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श्री विधि से बंपर उपज बिहार में, बवाल दुनिया में

बिहार के नांलदा ज़िले के दरवेशपुरा गांव में एक किसान के खेत में उतनी धान पैदा हुई जितनी इससे पहले दुनिया भर में कहीं नहीं हुई थी.

ब्रितानी अख़बार गार्डियन  के पर्यावरण संपादक जॉन विडाल ने लिखा है कि किसान सुमंत कुमार के खेत में एक हेक्टयर में 22.4 टन की दर से हुई उपज उन तीन अरब से अधिक लोगों के लिए 'बहुत बड़ी ख़बर है' जिनका मुख्य भोजन चावल है.

तक़रीबन 190 साल पुराने अख़बार गार्डियन में छपी इस ख़बर के बाद जैनियों के पवित्र स्थली पावापुरी से भी आगे बसा दरवेशपुरा गांव, अधिकारियों, कृषि वैज्ञानिकों, स्वंयसेवी संस्थाओं और मिडिया का तीर्थ बन गया है - जहां चीन से लेकर, अमरीका और नीदरलैंड्स तक से लोग पहुंच रहे हैं.
हालांकि गेंहुए रंग और, छरहरे क़द-काठी वाले, सुमंत कुमार कहते हैं कि उन्हें तो पता भी नहीं था कि धान और आलू का कोई रिकॉर्ड भी होता हैं. 
वहीं किसान धनंजय सिंह कहते हैं कि "पहले ले-देके सब बराबर हो जाता है, लेकिन अब पहले से ठीक है. बच्चों को स्कूल भेज रहा हूं. घर बनवाने में भी हाथ लगा दिया है."
बीजों की तैयारी, बुआई और सिंचाई में पारंपरिक तरीक़े से अलग तरह की खेती की पद्धित अपनाने वाली इस विधि को - सिस्टम ऑफ राइस इंटेनसीफीकेशन या श्री विधि के नाम से जानते है.
इसे 'सिस्टम ऑफ़ रूट इंटेनसीफीकेशन' भी बुलाया जाता है.
हालांकि अफ्रीक़ा के मेडागास्कर में एक ईसाई पादरी की मदद से विकसित किए गए तरीक़े के समर्थकों का दावा है कि इसे दुनिया भर के तक़रीबन 40 मुल्कों के किसानों ने अपनाया है, जिससे उनकी उपज कई गुना बढ़ी है, और ज़ाहिर है बेहतर आमदनी ने उनकी ज़िंदगी में बेहतरी लाई है.
नांनद गांव के धनंजय सिंह पिछले दो सालों से इसी विधि से खेती कर रहे हैं. इस बार उन्होंने आठ बीघे खेत में गेंहू की खेती भी श्री विधि से ही की है.
वो कहते हैं, “पहले ले-देके सब बराबर हो जाता है, लेकिन अब पहले से ठीक है. बच्चों को स्कूल भेज रहा हूं. घर बनवाने में भी हाथ लगा दिया है.”
भारत के केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के हवाले से कहा गया है कि सरकार के राष्ट्रीय भोजन सुरक्षा मिशन के तहत श्री विधि को 16 राज्यों में बढ़ावा दिया जा रहा है.