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गुटखा और खैनी से बड़ा खतरा भारत को


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के लगभग सभी राज्यों में गुटखा पर पाबंदी लगा दिए जाने को अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया है। लेकिन, हकीकत यह है कि ज्यादातर जगहों पर गुटखा पाबंदी पर प्रभावी अमल नहीं हो रहा है और केंद्र सरकार इस पर पूरी तरह खामोश है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चेतावनी दी है कि दुनिया भर में चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल करने वाले 70 फीसद लोग भारत में ही हैं।
सदी की स्वास्थ्य चुनौतियों पर यहां आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार की संजीदगी की वजह से ही आज देश के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लागू हो सका है। उन्होंने अपने वीडियो संबोधन में यह दावा भी किया कि उनकी सरकार तंबाकू मुक्त समाज के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन, इसी कार्यक्रम के दौरान डब्ल्यूएचओ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि गुटखा और खैनी जैसे चबाए जाने वाले तंबाकू उत्पादों को लेकर सबसे बड़ा खतरा भारत को ही है।
सम्मेलन में भाग ले रहे टाटा मेमोरियल अस्पताल के कैंसर के डॉ पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि सरकार अदालती आदेश के बाद मुमकिन हुए इस प्रतिबंध के लिए अपनी पीठ तो थपथपा रही है, लेकिन इसके अमल को लेकर क्या हो रहा है, इस पर खामोशी है। हीलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डॉ पीसी गुप्ता कहते हैं कि मध्य प्रदेश में किए गए अध्ययन के मुताबिक 95 फीसद गुटखा खाने वालों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। प्रतिबंध के बाद भी वे पहले की ही तरह गुटखा खरीद और खा रहे हैं।
तंबाकू चबाने वाले 70 फीसद भारतीय : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनियाभर में 25 करोड़ लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं। इनमें से 90 फीसद सिर्फ दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में और 70 फीसद सिर्फ भारत में हैं। तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली बीमारियों की वजह से भारत पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है। वर्ष 2004 में ही यह 1800 करोड़ रुपये था।