राजेश कानोडिया, नवगछिया (भागलपुर)
आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। आज ही के दिन 1826 ईस्वी में हिंदी के पहले साप्ताहिक अखबार उदन्त मार्तंड का प्रकाशन कलकत्ता से शुरू हुआ था। संपादक थे युगल किशोर शुक्ल। यह हिंदी ही नहीं, राष्ट्रीय पत्रकारिता के लिहाज से भी एक अहम घटना थी। देश के गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र ने हिंदी में अखबार का प्रकाशन शुरू करके इस विचार को प्रमाणित किया था कि हिंदी सार्वदेशिक भाषा है। उदन्त मार्तंड से शुरू होने वाला हिंदी पत्रकारिता का सफर कई पड़ावों और नाजुक मोड़ों से गुजरता हुआ आज जिस दौर से गुजर रहा है, उसे पत्रकारिता के बाजारीकरण का दौर कहा जा सकता है। अपने जन्म के समय हिंदी पत्रकारिता समाजसेवा और राष्ट्रीय जागरण का साधन था । बाजारीकरण के दबाव में सरोकार धीरे-धीरे पीछे छूट रहे हैं और बैलेंस-शीट की चिंता प्रमुख होती जा रही है। हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर मीडिया के बढ़ते बाजारीकरण पर केंद्रित है एक विश्लेषण ।
पत्रकारिता के
बाजारीकरण के ही कारण धीरे धीरे अब इसका स्वरूप भी बदलने लगा है। दुनिया के रंगीन होने के साथ साथ
अखबार भी धीरे धीरे
ब्लैक एंड ह्वाईट से अब रंगीन होने लगा। इसके पीछे पीछे चल पडा टीवी का दौर। इसके साथ ही शुरू हो गया प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया। इस समय एक और सशक्त मीडिया का चलन शुरू हुआ है, वह है वेब मीडिया। जिसे इंटरनेट मीडिया के नाम से भी जाना जाता है। रूस में हाल के एक सर्वे ने स्पष्ट किया है कि अखबार, टीवी से भी ज्यादा खबरें
विश्व भर में इंटरनेट पर ही पढी और देखी जाती है। जिसका कारण स्पष्ट नहीं था। वहीँ पाठकों के अनुसार अब तो अखबारों में समाचार काफी कम और विज्ञापनों की भरमार बहुत ज्यादा रहती है। इसलिए अब के अखबार समाचार पत्र नहीं हो कर विज्ञापन पत्र की भूमिका निभा रहे हैं। इससे कुछ ठीक ठाक था टीवी का हाल। अब तो उसमें भी विज्ञापन का बोलबाला होने लगा है। फिलहाल ईन्टरनेट की समाचार साइटों में विज्ञापन की मात्रा काफी कम चल रही है। इसलिए इसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। दूसरा कारण पाठक लोग बताते हैं कि इंटरनेट समाचार हमें काफी जल्दी मिल जाते हैं। अखबारों के समाचार तो काफी विलम्ब से मिलते हैं।
इंटरनेट समाचार को हम जब मन चाहे तब देख और पढ़ सकते हैं। इसीलिए अधिकाँश अखबारों और टीवी चैनलों ने भी अपने अपने इंटरनेट साईट भी चालु कर दिए हैं।