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चारा घोटाला : लालू व जगत्राथ पर 15 को फैसला, 45 अभियुक्तों को सशरीर हाजिर होने का निर्देश

चाईबासा कोषागार से 37.70 करोड. की अवैध निकासी का मामला
आरोपी राजनेता : लालू प्रसाद, डॉ जगत्राथ मिश्र, जगदीश शर्मा, आरके राणा, ध्रुव भगत, विद्या सागर निषाद, भोला राम तूफानी (सुनवाई के दौरान मौत), चंद्रदेव वर्मा (सुनवाई के दौरान मौत)
बडे. अधिकारी : फूल चंद सिंह (तत्कालीन वित्त आयुक्त), महेश प्रसाद , बेक जूलियस, के अरुमुगम (सभी तत्कालीन पशुपालन सचिव), एसी चौधरी (तत्कालीन आयकर आयुक्त, रांची)
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश पीके सिंह की अदालत ने गुरुवार को चारा घोटाले के मामले (कांड संख्या आरसी 20ए/96) में 15 जुलाई को फैसला सुनाने की तिथि तय की है. इस दिन सभी 45 अभियुक्तों को सशरीर अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया है. चाईबासा कोषागार से अवैध ढंग से 37.70 करोड. रुपये की निकासीके इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और डॉ जगत्राथ मिर्श भी अभियुक्त हैं. विशेष न्यायाधीश ने कहा है कि अगर किसी अभियुक्त को अपनी कोई बात कहनी हो तो वह एक जुलाई तक अपना पक्ष लिखित रूप से अदालत में जमा करा दे.

सबसे बड.ा मामला : इसे चारा घोटाले का सबसे बड.ा मामला माना जाता है. इसमें डॉ जगत्राथ मिर्श और लालू प्रसाद सहित आठ राजनीतिज्ञों को अभियुक्त बनाया गया था. पांच आइएएस और एक आइआरएस अधिकारी भी शामिल हैं. हालांकि बाद में झारखंड हाइकोर्ट से आइएएस अधिकारी सजल चक्रवर्ती के विरुद्ध गठित आरोप को निरस्त कर किया. पशुपालन विभाग के आठ अधिकारियों और 26 आपूर्तिकर्ताओं ने न्यायिक कार्रवाई का सामना किया. सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से 350 गवाहों के बयान दर्ज कराये गये, जबकि बचाव पक्ष की ओर से 36 गवाहों के बयान दर्ज कराये गये. कुल 56 अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया गया था. पीके जायसवाल ने पहले ही अपना दोष स्वीकार कर लिया था. सजा भुगतने के दौरान ही जेल में उसकी मौत हो गयी. सुनवाई के दौरान ही आठ अभियुक्तों की मौत हो गयी. अभियुक्त दीपेश चांडक और आरके दास सरकारी गवाह बन गये. कुल 45 अभियुक्तों ने न्यायिक कार्रवाई का सामना किया.
लालू की गिरफ्तारी के लिए मांगी गयी थी सेना की मदद  : चारा घोटाले के इस चर्चित मामले में पटना स्थित सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश एसके लाल की अदालत में 23 जून 1997 को आरोप पत्र दायर किया था. न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट के आलोक में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को गिरफ्तार करने के लिए सीबीआइ ने सेना से एक बटालियन जवानों की मांग की थी. सीबीआइ की इस कार्रवाई से भारी हंगामा मचा था. सीबीआइ के तत्कालीन संयुक्त निदेशक यूएन विश्‍वास के खिलाफ जांच भी हुई थी. इस बीच लालू प्रसाद ने 30 जुलाई 1997 को पटना स्थिति सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत में आत्मसर्मपण किया. आत्सर्मपण के बाद उन्हें जेल भेजे जाने के मुद्दे पर पटना के तत्कालीन डीएम और वरीय अधिकारियों के बीच मतभेद हुआ.
वरीय अधिकारी लालू प्रसाद को कैंप जेल में रखना चाहते थे, जबकि तत्कालीन डीएम अमित खरे इसके लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने लालू प्रसाद को बेऊर जेल पहुंचा दिया. इसके बाद एकीकृत बिहार के वरीय अधिकारियों ने एक गेस्ट हाउस को कैंप जेल बना कर लालू प्रसाद को वहां रखा. बिहार के विभाजन से पहले तक चारा घोटाले के इस मामले में पटना स्थित सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत में सीबीआइ की ओर से 47 गवाहों के बयान दर्ज कराये गये थे.
केस ट्रांसफर करने के मुद्दे पर कानूनी विवाद : बिहार के विभाजन के बाद आरसी 20ए/96 को झारखंड में हस्तांतरित करने के मुद्दे पर सीबीआइ और लालू प्रसाद सहित अन्य अभियुक्तों के बीच एक साल तक कानूनी लड.ाई चली थी. लालू प्रसाद सहित अन्य अभियुक्त चाहते थे कि इस मामले की सुनवाई पटना स्थित सीबीआइ के विशेष न्यायालय में ही हो. जबकि सीबीआइ चाहती थी यह मामला झारखंड स्थित सीबीआइ के न्यायालय में हस्तांतरित कर दिया जाये. सीबीआइ और अभियुक्तों के बीच छिड.ी यह जंग सुप्रीम कोर्ट तक गयी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले को झारखंड में हस्तांतरित किया गया.
एक नजर में मामला आरसी 20ए/96
चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी 37.70 करोड.
पुलिस ने प्राथमिकी की 12-2-1996
सीबीआइ ने प्राथमिकी दर्ज की 27-3-1997
आरोप पत्र 23 जून 1997
आरोप गठन 5 अप्रैल 2000
कुल अभियुक्त 56
अपराध कबूल किया एक
सरकारी गवाह बने दो
सुनवाई के दौरान मरे आठ
न्यायिक प्रक्रिया का सामना किया 45
अभियोजन पक्ष के गवाह 350
बचाव पक्ष के गवाह 26
अनुसंधान अधिकारी एके झा