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बैंक लॉकर से निकलेगी मां दुर्गा की प्रतिमा

कोलकाता [जयकृष्ण वाजपेयी]। 
दुर्गोत्सव के मामले में बंगाल का कोई सानी नहीं है। रंग-बिरंगी भांति-भांति की छोटी-बड़ी दुर्गा प्रतिमाएं बड़े-बड़े पंडालों में स्थापित की जाती हैं। आमतौर पर दुर्गा प्रतिमाएं कुम्हार टोली में मूर्तिकार तैयार करते हैं। वहां से लोग जयकारा लगाते हुए मूर्तियां ले जाकर पंडाल में स्थापित करते हैं। बंगाल में एक पूजा ऐसी भी होती है, जहां की दुर्गा प्रतिमा बड़े ही गुप्त तरीके से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में मंडप तक पहुंचती है। वह भी बैंक लॉकर से।

लॉकर से प्रतिमा निकालने का दिन व समय पूरी तरह से गुप्त रखा जाता है। प्रतिमा की सुरक्षा भी किसी वीवीआइपी सरीखे होती है। यह प्रतिमा प्रतिवर्ष कड़ी सुरक्षा में पांच दिनों के लिए बैंक लॉकर से निकाली जाती है। पूजा समाप्त होते ही उसे फिर लॉकर में रख दिया जाता है। यह प्रतिमा है पुरुलिया के जयपुर पि्रंसली इस्टेट की। प्रिंसली राजबाड़ी की यह पारंपरिक प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पूर्व 950 ग्राम सोने व 60 किलोग्राम चांदी से तैयार की गई थी। प्रतिमा का मुख्य भाग सोने से तैयार किया गया है। मूर्ति के पीछे की संरचना, जिसे 'चालचित्र' कहा जाता है, वह 60 किलोग्राम चांदी से बनी है। प्रतिमा को वाराणसी के कनक दुर्गा की तर्ज पर तैयार किया गया है। शनिवार को फिर से इस प्रतिमा को पंडाल में स्थापित किया जाएगा। पंडाल की सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतजाम किए गए हैं।
प्रतिमा निर्माण की कहानी
18वीं शताब्दी में राजा जयसिंह ने उज्जैन से पुरुलिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनके वंश के पांचवें उत्तराधिकारी काशीनाथ सिंह ने सोने व चांदी की मूर्ति बनाने के लिए अनुदान किया और दुर्गापूजा शुरू की। वर्ष 1970 में डकैतों ने उस मूर्ति को लूटने के लिए डाका डाला, लेकिन उन्हें मूर्ति नहीं मिली। मूर्ति को किसी गुप्त स्थान पर छिपा दिया गया था। मूर्ति के बारे में परिवार के कुछ ही सदस्यों को जानकारी थी।
इस घटना के बाद मूर्ति को राजबाड़ी में नहीं रखने का निर्णय लिया गया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने मूर्ति को पुलिस की सुरक्षा में रखने का सुझाव दिया। मूर्ति काफी बहुमूल्य व एंटिक है। उसके बाद मूर्ति को बैंक लॉकर में रखने की व्यवस्था की गई। बताया जाता है कि पूजा के क्रम में 17 वर्ष पहले तक वहां भैंसे की बलि दी जाती थी, लेकिन अब महासप्तमी के दिन बकरों की बलि दी जाती है।