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खास खबर : राज्यपाल बेनीवाल की बर्खास्तगी पर विवाद


नमस्कार... मैं रवीश कुमार। इस देश में कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो बिना कांग्रेस बीजेपी के अधूरे लगते हैं। उन मुद्दों में दोनों की भागीदारी में बस समय और मात्रा का फेर रहता है, मगर रहते दोनों हैं। वैसे सरकार बदलने पर राज्यपालों की बर्खास्तगी की औपचारिक शुरुआत 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के साथ होती है, जिसे सभी सरकारों ने बरकार रखा।

मगर पहले आप मिलिये बीए कॉमर्स प्रथम वर्ष की छात्रा स्वप्ना से जो आज पहली बार किसी के खेत में मजदूरी करके आ रही है। 100 रुपये की कमाई हुई जिससे वह कॉलेज के लिए बस पास बनवाएगी। स्वप्ना के पिता किसान थे, जिन्होंने दो हफ्ते पहले आत्महत्या कर ली, क्योंकि कर्ज़ बहुत बढ़ गया था बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे थे।

पिछले दो महीने में तेलंगाना में 110 किसानों ने आत्महत्या की है। वारगंल ज़िले में ही ऐसी 30 आत्महत्याएं हुई हैं। सुरेश भी उस किसान का बेटा है जिसके नाम पर आपके नेता ऐसी ऐसी कसमें खा लें कि आपसे खाना न हजम हो। मगर इसके पिता ने भी आत्महत्या कर ली तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का ख़्वाब धरा का धरा रह गया। हमारी सहयोगी उमा सुधीर की रिपोर्ट का यह हिस्सा है।


किसान के आत्महत्या करने से संविधान पर कोई संकट नहीं आता है। अब जिसके हटा देने से आया है या नहीं आया है उसकी बात करते हैं। मिज़ोरम की राज्यपाल कमला बेनीवाल को बर्ख़ास्त कर दिया गया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को उनकी बर्ख़ास्तगी की फाइल पर दस्तखत कर दिए। कमला बेनीवाल ने इस्तीफ़ा नहीं दिया तो मिज़ोरम तबादला कर दिया गया।

सरकार कह रही है कि उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले हैं। सूत्रों ने आधिकारिक रूप से बताया कि गुजरात का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कई हवाई यात्राएं की जो अनाधिकृत थीं। 2011−2014 के बीच बेनीवाल ने सरकारी विमान से 63 हवाई यात्राएं कीं। इनमें से वे 53 बार जयपुर गईं। कमला बेनीवाल का घर जयपुर में है, जहां वे अपने घर में ही ठहरती थीं।

सरकारी विमान से उड़ने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है और एक राज्यपाल को स्टेशन छोड़ने से पहले केंद्रीय गृहमंत्रालय को सूचना देनी होती है। फिर राज्यपाल की यात्रा अनाधिकृत कैसे हो गई। वह भी एक नहीं 63 बार। क्या राज्य सरकार ने तब कोई आपत्ति की थी। क्या कमला बेनीवाल ने कोई अधिकृत यात्रा भी की थी, उसकी प्रक्रिया क्या थी?

1953 में कमला बेनीवाल एक कृषि सहकारी समिति की सदस्य बनी, जिसे खेती के लिए 218 एकड़ बंजर ज़मीन दी गई। 1954 में कमला बेनीवाल राजस्थान की पहली महिला मंत्री बनती हैं। साल 2000 में इस ज़मीन का 119 एकड़ हिस्सा सरकार ने वापस ले लिया। समिति को बदले में 209 प्लॉट्स काट कर बाज़ार से कम दर पर दिया। 18 सदस्यों ने इन प्लॉट्स को आपस में बांट लेने के लिए प्रस्ताव पास किया। उन्होंने दलील दी कि 50 सालों से इस ज़मीन पर 14−16 घंटे श्रम दान किया है। डिप्टी रजिस्टार ने इस पर सवाल उठा दिया कि ग़लत है। डिप्टी सीएम रहते हुए बेनीवाल ने कब 16 घंटे मज़दूरी की। इस मामले को किरीट सौमैया ने 2012 में मामला बनाया। इस वक्त यह मामला कोऑपरेटिव के ट्राइब्यूनल के पास है।

इसीलिए शुरुआत तेलंगाना के उन 110 किसानों से की जिन्होंने आत्महत्या कर ली है। राजस्थान की एक किसान कथित रूप से 16 घंटे खेती कर राज्यपाल तक बन गईं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन को भी ऑगस्टा वेस्टलैंड से 12 हेलीकॉप्टर की ख़रीद के मामले में पूछताछ के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा, लेकिन उन्हें लेकर कोई हंगामा नहीं हुआ।

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी और राज्यपाल रहते हुए कमला बेनीवाल के बीच टकराव के अनेक किस्से हैं। नरेंद्र मोदी कमला बेनीवाल पर तब ख़ूब आरोप भी लगाया करते थे। अब विरोधी कह रहे हैं कि इसका बदला लेने के लिए एक बुज़ुर्ग महिला का तबादला मिज़ोरम किया गया। दो महीने बाद वह रिटायर हो जातीं, लेकिन बर्ख़ास्त किया गया। 87 साल की महिला की बर्खास्तगी का मामला संवैधानिक है, तो क्या कांग्रेस कोर्ट जाएगी या उनकी उम्र और महिला होने के आधार पर सहानुभूति बटोरने का प्रयास हो रहा है।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन को ऑगस्टा वेस्टलैंड से हेलीकॉप्टर ख़रीद मामले में पूछताछ के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा पुड्डुचेरी के राज्यपाल को बर्खास्त किया गया, तब ऐसा हंगामा क्यों नहीं हुआ? कमला बेनीवाल को लेकर हंगामा क्यों हो रहा है? क्या बीजेपी बदले की भावना से कार्रवाई करने पर तुली हुई है। एक सरकारी विमान से वह चार साल तक अनाधिकृत रूप से उड़ती रहीं, यह किसकी जवाबदेही बनती है। तब राज्य सरकार ने कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई थी। और यह जानकारी थी ही तो तबादले से पहले क्यों नहीं बर्ख़ास्त कर दी गईं। बीजेपी राजस्थान ज़मीन घोटाले के मामले को पहले भी उठाती रही क्या उस आधार पर पहले कार्रवाई नहीं बनती थी।

दरअसल सब इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि जो भी पार्टी सत्ता में आती है, राज्यपाल उसकी मर्ज़ी का होना चाहिए। कांग्रेस ने भी 2004 में यूपी के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री, गुजरात के राज्यपाल केदारनाथ साहनी को कैसे हटाया था आप राजनीति के किसी पुरनिया से पूछ लीजिएगा।

तब आनंद शर्मा बयान दे रहे थे कि हटाये गए चारों राज्यपाल विपक्ष के नेता एलके आडवाणी और बीजेपी के अध्यक्ष वेंकैया नायडू से निर्देश ले रहे थे। वहीं तब अरुण जेटली कह रहे थे कि राज्यपालों का हटाया जाना संवैधानिक नियमों के खिलाफ है, जो राज्यपाल को पांच साल का कायर्काल सुनिश्चित करता है।
 
अरुण जेटली कहते थे कि ठोस कारण हों तभी हटाया जाना चाहिए। तब बीजेपी ने नई संसद के पहले सत्र में हंगामा किया था, आज कांग्रेस कर रही है। कांग्रेस कोर्ट में जाएगी या नहीं, मगर बीजेपी गई थी। जिसके बाद 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया राज्यपाल को हटाने के मामले में राष्ट्रपति का अधिकार अंतिम और बेरोकटोक नहीं होना चाहिए। राज्यपाल का काम सरकार की नीतियों को लागू करना नहीं है। राष्ट्रपति की कृपा यानी प्लेज़र का सिद्धांत सामंती है। लोकतंत्र में मनमानी की कोई जगह नहीं है।

इसके बाद भी राज्यपाल हटाये जा रहे हैं। दलीलों ने बस संसद में अपनी बेंच बदल ली है। सरकार की तरफ़ जाकर बीजेपी कांग्रेस की तरह बोलती लग रही है और बीजेपी की तरफ़ आकर कांग्रेस बीजेपी जैसी। कमला बेनीवाल का मामला इस्तीफ़ा देनेवाले या बर्खास्त होने वाले राज्यपालों से कैसे अलग है? क्या यह सवाल इसलिए अधमरा सा है, क्योंकि पहले भी होता रहा है। यही होता रहेगा।