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प्रीतम हत्याकांड : वन विभाग के बगीचे में हुई प्रीतम की हत्या - डीजीपी

(प्रीतम भट्टाचार्य की फाइल फोटो)
खून बयां कर रहा कत्ल की दास्तां
अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो अपने गुनाहों का सबूत जरूर छोड़ देता है.
अबतक नहीं दिखाई देनेवाले ऐसे ही सबूतों को पुलिस एफएसएल की मदद से खोज रही है. न सिर्फ उसका प्रयास रंग ला रहा है बल्कि कत्ल के कई मामलों में वह खून के जरिए ही कातिल तक पहुंचने में कामयाब रही.
सिर्फ फर्द बयानों के आधार पर नामजदों की तलाश करनेवाली बिहार पुलिस अब बयानों पर आश्रित नहीं रह
गई है. कत्ल से लेकर अपहरण और दूसरे संगीन मामलों की तह तक पहुंचने के लिए वह वैज्ञानिक अनुसंधान को आधार बना रही है. वर्ष 2012 में हुए कत्ल के कई मामलों को उसने एफएसएल की मदद से न सिर्फ सुलझाया बल्कि कातिलों के खिलाफ ठोस साक्ष्य एकत्र किए. एफएसएल के आंकड़े बताते हैं कि कुछ घटनाओं में जहां नामजद बेकसूर निकले वहीं कई मामलों में खून ही उनके खिलाफ सबूत बन गया.


अवध-असम एक्सप्रेस से गुवाहाटी से दिल्ली जा रहे प्रीतम भट्टाचार्य के मामले में भी वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिए पुलिस कातिलों तक पहुंचने में कामयाब रही. इस चर्चित मामले में प्रीतम को ट्रेन से उतारने के बाद हत्या कर शव को रेलवे लाइन पर रख दिया गया था. लेकिन कुछ दूरी पर स्थित वन विभाग के बगीचे से मिट्टी जब्त कर जांच की गई तो उसमें प्रीतम के खून का अंश मिला. यानी उसकी हत्या बगीचे में की गई लेकिन दुर्घटना का रूप देने के लिए शव को रेलवे लाइन पर फेंक दिया गया.
डीजीपी अभयानंद ने बताया कि अब पुलिस सिर्फ बयानों के आधार पर अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रही है. ज्यादा से ज्यादा मामलों में वैज्ञानिक अनुसंधान का सहारा लिया जा रहा है ताकि सही अपराधी पकड़ा जाए और उसके खिलाफ सबूत इकट्ठे किए जा सकें. इस काम में फोरेंसिंक साइंस लैब के साइंटिफिक ऑफिसर पुलिस का पूरा सहयोग कर रहे हैं. एफएसएल की रिपोर्ट के आधार पर कई मामलों को सुलझाने में पुलिस को कामयाबी मिली है.
विशेषज्ञों के मुताबिक यदि किसी शख्स के बदन और हथियार पर खून लगता है तो उसका माइक्रो या नैनो अंश (बहुत ही सूक्ष्म अंश) काफी दिनों तक मौजूद रह जाता है. भले ही उसे धो क्यों न दिया गया हो. शरीर के जोड़ वाले स्थानों के अलावा नाखून, गर्दन, मूंछ आदि जगहों पर खून लम्बे वक्त तक रहता है. कत्ल के दौरान चाकू, कुल्हाड़ी या पिस्तौल जैसे हथियारों पर लगे खून को धो दिए जाने के बावजूद ज्वाइंट या घुमावदार स्थान पर वह सुरक्षित रह जाता है.
तीन-चार महीनों तक उसकी मौजूदगी बनी रहती है. खून इतने सूक्ष्म अंश में होता है कि खुली आंखों से उसे देखा नहीं जा सकता. इस समयावधि में यदि कातिल पकड़ा जाए या हथियार मिले तो वैज्ञानिक अनुसंधान की मदद से उस सूक्ष्म अंश को खोज निकाला जाता है. हत्या के इन मामलों में भी ऐसा ही हुआ. शक के आधार पर जांच की गई और हत्यारों द्वारा किए गए खून ही उनके खिलाफ अहम सबूत बन गए.