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एक-दूसरे को आंखें क्यों दिखा रहे हैं बीजेपी- शिवसेना


एक अभूतपूर्व बदलाव के साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जब से महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताई है, इससे पिछले तीस साल से सूबे में गठबंधन साझेदार बीजेपी को जोरदार झटका लगा है। ठाकरे परिवार में ये परंपरा रही है कि वो पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करते हैं और किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं, लेकिन इस बार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया है कि वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की जिम्मेदारी से संकोच नहीं करेंगे। ये उद्धव ठाकरे की बीजेपी के प्रभुत्व पर रोक लगाने की कूटनीतिक चाल है, जो पिछले 25 साल से सूबे में दूसरे नंबर पर राजनीति कर रही है।
शिवसेना के वरिष्ठ नेता दिवाकर रवाते के मुताबिक कम से कम महाराष्ट्र में हमलोग बीजेपी के प्रभुत्व को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हमलोग सिर्फ अपने नेता स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे को ही सम्मान देते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सक्षम नेता हैं और उनमें क्षमता भी है कि वो वोटों को आकर्षित करने में भी सक्षम हैं। इसके बाद भी हम बाला साहेब ठाकरे के अलावा किसी और को स्वीकार नहीं करेंगे। हमलोग सत्ता के भूखे नहीं है, हमारे लिए आत्मसम्मान सबसे अहम है।
गौरतलब है कि 80 के दशक में स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने शिवसेना-बीजेपी साझेदारी में अहम भूमिका निभाई थी। तब से शिवसेना का सूबे की राजनीति पर प्रभुत्व है। ये सच्चाई है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को कुछ शक्तियां शिवसेना के मदद से ही मिल सकती है। साल 1985 के बाद, शिवसेना ने अपना आधार ग्रामीण महाराष्ट्र में भी फैलाया है और वर्तमान में वो अकेली ऐसी पार्टी है जिसका शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में मजबूत जनाधार है।
सूबे में बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे के देहांत के बाद राजनीतिक परिदृश्य में प्रचंडरूप से बदलाव आया है। मुंडे ने ‘महा-युती’ के द्वारा छोटे टुकड़ों में बंटे शेतकारी संगठन, मराठा महासंघ और आरपीआई को एक साथ लाने का काम किया था। छोटे स्थानीय समूह से होने वाले खतरे को देखते हुए मुंडे ने स्वाभिमान संगठन, आरपीआई अठावले ग्रुप, शिवसंग्राम पार्टी, राष्ट्रीय समाज पक्ष से साझेदारी की। ये सूबे में ओबीसी और दलितों को एक साथ लाकर मराठा प्रभुत्व वाली पार्टी एनसीपी को पटखनी देने की उनकी कूटनीतिक चाल थी।
इस तरह से दिल्ली में सड़क दुर्घटना में मौत के बाद, सूबे के मराठी राजनीति में अचानक अवरोध उत्पन्न हो गया और इस पर गुजराती समुदाय का प्रभुत्व हो गया। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने प्रभुत्व कायम करने के लिए कसम खाई और सहयोगी दल, शिवसेना पर अपनी शर्ते लागू करने लगे। जो शिवसेना के लिए अस्वीकार्य है। नितिन गडकरी, यूनियन ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर जो शिवसेना के साथ गठबंधन के समर्थन में नहीं हैं। वो दिल्ली की राजनीति में होते हुए भी महाराष्ट्र के चुनाव में पार्टी की नीतियों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। ये भी साफ है कि नितिन गडकरी की अगुआई में तीन खास टीमों ने सूबे में स्टेट एसेंबली सीटों के लिए गहन अध्यन किया है, जिस पर 2009 में शिवसेना हार गई थी और उन्हें जीतने पर दोबारा से विचार किया था।
गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद स्टेट बीजेपी में कोई बड़ा नेता नहीं बचा। यद्यपि, उनकी बेटी पंकजा मुंडे-पल्वे पूरे सूबे में ‘संघर्ष यात्रा’ शुरू कर रही हैं। इसके बाद भी सूबे में मुख्यमंत्री पद के कई हकदार हैं। देवेंद्र फड़वानविस, स्टेट बीजेपी चीफ एकनाथ खड़से, वरिष्ठ बीजेपी नेता और स्टेट कॉउंसिल में नेता विपक्ष विनोद तावड़े भी मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं। इस तरह से कोई एक नेता उस कद का नहीं है जो मुख्यमंत्री पद का दावेदार हो। जिसे देखते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अचानक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की अपनी इच्छा के बारे में घोषणा कर दी।
साल 2009 में शिवसेना ने 171 सीट और बीजेपी ने 117 सीट का फार्मूला अपनाया था। शिवसेना 44 सीटें जीती थी और बीजेपी 46 सीटें। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने महाराष्ट्र में आम चुनाव में 42 सीटें जीती और इस जीत के बाद बीजेपी पुराने सीट बंटवारे की पद्धति से नाराज है। बीजेपी 288 सीटों की महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में आधा सीट यानी 144 सीटे चाहती है, जिससे वो सत्ता में अपने दम पर आ सके। जिसका शिवसेना पूरी तरह से विरोध कर रही है। संभव है बीजेपी-शिवसेना गठबंधन अंतत: सीट शेयरिंग के मसले का हल निकाल लें, लेकिन उनके विचारधारा में ये बढ़ती तुलना भविष्य में इस साझेदारी के लिए ठीक नहीं है।