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खास जानकारी: दाखिल-खारिज का मतलब मालिकाना हक नहीं- सुप्रीम कोर्ट

खास जानकारी: दाखिल-खारिज का मतलब मालिकाना हक नहीं- सुप्रीम कोर्ट


वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा वसीयत करनेवाले की मृत्यु के बाद ही

मालिकाना हक केवल सक्षम दीवानी अदालत ही कर सकती है तय

 नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि राजस्व रिकॉर्ड में संपत्ति के दाखिल खारिज (म्यूटेशन प्रविष्टि) से न तो संपत्ति का स्वामित्व बनता है और न ही समाप्त होता है. इस तरह की प्रविष्टियां केवल भू-राजस्व हासिल करने के लिए प्रासंगिक हैं. किसी संपत्ति के दाखिल खारिज का अर्थ स्थानीय नगर निगम या तहसील प्रशासन के राजस्व रिकॉर्ड में स्वामित्व का हस्तांतरण या परिवर्तन है. 

शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया. इस दौरान अदालत ने अपने पुराने फैसलों का भी जिक्र किया. दरअसल, मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने रीवा मंडल के अतिरिक्त आयुक्त द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया गया था, जिसमें एक व्यक्ति ने वसीयत के आधार पर म्यूटेशन की मांग की थी. जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि यदि स्वामित्व के संबंध में कोई विवाद है और विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर म्यूटेशन प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो ऐसे में स्वामित्व का दावा करनेवाले को उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा. कोर्ट ने कहा कि आवेदक के अधिकारों को केवल सक्षम दीवानी अदालत के जरिये ही हासिल किया जा सकता है. अदालत के निर्णय के आधार पर जरूरी म्यूटेशन प्रविष्टि की जा सकती है. पीठ ने कहा कि वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा वसीयत करनेवाले की मृत्यु के बाद ही किया जा सकता है.

यूएपीए के मामलों में जांच पूरी करने का समय बढ़ाने के लिए मजिस्ट्रेट सक्षम प्राधिकार नहीं सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामलों में जांच पूरी करने का समय बढ़ाने के लिए मजिस्ट्रेट सक्षम अधिकारी नहीं होंगे. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अनुरोध पर विचार करने के लिए एकमात्र सक्षम प्राधिकार राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालतें होंगी. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह व्यवस्था दी.