भारत बोलने से गर्व और इंडिया से गुलामी महसूस होती है - परमहंस स्वामी आगमानन्द
नव-बिहार समाचार, भागलपुर। आयोजन हुआ। हिंदी भारत का प्रतिनिधित्व करती है। एक-दूसरे से जोड़ती है। यह काफी प्रिय और मधुर भाषा है। इस भाषा में शिष्टाचार, अपनत्व और सम्मान है। यह भाषा ध्वनि पर आधारित है। इसलिए इसकी वैज्ञानिकता काफी प्रभावी है। ये बातें रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने हिंदी दिवस पर कृषि भवन स्थित आत्मा के प्रशिक्षण कक्ष में हिंदी दिवस परमोत्सव समारोह का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में कही। इस समारोह की अध्यक्षता प्रो डा. ज्योतिन्द्र प्रसाद चौधरी ने की। स्वामी आगमानंद जी महाराज ने यह भी कहा कि हिंदी से भारत की पहचान है। सनातन संस्कृति की पहचान हिंदी है।
उन्होंने सभी से आह्वान किया भारत माता की जय बोलें। भारत बोलने से गर्व की अनुभूति होती है। यहां के सभी लोग भारतीय हैं। इंडिया बोलने में यह भाव उत्पन्न नहीं होता। इससे हम गुलामी महसूस करते हैं। गीतकार राजकुमार ने कहा कि हिंदी हमारी मातृभाषा है। मातृभाषा सिर्फ अभिव्यक्ति या संचार की भाषा नहीं होती, बल्कि यह संस्कृति और संस्कार की संवाहिका भी होती है। गीतकार राजकुमार ने समारोह की शुरुआत आओ दीप जलाएं दीपगान से की। संचालन अशोक हितैशी ने किया। आत्मा के उपपरियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। अंगवस्त्र कर सभी का माल्यार्पण किया। इस अवसर पर प्रो. डा. आशा ओझा, विद्या वाचस्पति तिमांविवि के कुलगीतकार पंडित आमोद कुमार मिश्र, पंडित शंभूनाथ शास्त्री, हरिशंकर ओझा, कवि मुरारी मिश्र आदि ने संबोधित किया। सभी ने कहा अजर-अमर है हमारी हिंदी। इस अवसर पर प्रेमानंद भाईजी, कुंदन बाबा, रामबालक भाई, ब्रजेश, शेखर, गृजेश, पंडित अनिरूद्ध शास्त्री, पंडित मुकेश बाबा, कृष्णानंद सिंह, सौरभ सोनू, नयन कुमार, आशु सिंह आदि मौजूद थे।