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सरकार ने SC का फैसला पलटा, दागी नेताओं को राहत



दो साल से ज्यादा की सजा पाने वाले नेताओं को बड़ी राहत मिली है। कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए नए अध्यादेश की मंजूरी दे दी है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद दो साल से ज्यादा सजा पाए नेताओं की सदस्यता नहीं जाएगी।
अगर किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दो साल से ज्यादा की सजा मिलती है तो भी उसकी सदस्यता नहीं छिनेगी।
सजायाफ्ता नेताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को पलटते हुए कैबिनेट ने अध्यादेश मंजूर कर लिया। कई राजनीतिक दल इसकी दिखावटी निंदा करते जरूर दिखे लेकिन किसी ने भी दागियों की गद्दी बचाने के खिलाफ आंदोलन का ऐलान नहीं किया। और इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला बेअसर हो जाएगा जिसे भारतीय राजनीति को अपराधियों से आजाद करने की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा था।
नेताजी दागी भी हैं तो कोई दिक्कत नहीं है। अब कानूनन आप उनकी गद्दी नहीं छीन सकेंगे। भले ही इंसाफ की अदालत उन्हें किसी भी आपराधिक मामले में दो साल से ज्यादा की कैद क्यों न सुना दे। अगर वो सांसद हैं तो सांसद बने रहेंगे और अगर वो विधायक हैं तो विधायक बने रहेंगे। 2 साल से ज्यादा की सजा के आधार पर उनकी सदस्यता नहीं छिनेगी।
लालू को मिलेगा फायदा
राजनीतिक के अपराधीकरण को खत्म करने के लंबे चौड़े उद्देश्य के साथ दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार ने आखिरकार पलटने का हथियार हासिल कर लिया। केंद्रीय कैबिनेट ने जिस अध्यादेश को मंजूरी दी है उससे सीधा फायदा आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को मिलेगा। 30 सितंबर को लालू के खिलाफ चारा घोटाले में फैसला आने वाला है, फैसला इस बात का कि वो दोषी हैं या नहीं, फैसला इस बात की वो चारा घोटाले में दोषी हैं तो उन्हें सजा कितनी दी जाए।
जाहिर है लालू को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का शुक्रगुजार होना चाहिए जिनकी अगुवाई में हुई कैबिनेट की बैठक में सज़ायाफ्ता नेताओं की सदस्यता रद्द करने के खिलाफ अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी गई। हालांकि इससे जुड़े जनप्रतिनिधित्व विधेयक को मंज़ूरी के लिए स्थायी समिति को भेज दिया गया है। यानी स्थायी समिति की सिफारिश पर संसद में चर्चा के बाद विधेयक में बदलाव हो सकते हैं। लेकिन सजायाफ्ता सांसद, विधायक को वेतन नहीं मिलेगा, दूसरे लाभ और सदन में वोट देने का अधिकार भी नहीं मिलेगा। अध्यादेश लाने के पीछे तर्क ये दिया गया कि अगर सदस्यता ले ली गई और बाद में अगर हाई कोर्ट ने बरी कर दिया तो फिर सदस्यता लौटाई नहीं जा सकेगी। बीजेपी ने अध्यादेश पर आपत्ति जताते हुए इसे जल्दबाज़ी में उठाया गया कदम बताया है। वहीं जेडीयू ने इसका स्वागत किया है।
ऐतिहासिक था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों को ऐतिहासिक माना गया था। कोर्ट ने सांसदों और विधायकों को जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत मिली एक खास छूट को खत्म कर दिया था। कोर्ट ने पहले फैसले में साफ कर दिया था कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी भी अदालत से दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता तुरंत खत्म हो जाएगी। अभी तक जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत इन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए तीन महीने की छूट थी। कोर्ट के दूसरे फैसले के तहत हवालात या जेल जाने की सूरत में वोट देने का अधिकार छिन जाता और वो शख्स चुनाव तक नहीं लड़ पाता।
सुप्रीम कोर्ट के पहले फैसले को पलटने के लिए सरकार ने कोशिश की, लेकिन राज्यसभा में एकराय नहीं बन सकी और बिल लटक गया लेकिन दूसरे फैसले के खिलाफ बाकायदा दोनों सदनों में जनप्रतिधित्व कानून में बदलाव कर दिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने तीखा विरोध किया था। दलील दी थी कि संसद ने सोच-समझकर जन प्रतिनिधियों को दोषी करार दिए जाने पर ऊपरी अदालत में अपील के लिए तीन महीने की ये छूट दी है।
क्या दलीलें दी थीं सरकार ने?
अगर ये छूट नहीं हो, तो सरकारें हर समय खतरे में रहेंगी। कभी भी किसी सांसद या विधायक को सजा होती है, तो उसकी सदस्यता जाने के कारण सरकार को भी खतरा हो सकता है। इसके अलावा दूसरा बड़ी दिक्कत उस सीट पर दोबारा चुनाव कराना होगा। लेकिन कोर्ट ने सरकार की तमाम दलीलों को सिरे से नकार दिया था। कोर्ट ने कहा था अगर कोई व्यक्ति दो साल या दो साल से ज्यादा की सजा होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकता, तो सांसद और विधायकों को पद पर बने रहने की छूट क्यों हो।
लेकिन अब आम और खास का वो भेद दोबारा खड़ा हो गया है। अब अगर आप सांसद हैं, विधायक हैं, तो दो साल से ज्यादा की कैद होने पर भी आपकी सदस्यता नहीं छिनेगी। ऐसे में सवाल उठेंगे ही कि आखिर भारतीय राजनीति को अपराधियों से आजाद कैसे करवाया जाएगा। आखिर भारतीय राजनीति को शुद्ध कैसे किया जाएगा। राजनीति में भीड़ लगी है दागी नेताओं की। कुछ संसद में हैं तो कुछ राज्य की विधानसभाओं में। हम ऐसे ही कुछ दागी नेताओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें आज सरकार के फैसले से जश्न मनाने का मौका मिला है।
कुल 162 दागी सांसद
दरअसल लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानि संसद में 162 दागी सांसदों को जगह मिल गई। अलग-अलग मामलों में दाग लगे हैं। इनमें से 76 सासंद ऐसे हैं जो अगर दोषी पाए गए तो उन्हें पांच साल से ज्यादा की सजा हो सकती है। राज्यों के लोकतंत्र के मंदिर में भी दागियों की कमी नहीं है। अलग-अलग राज्यों के 1450 विधायकों पर आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से 30 फीसदी अगर दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें भी पांच साल से ज्यादा की सजा मुमकिन है।
इन पर लटकी थी तलवार
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तलवार अगर फौरी तरह पर किसी पर लटक रही थी तो वो हैं आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रशीद मसूद।
1. लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामला चल रहा है। इस मामले में फैसला 30 सितंबर को आना है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि उन्हें सजा मिल सकती है।
2. रशीद मसूद कांग्रेस के सांसद हैं। इन्हें मेडिकल कॉलेज की सीट अवैध तरीके से बांटने के 20 साल पुराने मामले में दोषी ठहराया गया है। उनकी भी सजा का ऐलान बाकी है।
3. आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन रेड्डी 16 महीने की जेल से छूट गए हैं। उन्हें मंगलवार को जमानत मिल गई। उनपर आय से अधिक का मामला है। सीबीआई उनके खिलाफ चार्जशीट कर चुकी है।
4. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदुप्पा पर गैरकानूनी खनन के मामले में आरोप लगे हैं। मामला अदालत में चल रहा है। ये फिर से बीजेपी के साथ जाने की सोच रहे हैं।
5. केंद्र सरकार में कभी दूर संचार मंत्री रहे डीएमके के सांसद ए राजा को फिलहाल जमानत पर हैं। उनपर एक लाख 70 हजार करोड़ के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोप तय हो चुके हैं।
6. राज्यसभा सासंद और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि की बेटी कनीमोझी भी जेल यात्रा कर चुकी है। फिलहाल वो जमानत पर हैं। कनीमोझी पर भी उनपर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोप तय हो चुके हैं।
7. अगला नाम है महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का। इनपर आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले में शामिल होने का आरोप है। इनपर भी जांच एजेंसी आरोप तय कर चुकी है।
8 (नया) पुणे से सांसद सुरेश कलमाडी 2011 में गिरफ्तार हुए थे। कॉमनवेल्थ घोटाले में 9 महीने तिहाड़ जेल में रहे। फिलहाल अदालत में उनके केस की सुनवाई चल रही है।
9. विधायक अमित शाह- गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के दाहिने हाथ और राज्य के पूर्व गृह राज्य मंत्री, इनका नाम सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में सुर्खियों में आया। तीन महीने उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। केस अभी चल रहा है। विधायक गुलाब चंद कटारिया राजस्थान में बीजेपी का एक और चेहरा। कटारिया भी राजस्थान में बीजेपी की सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं, इनका नाम भी सोहराबुद्दीन इनकाउंटर केस में उठा था और सीबीआई ने बाकायदा इन्हें भी आरोपी बनाया है।
10. उत्तर प्रदेश के पूर्व माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्रा पर लैकफेड घोटाले में शामिल होने का आरोप है।
11. उत्तर प्रदेश के ताकतवर नेता और माया सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले में इस वक्त जेल में हैं।
12. मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री राघव जी फिलहाल यौन शोषण के मामले में फंसे हैं।
13. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भ्रष्टाचार के मामले में काफी दिनों तक जेल में बिता आए हैं। फिलहाल जमानत पर हैं। फिलहाल इन सब की सदस्यता सुरक्षित है।
क्या-क्या है मामले
आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को मिलेगा। 30 सितंबर को लालू के खिलाफ चारा घोटाले में फैसला आने वाला है, फैसला इस बात का कि वो दोषी हैं या नहीं, फैसला इस बात की वो चारा घोटाले में दोषी हैं तो उन्हें सजा कितनी दी जाए। रशीद मसूद कांग्रेस के सांसद हैं। इन्हें मेडिकल कॉलेज की सीट अवैध तरीके से बांटने के 20 साल पुराने मामले में दोषी ठहराया गया है। उनकी भी सजा का ऐलान बाकी है।
नए अध्यादेश के मुताबिक सांसद और विधायक सदन के सदस्य बने रहेंगे। लेकिन उनको वोटिंग का अधिकार नहीं मिलेगा और ना ही उनको वेतन मिलेगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दो साल से ज्यादा सजा होने पर तुरंत सदस्यता खत्म हो जाएगी। हालांकि विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अध्यादेश का विरोध किया है। सुषमा स्वाराज ने ट्विट करते हुए इस अध्यादेश को असंवैधानिक करार दिया है।