एक स्कूल की जगह में कब्रिस्तान उभर आया है। जो बच्चो की मौत से भरे दर्द की दास्तान का
कब्रिस्तान है | जहां वो मासूम दफन हैं जिन्हें खाने के बदले मिली थी मौत। उसी स्कूल का मैदान बन गया है कब्रिस्तान |
हम बात कर रहे हैं छपरा ( बिहार ) के
धर्मसती गांव स्थित उस स्कूल के मैदान की | जिसके नक्से में अचानक एक कब्रिस्तान उभर आया है।
कल
तक जहां पूरा गांव अपने बच्चों की शरारतें देखकर खुशी से चहचहाता था, अब इस
गांव में भी मुर्दानगी का बसेरा है। एक हादसे ने समूचे गांव की खुशियां ही
छीन ली। इस गांव
की बर्बादी की ये दास्तां भीतर तक झकझोर देने वाली है।
ये
गुस्से में निकली भड़ास नहीं है, बल्कि लोगों के दिलों से निकली दर्द भरी दास्तान है | छपरा
के मिड-डे मील हादसे का शिकार बच्चे बने हैं। अब उन्हें उसी स्कूल में
दफना दिया गया है जहां वो पढ़ते थे, जो उनके खेलने का मैदान था। वे कहते हैं - ये हम
लोगों ने गुस्से में किया है, आक्रोश में किया है।
बच्चों के खेल के मैदान
से बच्चों का कब्रिस्तान बन गए इस मैदान में क्रिकेट पिच अपनी जगह पर कायम
है। यहां खेलने वाले बच्चे भविष्य में धोनी और सचिन बनने का सपना देखा करते
थे। जो टीम यहां खेला करती थी अब वो बिखर गई है। टीम के आधे खिलाड़ी अपने
ही मैदान में दफन किए जा चुके हैं। बाकी बचे खिलाड़ी सदमे में हैं। क्रिकेट
की साझेदारी टूट चुकी है।
हादसे
को झेलने वाला समूचा धर्मसती गांव भी सदमे में है। हादसे के चार दिन बाद
भी यहां चूल्हे नहीं जले हैं। हादसे में आशा राय की पांच साल की बेटी हमेशा
के लिए उससे दूर हो गई। बेटी की मौत के बाद आशा ने अभी तक एक शब्द भी नहीं
बोला है। उदय अभी भी बदहवास है। उसके आंसू नहीं थम रहे। उस बदनसीब दिन उदय
की बेटी क्लास छोड़कर स्कूल से भाग आई थी। स्कूल में मिलने वाले दोपहर के
भोजन के लिए, उदय ने बेटी को दोबारा स्कूल भेज दिया। मिड डे मील खत्म होने
के बाद उदय को बेटी की लाश लेकर लौटना पड़ा। उदय खुद को माफ नहीं कर पा
रहे।
हादसे
के बाद जिसे जो समझ आ रहा है, उसे दोषी ठहरा रहा है। लेकिन लाल बहादुर राय
समझ नहीं पा रहा है कि वो किसे दोष दे। लाल बहादुर पूरी तरह बरबाद हो गया
है। जिस खाने को खाकर बच्चों की मौत हो गई, उसे उसकी पत्नी ने ही बनाया था।
उसने वो खाना बाकी छात्रों को ही नहीं अपने भी तीन बच्चों को खिलाया था।
तीनों बच्चों में से 2 मर चुके हैं, तीसरा अस्पताल में जिंदगी और मौत से
जूझ रहा है। लाल बहादुर तय नहीं कर पा रहा कि उसकी पत्नी इस घटना की आरोपी है या
हादसे की पीड़ित।
दिल
दहला देने वाली वाली ऐसी दास्तां इस गांव के हर पीड़ित परिवार की है। अपने
बच्चों को खो देने वाले माता-पिता दुख और सदमे में डूबे हैं। बच्चे समझ
नहीं पा रहे कि उनके दोस्त एक साथ अचानक कहां चले गए। अब उनके साथ कौन
खेलेगा।