निर्भीक कलम की प्रतिभा के धनी राष्ट्रकवि गोपाल सिंह नेपाली अपनी अंतिम यात्रा के पहले नवगछिया से लौट रहे थे। वे यहां सैदपुर में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद कहलगांव से ट्रेन में सवार हुए थे। उनकी लाश भागलपुर स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बे से निकाली गई थी। 17 अप्रैल 1963 को जनकवि नेपाली की मौत की खबर रेडियो के कार्यक्रमों को रोक कर
प्रसारित होने लगी थी। राजकीय शोक घोषित हुआ था। भागलपुर शहर से विशाल शवयात्रा बरारी घाट तक पहुंची, जिसमें चालीस हजार से अधिक लोग शामिल थे। इनकी अंत्येष्टि तत्कालीन जिलाधिकारी बैद्यनाथ बसु की देखरेख में हुई थी। यह बात गोपाल सिंह नेपाली आंदोलन के राष्ट्रीय प्रणेता पारसकुंज ने रविवार को नवगछिया में कही। उन्होंने यह भी बताया कि गोपाल सिंह नेपाली गांव-गांव और शहर-शहर में उस समय अपनी कविता हिमालय की पुकार को लेकर काफी मशहूर हो चुके थे। नवगछिया (सैदपुर) के कार्यक्रम में राष्ट्रकवि दिनकर भी आए थे। कार्यक्रम में गोपाल सिंह नेपाली की कविता खूब गूंजी थी। पारस कुंज ने यह भी बताया कि आज तक नेपाली जी की मौत रहस्य ही बनी हुई है। भागलपुर प्रशासन द्वारा आज तक उनका मृत्यु प्रमाण-पत्र भी निर्गत नहीं किया है। उनकी मौत अस्वाभाविक हुई थी, फिर भी शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था। नेपाली जी की मृत्यु के पीछे कोई षडयंत्र जरूर था जिसका खुलासा नहीं हो पाया। नेपाली और उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। शब्द यात्रा पत्रिका के माध्यम से वर्ष 2004 से ही पूरे देश में अलख जगाया जा रहा है। नेपाली की रचना को मन्ना डे, रफी, सुरैया, आशा भोंसले व लता ने संगीत दिया है। शब्द यात्रा पत्रिका के अध्यक्ष पारसकुंज, संयोजक नरेश चोपड़ा ने रविवार को गोष्ठी के दौरान ये बातें बताई। मौके पर भाजपा के जिला उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार भगत सहित अन्य लोग मौजूद थे।
प्रसारित होने लगी थी। राजकीय शोक घोषित हुआ था। भागलपुर शहर से विशाल शवयात्रा बरारी घाट तक पहुंची, जिसमें चालीस हजार से अधिक लोग शामिल थे। इनकी अंत्येष्टि तत्कालीन जिलाधिकारी बैद्यनाथ बसु की देखरेख में हुई थी। यह बात गोपाल सिंह नेपाली आंदोलन के राष्ट्रीय प्रणेता पारसकुंज ने रविवार को नवगछिया में कही। उन्होंने यह भी बताया कि गोपाल सिंह नेपाली गांव-गांव और शहर-शहर में उस समय अपनी कविता हिमालय की पुकार को लेकर काफी मशहूर हो चुके थे। नवगछिया (सैदपुर) के कार्यक्रम में राष्ट्रकवि दिनकर भी आए थे। कार्यक्रम में गोपाल सिंह नेपाली की कविता खूब गूंजी थी। पारस कुंज ने यह भी बताया कि आज तक नेपाली जी की मौत रहस्य ही बनी हुई है। भागलपुर प्रशासन द्वारा आज तक उनका मृत्यु प्रमाण-पत्र भी निर्गत नहीं किया है। उनकी मौत अस्वाभाविक हुई थी, फिर भी शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था। नेपाली जी की मृत्यु के पीछे कोई षडयंत्र जरूर था जिसका खुलासा नहीं हो पाया। नेपाली और उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। शब्द यात्रा पत्रिका के माध्यम से वर्ष 2004 से ही पूरे देश में अलख जगाया जा रहा है। नेपाली की रचना को मन्ना डे, रफी, सुरैया, आशा भोंसले व लता ने संगीत दिया है। शब्द यात्रा पत्रिका के अध्यक्ष पारसकुंज, संयोजक नरेश चोपड़ा ने रविवार को गोष्ठी के दौरान ये बातें बताई। मौके पर भाजपा के जिला उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार भगत सहित अन्य लोग मौजूद थे।