देश की समृद्धि में ऋषि और कृषि दोनों का है योगदान- स्वामी आगमानंद
नव-बिहार समाचार, भागलपुर। किसान मानव को अन्न देते हैं तो ऋषि मानव को ज्ञान देने हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। किसान तपके अन्न पैदा करते हैं तो संत तप करके ज्ञान व सिद्धि पाते हैं। किसान भी संत हैं और संत भी किसान। यह बातें रविवार को तिलकामांझी स्थित कृषि कार्यालय भवन के आत्मा प्रशिक्षण केंद्र के कक्ष में "भारतीय संस्कृति के मूल तत्व : ऋषि और कृषि" विषय पर संगोष्ठी के दौरान स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता उत्तरतोताद्रि मठ विभीषणकुंड अयोध्या के उत्तराधिकारी एवं श्रीशिवशक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु इसलिए रहा है कि यहां की संस्कृति काफी प्राचीन है। यहां लोग आपसी सौहार्द के साथ जीते है। वेदों और उपनिषदों में भी कृषि कार्य की महत्ता को दर्शाया गया है। कई ऐसे मंत्र हैं जो किसानों और कृषि कार्य पर आधारित हैं। संत और ऋषि भी खेती करते थे। उन्होंने कहा कि संत और किसान हमेशा देश के लिए समर्पित हैं। उन्होंने इस आयोजन को जागृत युवा समिति और आस्था को धन्यवाद दिया। कहा कि यह कार्यक्रम हर जगह हो। किसानों को इसमें बुलाया जाए। कम संसाधन वाले किसानों को सुविधा दिया जाए। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन दिलीप शास्त्री ने किया। आत्मा के उपपरियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उद्घाटनकर्ता बीएयू के प्राध्यापक एवं पौधा प्रजनन एवं अनुवंशकी विभाग के अध्यक्ष पीके सिंह मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि देश की समृद्धि में ऋषि और कृषि दोनों का योगदान रहा है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अररिया कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय कृषि वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार ने कहा कि कृषि कार्य को बेहतर बनाने पर जोर दिया साथ ही बेहतर स्वास्थ्य के योग आदि को बढ़ाने की अपील की। विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला कृषि पदाधिकारी अजय कुमार यादव, वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह, बीएयू के कृषि मौसम वैज्ञानिक डा. सुनील कुमार व गीतकार राजकुमार थे। कार्यक्रम में आकाशवाणी भागलपुर के वरीय उद्घोषक डा. विजय कुमार मिश्र विरजू भाई, गायक रवि शंकर रवि, स्वामी शिवप्रेमानंद जी, श्री मनोरंजन प्रसाद सिंह, स्वामी मानवानंद जी, मृत्युंजय कुंवर, कुंदन बाबा, पंडित कौशलेंद्र जी आदि मौजूद थे। कार्यक्रम के बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया। इस दौरान काफी संख्या में लोगों ने स्वामी आगमानंद जी से आशीर्वाद लिए।