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सत्यार्थी ने दिलाई विदिशा को वैश्विक पहचान


मध्य प्रदेश राजधानी भोपाल से 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा है विदिशा, इससे पहले यहां का नाम कभी इतना चर्चा में नहीं रहा जितना कि यहां पैदा हुए कैलाश सत्याार्थी को नोबेल पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद यहां की चर्चा हो रही है। आज विदिशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका है। यूं तो महान राजनीतिक शख्सियतों जैसे रामनाथ गोयनका, अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का संबंध भी विदिशा से रहा है लेकिन नोबेल पुरस्कार ने इसे एक विशेष पहचान के साथ दुनियाभर में चमका दिया है। गौरतलब है कि यह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन का भी गृह क्षेत्र है।
सत्यार्थी को प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार के लिए चुने जाने की खबरें आने के बाद दीपावली से पहले ही शहर में दीपावली की तरह खुशी का माहौल है। विदिशा के अंदर किला क्षेत्र में छोटी हवेली में जन्मे सत्यार्थी का बचपन यहां की संकरी गलियों में ही गुजरा है। सत्यार्थी की भाभी रती देवी शर्मा ने बताया कि वह जब भी किसी भी बच्चे को भीख मांगता हुआ देखते हैं तो भीख का कटोरा उसके हाथ से छीनकर उस बच्चे को खाने के लिए भोजन और पढ़ने के लिए किताबें देने की कोशिश में ही लगे रहते हैं।
भावुक हुई रती देवी ने आगे बताते हुए कहा है कि एक बार उन्होंने हमारे इलाके में एक बीमार व्यक्ति के घावों को साफ किया और प्रतिदिन उस आदमी को अपने भोजन का आधा हिस्सा देते थे। यह सब उनके देवर की कड़ी मेहनत और मानवता का ही परिणाम है जो कि आज उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि कैलाश ने कभी भी जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं किया और समाज के कमजोर वर्ग के साथ भी सम्मान और समानता का व्यवहार किया है। बचपन से ही अपने मूल मंत्र सादगी के साथ जीने वाले सत्यार्थी स्कूल के दिनों में खाखी पैंट और सफेद शर्ट के अलावा कुछ और नहीं पहने थे। शुक्रवार को सत्यार्थी की कामयाबी का जश्न मनाने के लिए उमड़ी लोगों की भीड़भाड़ से यहां की गलियां ठसाठस भरी हुई नजर आईं।
कैलाश सत्यार्थी करीबी एक बुजुर्ग महिला शारदा सेन ने कहा है कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने क्या जीता है, लेकिन यह जरूर बता सकती हूं कि दुनियाभर को आज उन पर गर्व है। सत्यायर्थी के एक और पड़ोसी ने कहा कि नोबेल पुरस्कार सचमुच एक विनम्र और दयालु व्यक्ति को ही दिया गया है। सत्यार्थी ने अपने प्रतिष्ठित अभियान 'बचपन बचाओ आंदोलन' के माध्यम से बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन बातों से हमेशा गरीब बच्चों का दिल जीता है।
सत्यार्थी के पड़ोस में रहने वाले एक दुकानदार बंसीलाल साहू ने News18 को बताया कि सत्याहर्थी जब भी उनसे मिलते थे उन्हेंव गरीब बच्चों को नि:शुल्क चॉकलेट देने के लिए 300-400 रुपये दे देते थे। साहू ने कहा कि उनकी इस उपलब्धि पर विदिशा वासियों के साथ-साथ पूरा राज्य और देश गर्व महसूस कर रहा है। अपने बचपन के दिनों का जिक्र करते हुए उनके बड़े भाई सेवानिवृत्त प्रोफेसर जगमोहन शर्मा ने कहा कि इस भावना (नोबेल पुरस्कार) शब्दों से परे है। कैलाश ने जब भी समाज में कुछ गलत होते देखा कभी हार नहीं मानी।