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चीनी पर आयात शुल्क 25% बढ़ा, बढ़ सकते हैं चीनी के दाम


रेल किराए में बढोतरी के बाद मोदी सरकार देशवासिओं को एक और झटका देने जा रही है। खबर है कि चीनी के दाम बढ़ सकते हैं। केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि सरकार ने चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाकर 40% किया है, इससे पहले 15% था। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि आयात शुल्क बढ़ने से चीनी महंगी हो जाएगी। हालांकि पासवान के कहा कि चीनी महंगी नहीं होगी क्योंकि हमारे पास पर्याप्त भंडार है।
सरकार ने नकदी संकट से जूझ रहे चीनी मिल उद्योग को और 4,400 करोड़ रुपए का ब्याज-मुक्त ऋण सुलभ कराएगी ताकि मिले गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान कर सकें। चीन मिलों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने चीनी पर आया शुल्क भी 15% से बढ़ाकर 40% कर दिया है तथा चीनी के लिए 3,300 रुपए प्रति टन की निर्यात सब्सिडी की अवधि बढ़ाकर सितंबर तक कर दी है। सरकार यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास करेगी कि पेट्रोल में 10% एथनॉल मिश्रण की पक्की व्यवस्था हो सके।
ये फैसले प्रधानमंत्री के निर्देश पर खाद्य मंत्री राम विलास पासवान द्वारा बुलाई गई उच्च-स्तरीय बैठक में किए गए। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र और मंत्रिमंडल सचिव अजित सेठ भी इस बैठक में मौजूद थे।
बैठक के बाद पासवान ने कहा, हमने चार प्रमुख फैसले किए। हमने चीनी मिलों को उनके द्वारा चुकाए जाने वाले उत्पाद शुल्क के विरूद्ध तीन साल की बजाय 5 साल के लिए ब्याज-मुक्त ऋण देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि चीनी मिले अब बैंकों से कुल 4,400 करोड़ रुपए तक का अतिरिक्त ब्याज मुक्त ऋण प्राप्त कर सकेंगी।
पासवान ने कहा कि इससे मिलों के पास नकदी का प्रवास सुधरेगा और उन्हें किसानों के बकाए का भुगतान करने में आसानी होगी।  पासवान ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्री ने पेट्रोल में 10% एथनॉल मिलाने का आश्वासन दिया है। फिलहाल 2% एथनॉल भी नहीं मिलाया जाता।
गन्ना बकाए पर चिंता जाहिर करते हुए पासवान ने कहा, केंद्र गन्ने की कीमत तय करता है लेकिन कुछ राज्य अपेक्षाकृत उंची कीमत तय कर रहे हैं जिससे मिलों पर दबाव पड़ रहा है। मूल्य निर्धारण के संबंध में विचारों की समग्रता होनी चाहिए। चीनी उद्योग पिछले कुछ साल से लागत बढ़ने और बिक्री मूल्य में कमी के कारण नकदी संकट से जूझ रहा है।
फिलहाल देश भर में गन्ने के लिए 11000 करोड़ रुपए का भुगतान करना है और सबसे अधिक 7,200 करोड़ रुपए का भुगतान उत्तर प्रदेश में किया जाना है। यह भी आंशका है कि यदि सस्ते आयात पर नियंत्रण नहीं लगाया जा सका तो घरेलू कीमत और घटेंगी।