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कब सुधरेगी दिल वालों की दिल्ली ?

सम्पादक
राजेश कानोडिया, नवगछिया
आखिर कब सुधरेगी दिल वालों की दिल्ली ?
वास्तव में, 
दिल्ली तो दिल वालों की ही है मानी जाती 
जहां सभी तरह की हस्तियाँ हैं आती जाती 
लोग भी कहते हैं दिल वालों की है दिल्ली 
जहां पैसे वालों की है सारी चलती 
माना कि 
दिल्ली में रहते हैं हजारों दिलबर


कुछ दिल खोजते हैं घूम घूम कर 
जो खोजे फिरते  हैं जबरन दिल 
मिल जाता है उन्हें अस्पताल का बिल 
अरे दिलबर, 
दिल तो आसानी से दिया और लिया जाता है 
जिसका नाता सभी को नहीं आता है 
वह मिलता है आपसी तालमेल से
न कि ज़ोर जबर्दस्ती के खेल से 
दिल वो चीज है जो बाजार में नहीं बिकती 
हर किसी को हर जगह मिल नहीं सकती 
दिल दिया नहीं जाता, खो जाता है
जो दिलवर के पास स्वतः चला जाता है 
तो दिलबरों के जबरन दिल लेने का क्या है वास्ता
जहां सब कुछ आसानी से मिलने का है रास्ता
ज़ोर जबर्दस्ती करने को ही माना जाता है बलात्कार
दिल्ली कुकर्म के आगे झुका है आज सारा संसार
राजेश कानोडिया, नवगछिया (बिहार) |