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छठ या षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे? पुराण की कथा क्‍या है?

राजेश कानोडिया/ अमरेश सौरभ

लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत और इसकी पौराणिक कथा के बारे में जिज्ञासा स्‍वाभाविक है, क्‍योंकि इस लोक महापर्व का फैलाव देश के कई भागों तेजी से होता जा रहा है.

इस व्रत में सूर्य देवता के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की भी पूजा की जाती है. षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है.

षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं. आज भी देश के बड़े भाग में बच्‍चों के जन्‍म के छठे दिन षष्‍ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है.

षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे हुई, इस बारे में पुराण में एक कथा है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, यह कथा इस तरह है:

प्रथम मनु स्‍वायम्‍भुव के पुत्र थे प्रियव्रत. राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे. एक बार उन्‍होंने म‍हर्षि कश्‍यप से संतान का सुख मिलने का उपाय पूछा.

महर्षि कश्‍यप ने राजा से पुत्रेष्‍ट‍ि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्‍म दिया. लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था. यह देखकर राजा शोक में डूब गए. राजा के दुख से उनके परिजन और अन्‍य लोग भी आहत हो गए.

तभी एक चकित करने वाली घटना घटी. आकाश से एक सुंदर विमान उतरा, जिससे एक दिव्‍य नारी प्रकट हुईं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तब उस देवी ने अपना परिचय दिया, ‘’मैं ब्रह्मा की मानसपुत्री षष्‍ठी देवी हूं. मैं विश्‍व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं. नि:संतानों को संतान देती हूं.’’

इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्‍होंने षष्‍ठी देवी की स्‍तुति की.

देवी ने राजा प्रियव्रत को अपने राज्‍य में ऐसी व्‍यवस्‍था करने को कहा, जिससे प्रजा भी इस पूजा के बारे में जान सके और इसे करके सुफल पा सके. इसके बाद राजा हर महीने शुक्‍लपक्ष की षष्‍ठी तिथि को षष्‍ठी देवी की पूजा करवाने लगे.


ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रचार-प्रसार हो गया.

नदी किनारे सूर्यषष्‍ठी व्रत की तैयारी करती महिलाएं

स्‍कंदपुराण में राजा के नीरोग होने की कथा

स्‍कंदपुराण में भी षष्‍ठी व्रत के बारे में एक कथा मिलती है. इस पुराण के अनुसार, नैमिषारण्‍य में शौकन आदि मुनियों के पूछने पर सूतजी कथा कहते हैं.

एक राजा थे, जो कि कुष्‍ठ रोग से ग्रस्‍त थे. उन्‍हें अपना राज्‍य भी छोड़ना पड़ गया था, जिससे वे अभाव में जी रहे थे. एक ब्राह्मण उस राजा को इस व्रत के बारे में बताते हैं. व्रत करके राजा निरोग हो जाते हैं, साथ ही अपना राज्‍य भी पा लेते हैं.