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जानिये- किस दर्दनाक कहानी का हिस्सा है 'मजदूर दिवस'

नव-बिहार समाचार / राजेश कानोडिया। एक बात समझ नहीं आती, मजदूर को ‘मजदूर’ क्यों कहते हैं? क्या कोई और नाम नहीं हो सकता। ये शब्द कुछ-कुछ ‘मजबूर’ जैसा लगता है लेकिन मजदूर का काम इस शब्द से बिलकुल अलग और बिलकुल यूनिक है। मुश्किल है दुनिया के कोई भी प्रोफेश्नल इनका काम कर पाए और इनके जैसा बन पाए।

दुनिया में कितने ही मजदूर है जो मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं। ये मजदूर काफी कम मजदूरी में काफी बड़ा काम कर जाते हैं जो शायद हमारे बस का नहीं होता। इनका मकसद सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट भरना होता है इन्हीं मजदूरों के लिए साल भर में एक दिन होता हैं ‘मजदूर दिवस’।

मजदूर दिवस मई महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। आमतौर पर कई देशों में कई कंपनियों में मजदूरों को इस दिन छुट्टी दी जाती है। इस दिन मजदूर दिवस मनाने के पीछे भी एक दर्दनाक कहानी छुपी है। दरअसल 1886 में अमेरिका में जब मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की सीमा अधिकतम 8 घंटे करने की मांग की तो सरकार मानी नहीं।

इसके परिणाम स्वरूप मजदूरों ने हड़ताल की, इस दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो के हेय मार्केट में बम फोड़ दिया, इसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं जिसमें सात मजदूरों की मौत हो गई। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी गई।

तभी से अंतराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता हैं। इसे मनाने की शुरूआत 1886 से शिकागो से ही की गई थी। इसके बाद इसका चलन पूरी दुनिया में हो गया। मौजूदा समय में भारत सहित विश्व के अधिकतर देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून बना हुआ है अगर भारत की बात की जाए तो भारत में मजदूर दिवस की शुरूआत 1 मई 1923 को चेन्नई से हुई थी।

भारत में मजदूरी करने का एक बड़ा कारण अशिक्षा है लेकिन एक दूसरा कारण बेरोजगारी भी है। आज कई पढ़े-लिखे लोग भी मजदूर बनने के लिए मजबूर है। बात अगर इनकी मजदूरी की करें तो ये कई नामी कंपनियों में तो तय है लेकिन कई जगहों पर जहां खुली मजदूरी चलती है वहां इनके मेहनताने की कीमत जरा कम ही आंकी जाती है। सरकार इनकी मजदूरी तय तो करती है लेकिन इन्हें इनका हक बमुश्किल ही मिल पाता है।