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हजार महीनों की रातों से बेहतर है शब-ए-बरात, इबादत की रात

नव-बिहार न्यूज नेटवर्क (NNN), बिनोद कर्ण, बेगूसराय: इस्लामी कलेंडर का महीना शाबान इबादत और रियाजत के लिहाज से न केवल अपनी खास अहमियत रखता है बल्कि यह लोगों के लिए आत्म चिंतन का भी महीना है. चूंकि इस महीने के खत्म होते ही मुस्लिम अकीदे का सबसे अफजल और बाबरकत महीना रमजान का आरंभ होता है इसलिए शाबान के महीने का बड़ा महत्व है. इसके शुरू होते ही हर तरफ रमजान की आमद की खुश्बू बिखरने लगती है और लोग उसकी तैयारियों में जुट जाते हैं.

शब-ए-बरात की रात

इस्लामी कलेंडर में सूर्यास्त के साथ ही तिथियां बदल जाती हैं. यानी सूरज के डूबते ही अगली सूर्यास्त तक को एक तिथि माना जाता है.इसलिए शाबान के महीने की 14 तारीख के दिन के गुजरने के बाद आनेवाली रात को शब ए बरात कहा जाता है. अर्थात इस महीने की 14–15 तारीख के बीच की रात  को शब ए बरात का पर्व मनाया जाता है.

क्या है इस रात की अहमियत

इस्लाम में इस रात को बड़ा ही अकीदत और एहतराम प्राप्त है. इस रात के बारे में अल्लाह के नबी हजरत मुहम्मद (श.)ने फरमाया कि शब ए बरात की रात हजार महीने की रात से बेहतर है. इस रात रूहुल अमीन हजरत जिब्राईल दुनिया में तशरीफ लाते हैं और इंसानों को खुदा का पैगाम सुनाते हैं. खुदा के प्यारे रसूल ने अपनी दूसरी हरीश में फरमाया कि इस रात की इबादत हजार महीने की इबादत से बेहतर है. इस रात पढी जाने वाली एक रकअत नफिल नमाज का 27 गुणा अधिक शवाब मिलता है.

जो बंदा शब ए बरात की पूरी रात इबादत करता है कयामत के दिन अल्लाह उसके सिर पर एक ताज पहनाता है जो याकूत का बना होता है. इस रात की इबादत के बाद जो बंदा खुदा के हुजूर में नेक दिल से अपने व अपने पूर्वजों के गुनाहों की माफी मांगता है. अल्लाह उसे माफ फरमाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस रात अल्लाह तआला बंदों के पूरे वर्ष की रोजी का हिसाब किताब करता है. इंसानो के जन्म मृत्यु का भी लेखा जोखा फरिश्तों के सुपुर्द करता है. इस लिए इस रात को गफलत और सोने में नहीं गुजारना चाहिए. इसी मान्यता के तहत कहीं कहीं लोग अपने अपने घरों को रौशन भी करते हैं. हालांकि इस मौके पर घरों को चिरागां करने की इस्लाम में मनाही है.

कैसे मनती है शब-ए-बरात

शाबान की 14 तारीख को सूर्यास्त के साथ शब ए बरात आरंभ हो जाती है. इसके साथ ही फातिहा ख्वानी का दौर शुरू हो जाता है. कहीं-कहीं तो शाम ढलते ही फातिहा की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस के मनाए जाने को लेकर जामा मस्जिद पठान टोली के इमाम मौलाना मु.फारूक कासमी व कारी कमरे आलम फरमाते हैं कि इस तीन तरह की खास इबादत का एहतमाम किया जाना चाहिए. पहला बंदों को रात भर जागकर अल्लाह की इबादत में मशगूल रहना चाहिए. कुरान पाक की तिलावत और नफिल नमाज के साथ साथ अल्लाह के जिक्र में पूरी रात गुजारना तथा अपने गुनाहों के लिए तौबा करना. दूसरा सुबह सादिक के वक्त कब्रिस्तान जाना और अपने पूर्वजों और दूसरे मुर्दों  के गुनाहों की माफी के लिए खुदा से दुआ करना. तीसरे अगले दिन अर्थात 15 शाबान को रोजा रखना अफजल होता है. मौलानाओं ने पर्व को अकीदत और एहतराम से मनाने तथा दिखावा से गुरेज करने की अपील लोगों से की है.