पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का 92 साल की उम्र में निधन हो गया
है। पिछले कुछ दिनों से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती गुजराल
फेफड़े में संक्रमण से जूझ रहे थे। पिछले एक साल से अधिक समय से उनकी
डायलिसिस भी चल रही थी
और कुछ दिन पहले उन्होंने सीने में गंभीर संक्रमण की शिकायत की थी।
उनका अंतिम संस्कार शनिवार को दिल्ली में होगा। विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए गुजराल भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। 1950 के दशक में वे एनडीएमसी के अध्यक्ष बने और उसके बाद केंद्रीय मंत्री बने और फिर रूस में भारत के राजदूत भी रहे।
अच्छे पड़ोसी संबंध को बनाए रखने के लिए 'गुजराल सिद्धांत' का प्रवर्तन करने वाले गुजराल कांग्रेस छोड़कर 1980 के दशक में जनता दल में शामिल हो गए। वह 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में विदेशमंत्री बने। विदेशमंत्री के तौर पर इराकी आक्रमण के बाद वह कुवैत संकट के दुष्परिणामों से निपटे, जिसमें हजारों भारतीय विस्थापित हो गए थे।
एचडी देवेगौड़ा की सरकार में गुजराल दूसरी बार विदेशमंत्री बने और बाद में जब कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया, तो 1997 में वह प्रधानमंत्री बने। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह और अन्य नेताओं सहित संयुक्त मोर्चे की सरकार में गंभीर मतभेद होने के बाद वह सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभरे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार कुछ महीने ही चली, क्योंकि राजीव गांधी की हत्या पर जैन आयोग की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस फिर असंतुष्ट हो गई।
इंद्र कुमार गुजराल के सम्मान में संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई। लोकसभा में इसकी जानकारी देते हुए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, मुझे यह बताते हुए काफी दुख हो रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का अपराह्न 3 बजकर 31 मिनट पर गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। इसके बाद पीठासीन अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी। राज्यसभा में भी गृहमंत्री ने गुजराल के निधन की जानकारी सदन को दी। इसके बाद उपसभापति पीजे कुरियन ने सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।
पाकिस्तान के झेलम शहर में 4 दिसंबर, 1919 को जन्मे गुजराल स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से थे और उन्होंने कम उम्र में ही सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गए थे।
डीएवी कॉलेज, हेली कॉलेज ऑफ कॉमर्स और फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) से शिक्षित गुजराल ने छात्र राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वह अप्रैल, 1964 में राज्यसभा के सदस्य बने और उस 'समूह' के सदस्य बने, जिसने 1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग किया था।
जब आपातकाल लागू हुआ (25 जून, 1975) तो वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे, जिसमें मनमाने तरीके से प्रेस सेंसरशिप लगा था, लेकिन उन्हें जल्द ही हटा दिया गया। गुजराल 1964 से 1976 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे, 1989 और 1991 में लोकसभा के सदस्य रहे। पटना लोकसभा सीट से उनका निर्वाचन रद्द होने के बाद लालू प्रसाद के सहयोग से वह 1992 में राज्यसभा के सदस्य बने।
वह 1998 में पंजाब के जालंधर से लोकसभा में अकाली दल के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने गए। उनकी सरकार का विवादास्पद निर्णय 1997 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करना था। तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने उस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया और पुनर्विचार के लिए इसे सरकार के पास वापस भेज दिया। उनकी पत्नी शीला गुजराल कवयित्री और लेखिका थीं, जिनका निधन, 2011 में हो गया। उनके भाई सतीश गुजराल मशहूर पेंटर और वास्तुविद हैं उनके परिवार में दो बेटे हैं, जिनमें एक नरेश गुजराल राज्यसभा के सदस्य और अकाली दल के नेता हैं।
और कुछ दिन पहले उन्होंने सीने में गंभीर संक्रमण की शिकायत की थी।
उनका अंतिम संस्कार शनिवार को दिल्ली में होगा। विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए गुजराल भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। 1950 के दशक में वे एनडीएमसी के अध्यक्ष बने और उसके बाद केंद्रीय मंत्री बने और फिर रूस में भारत के राजदूत भी रहे।
अच्छे पड़ोसी संबंध को बनाए रखने के लिए 'गुजराल सिद्धांत' का प्रवर्तन करने वाले गुजराल कांग्रेस छोड़कर 1980 के दशक में जनता दल में शामिल हो गए। वह 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में विदेशमंत्री बने। विदेशमंत्री के तौर पर इराकी आक्रमण के बाद वह कुवैत संकट के दुष्परिणामों से निपटे, जिसमें हजारों भारतीय विस्थापित हो गए थे।
एचडी देवेगौड़ा की सरकार में गुजराल दूसरी बार विदेशमंत्री बने और बाद में जब कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया, तो 1997 में वह प्रधानमंत्री बने। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह और अन्य नेताओं सहित संयुक्त मोर्चे की सरकार में गंभीर मतभेद होने के बाद वह सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभरे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार कुछ महीने ही चली, क्योंकि राजीव गांधी की हत्या पर जैन आयोग की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस फिर असंतुष्ट हो गई।
इंद्र कुमार गुजराल के सम्मान में संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई। लोकसभा में इसकी जानकारी देते हुए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, मुझे यह बताते हुए काफी दुख हो रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का अपराह्न 3 बजकर 31 मिनट पर गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। इसके बाद पीठासीन अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी। राज्यसभा में भी गृहमंत्री ने गुजराल के निधन की जानकारी सदन को दी। इसके बाद उपसभापति पीजे कुरियन ने सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।
पाकिस्तान के झेलम शहर में 4 दिसंबर, 1919 को जन्मे गुजराल स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से थे और उन्होंने कम उम्र में ही सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गए थे।
डीएवी कॉलेज, हेली कॉलेज ऑफ कॉमर्स और फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) से शिक्षित गुजराल ने छात्र राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वह अप्रैल, 1964 में राज्यसभा के सदस्य बने और उस 'समूह' के सदस्य बने, जिसने 1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग किया था।
जब आपातकाल लागू हुआ (25 जून, 1975) तो वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे, जिसमें मनमाने तरीके से प्रेस सेंसरशिप लगा था, लेकिन उन्हें जल्द ही हटा दिया गया। गुजराल 1964 से 1976 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे, 1989 और 1991 में लोकसभा के सदस्य रहे। पटना लोकसभा सीट से उनका निर्वाचन रद्द होने के बाद लालू प्रसाद के सहयोग से वह 1992 में राज्यसभा के सदस्य बने।
वह 1998 में पंजाब के जालंधर से लोकसभा में अकाली दल के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने गए। उनकी सरकार का विवादास्पद निर्णय 1997 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करना था। तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने उस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया और पुनर्विचार के लिए इसे सरकार के पास वापस भेज दिया। उनकी पत्नी शीला गुजराल कवयित्री और लेखिका थीं, जिनका निधन, 2011 में हो गया। उनके भाई सतीश गुजराल मशहूर पेंटर और वास्तुविद हैं उनके परिवार में दो बेटे हैं, जिनमें एक नरेश गुजराल राज्यसभा के सदस्य और अकाली दल के नेता हैं।