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नवविवाहिताओं में मिथिला का पारंपरिक व धार्मिक पर्व मधुश्रावणी हुआ प्रारंभ

नवविवाहिताओं में मिथिला का पारंपरिक व धार्मिक पर्व मधुश्रावणी हुआ प्रारंभ
नवगछिया (भागलपुर)। मिथिला का पारंपरिक, धार्मिक पर्व मधुश्रावणी मुख्य रूप से मैथिल ब्राह्मण एवं कायस्थ परिवारों में मनाया जाता है। अपने सुहाग की रक्षा के लिए होने वाली इस पूजा के दौरान नवविवाहिता पूरे नियम निष्ठा का पालन करती है। यह पर्व 13 दिनों तक होती है।
मधुश्रावणी मिथिलांचल का एक महत्वपूर्ण और विशेष लोक पर्व है, जो नव विवाहितों के लिए सबसे खास और अनोखा त्योहार माना जाता है। इस पर्व का महत्व मिथिलांचल की संस्कृति और परंपरा में बहुत अधिक है। इस साल मधुश्रावणी व्रत 15 जुलाई से शुरू होकर 27 जुलाई को समाप्त होगा। मधुर श्रावणी की खास बातें जो सबको जानना चाहिए।
यह मैथिल ब्राह्मण महिलाओं में लोकप्रिय आस्था और पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने सबसे पहले मधुश्रावणी पूजा का व्रत रखा था और अपने सभी जन्मों में भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाती रहीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह त्यौहार तपस्या की तरह है।
इस पर्व में खास कर विषहरा पूजन का विधान है और मधु श्रावणी पूजन की कथा भी है। मिथिलांचल में इस पर्व की सबसे खास बात यह होती है कि इस पर्व में पुरोहित भी महिला ही होती है। मिथिलांचल में केवल यही एक ऐसा पर्व है जिसमें पुरोहित महिलाएं ही होती हैं। इसमें पुरुष वर्ग नहीं होता। मधुश्रावणी पर्व मिथिलांचल की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पर्व का महत्व नव विवाहितों के लिए बहुत अधिक है और इसमें विशेष परंपराएं और विधान होते हैं।