैं और नृत्य की मुद्रा में हैं और बाराही की मूर्ति पद्मासन मुद्रा में। बाराही के साथ उनका सवारी गरूड़ भी है। दोनों मूर्तियां करीब एक मीटर ऊंची हैं। बाराही की इसी प्रकार की मूर्ति कहलगांव के जंगलेश्वर मंदिर में मिली थी। हालांकि यह मूर्ति थोड़ी छोटी है।

उजानी में मिल रहे हैं ऐतिहासिक सामान : डॉ. अतुल कुमार वर्मा

बिहार सरकार के उपसचिव सह निदेशक पुरातत्व डॉ. अतुल कुमार वर्मा बताते हैं 13वीं सदी के लेखक हरिदत्त ने मनषा-मंगल काव्य लिखी थी। जिसमें चंपक नगर और उजानी नगर की चर्चा है। इनके बाद के लेखकों विजय पिलानी (1494), केतोकादास खेमानंद (17वीं सदी) ने भी उजानी नगर का जिक्र समृद्ध इलाके के रूप में किया है। यह गुरुदत्त बेने का नगर था। मनषा-मंगल काव्य बिहुला-विषहरी की कहानी है। और यह कहानी सिर्फ कहानी नहीं हकीकत है, ऐसा वहां के लोगों से बातचीत से पता चला है। हालांकि उजानी के आसपास का इलाका कोसी में समाहित हो चुका है। पर जो बचा है वहां से ऐतिहासिक समान भी मिल रहे हैं। दूसरे अभी यह पता नहीं है कि तब का उजानी कितना बड़ा नगर था। इसपर काम किया जा रहा है।