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चुनावी चर्चा : भागलपुर में आरजेडी-जेडीयू की लड़ाई में बीजेपी की राह आसान?


बिहार की ज्यादातर सीट की तरह भागलपुर में भी त्रिकोणीय मुकाबला है। यहां से बीजेपी के शहनवाज हुसैन, आरजेडी कांग्रेस गठबंधन के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल और जेडीयू के अबू कैसर मैदान में हैं।
शहनवाज हुसैन 2006 के उपचुनाव में जीत कर भागलपुर से सांसद बने। उन्होंने 2009 में भी यहीं से कामयाबी हासिल की। करीब 20 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र के शहनवाज को युवा मुसलमान नेता के तौर पर जगह मिली, लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल अलग है। पहले शहनवाज को बीजेपी की टिकट पर यहां के मुसलमानों को बेशक एतराज न रहा हो, लेकिन नरेंद्र मोदी को पीएम पद का दावेदार बनाए जाने से मुसलमानों का इस बार शहनवाज से मुंह मोड़ना लाजिमी है। शहनवाज को व्यक्तिगत तौर पर पसंद करने वालों मुसलमानों के वोट को छोड़ दें तो इस बार बीजेपी को मुस्लिम वोट मिलना मुश्किल है।
ऐसी स्थिति में मुसलमानों के पास दो विकल्प हैं। आरजेडी या जेडीयू। आरजेडी के उम्मीदवार बुलो मंडल मुस्लिम वोटों को जोड़ने की कोशिश में दिन रात एक किए हैं। मुसलमान उनकी बात सुनते भी नजर आ रहे हैं। आरजेडी की जीत का जातीय समीकरण मुख्यत: गंगोता यानि मंडल, यादव और मुसलमान वोटों पर आधारित है।
दूसरी तरफ बीजेपी अगड़ी जाति, वैश्य यानि बनिया (जिसकी तादाद करीब करीब मंडल वोट के बराबर ही है), कुशवाहा, कुर्मी वोटरों का वह हिस्सा जो आरजेडी को नापसंद करता है, पर अपना दांव लगा रही है। बीजेपी को लगता है कि मोदी के खिलाफ मुसलमान वोटों का जितना ज्यादा ध्रुवीकरण होगा, मोदी के पक्ष में मंडल वोटों का ध्रुवीकरण भी उतना ही ज्यादा होगा। मतलब आरजेडी के पाले से मंडल वोट बीजेपी के पाले में आएगा।
इसके पीछे की पृष्ठभूमि यह है कि 1989 के दंगे ने मंडल और मुसलमानों के बीच गहरी खाई पैदा कर दी है। ऐसे में मुसलमान अगर आरजेडी की जीत सुनिश्चित करना चाहेंगे तो मंडल और कुछ हद तक यादव भी आरजेडी से छिटक बीजेपी को वोट कर सकते हैं।
उधर जेडीयू ने अबू कैसर को टिकट दिया है। जाहिर है अतिपिछड़ों के अलावा पार्टी की उम्मीद का सबसे बड़ा सहारा मुस्लिम वोट बैंक ही है। नीतीश कुमार ने मोदी के नाम पर ही बीजेपी से गठबंधन तोड़ा। ऐसे में मुस्लिम मोदी के खिलाफ जेडीयू को भी विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। जाहिर है इससे मुस्लिम वोटों के बंटने की पूरी संभावना है। मुसलमान वोट बंटता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा। फिलहाल तीनों पार्टी के उम्मीदवार अपनी अपनी गणना के हिसाब से वोटरों को लुभाने जुटे हैं।