महाशिवरात्रि आज, इसका महत्व और विशेषताएं
नव-बिहार समाचार। आज महाशिवरात्रि है। आज ही भगवान शिव और पार्वती के विवाह का भी दिन है, यानि शिव और शक्ति के मिलन का दिन। ये भी मान्यताएं हैं कि आज ही के दिन भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे और इसी दिन सृष्टि का निर्माण भी हुआ था। इसी दिन शिव ने रुद्र अवतार में तांडव करते हुए तीसरी आंख खोल दी थी। इसलिए आज शिव के विविध रूपों और उनसे जुड़ी जिज्ञासाओं को समझिए।
जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज के अनुसार शिव का अर्थ है कल्याण। शिव स्वयंभू हैं यानी वह मानव शरीर से नहीं जन्मे हैं। जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे और सब नष्ट होने पर भी उनका अस्तित्व रहेगा। वे ज्योति बिंदु हैं, जिनकी पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। शंकर जी को तपः मूर्ति कहते हैं। शिव का निराकार ज्योति रूप शिव है। जब यह रूप शरीर धरता है तो इसे शंकर कहा जाता है। उनके 11 अवतारों को रुद्र अवतार कहते हैं।
भगवान शिव पर बिल्व पत्र, धतूरा क्यों चढ़ाए जाते हैं?
बिल्व पत्र शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है। यह सृजन, पालन, विनाश और तीन गुणों सत्व, रज और तम का भी प्रतीक है। शिव के कंठ में हलाहल विष है, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। बिल्व पत्र और धतूरा विष से बनी व्याकुलता को शांत करता है। शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल पिया था। तब अश्विनी कुमारों ने औषधि में बिल्व पत्र, धतूरा देकर उनका उपचार किया था।
शिवजी को अर्धनारीश्वर के रूप में क्यों पूजा जाता है?
शिव सर्वश्रेष्ठ पुरुष हैं। वे पुरुषत्व की सर्वोच्चता के प्रतीक हैं। पर अर्धनारीश्वर रूप में उनके शरीर का आधा भाग पूरी तरह विकसित स्त्री है। यह इस बात का प्रतीक है कि हर इंसान की आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष की है। इसमें समानता का संदेश है। हम सभी में 50% पिता और 50% मां मौजूद है। सृष्टि में इस समानता के सिद्धांत को स्थापित करने वाला रूप भगवान अर्धनारीश्वर का है।
उनके नटराज स्वरूप में नृत्य करने का क्या महत्व है?
नटराज का शाब्दिक अर्थ है नृत्य करने वालों का सम्राट। यानी संसार के सभी नृत्यरत प्राणियों का नेतृत्वकर्ता। संसार में जो भी निर्माण या सृजन किया जा रहा है और जो भी नष्ट किया जा रहा है वह नटराज करते हैं। नटराज रूप में शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं। शिव की इस मुद्रा को आनंदम तांडवम कहा जाता है। इस का संदेश है- जो गलत है वह नष्ट होगा और फिर पुनर्निर्माण की शुरुआत होगी।
भगवान शंकर को सोमवार का दिन क्यों सबसे प्रिय है?
चंद्रमा शंकरजी के पास आए और कहा कि मुझे राहू सता रहा है। मेरी रक्षा करो। शंकरजी ने कहा तुम अपनी पूर्णता, चमक व सौंदर्य का अहंकार करते हो। मैं अहंकारी की रक्षा नहीं करता। इसके बाद चंद्रमा ने लघु रूप धर लिया। वो दूज का चंद्रमा बन गए। शंकर जी ने दूज के चंद्रमा की विनम्रता को शरण में लिया। वे उसे अपने मस्तक पर धारण करते हैं। इसलिए चंद्रमा का दिन सोमवार उन्हें प्रिय है।