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मोदी की जापान में पहली डील, क्योटो जैसी बनेगी काशी


मोदी का मिशन जापान शुरू हो चुका है। उगते सूरज के देश में मोदी पहुंच चुके हैं और पहली खुशखबरी आई हमारी धर्म, आस्था नगरी वाराणसी को जापान के क्योटो शहर जैसा बनाने के समझौते की।
मोदी और जापान के पीएम शिंजो आबे की मौजूदगी में ही ये एग्रीमेंट हुआ और जैसे वाराणसी के कायाकल्प के ऐलान पर अमल भी शुरू हो गया। मोदी की जापान यात्रा कई मायनों में बेहद अहम है यहां उन्हें लेकर हवा में उत्साह है, कारोबारियों में हलचल है, क्या भारत को जापान से बुलेट ट्रेन मिलेगी, या तरक्की की नई परिभाषा लिखी जाएगी या फिर दोस्ती की नई गाथा।
जापान और भारत के बीच रिश्ता हमेशा से गहरा रहा है, कई बार रिश्तों पर थोड़ी धूल की परत पड़ती नजर आती है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिश्तों में नई गर्माहट लाने के लिए जापान पहुंचे हैं। उनका अंदाज बता रहा था कि वो दोस्ती की डोर और मजबूत करना चाहते हैं। ओसाका से वो सड़क के रास्ते जापान के प्राचीनतम शहर क्योटो पहुंचे, गेस्ट हाउस में उनकी मुलाकात जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से हुए, दोनों नेताओं के मुलाकात में गजब की गर्मजोशी नजर आई।
मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने मछलियों को चारा खिलाया। ये एक जापानी रस्म है। इस दौरान भी आपस में अनौपचारिक बातचीत जारी रही। कुछ देर बाद मोदी और शिंजो अपने प्रतिनिंधिमंडल के साथ बेहद दिलचस्प जापानी अंदाज में बैठे नजर आए।
फिर दोनों नेता एक अहम समझौते के भी गवाह बने। जापान में भारत की राजदूत दीपा गोपालन वाधवा और क्योटो के मेरयर काडोकावा के बीच अहम समझौते पर हस्ताक्षर हुए। ये समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को हेरिटेज स्मार्ट सिटी यानि बिल्कुल क्योटो जैसा शहर बनाने को लेकर था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को एक खास तोहफा भी दिया। मोदी ने उन्हें स्वामी विवेकानंद और जापान नाम की एक खास किताब और भागवत गीता भेंट की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने साथ में रात का खाना भी खाया।
रविवार को भी नरेंद्र मोदी का व्यस्त कार्यक्रम है। वो शिंजो आबे के साथ क्योटो के तोजी मंदिर जाएंगे। इसके बाद वो सांस्कृतिक और कारोबारी जगहों का जायजा लेंगे। मोदी का सोमवार जापान की राजधानी टोकियो में बीतेगा। वहां वो सबसे पहले एक स्कूल का दौरा करेंगे, फिर जापान के वित्त मंत्री से मुलाकात होगी। फिर रक्षा मंत्री और उसके बाद जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात होगी। सोमवार को ही दोनों नेता मीडिया को संबोधित करेंगे। अपनी इस यात्रा से एक दिन पहले ही मोदी ने अपने बयान से साफ कर दिया था कि जापान से उनकी क्या उम्मीदें हैं।
इस यात्रा के दौरान हम दोनों देशों के लोगों के ऐतिहासिक संबंधों और अनुभवों का जश्न मनाएंगे। उन्हें नए मायने देंगे। हम इसकी संभावना तलाशेंगे कि भारत निर्माण के मेरे सपने में जापान कैसे मददगार साबित हो सकता है।
भारत और जापान में कई नए कारोबारी समझौते होने की संभावना है। एशिया की दो आर्थिक शक्तियों के बीच अभी सलाना व्यापार महज 90 बिलियन डॉलर का है। उम्मीद जताई जा रही है कि दोनों देशों में कारोबार बढ़ाने का वक्त आ गया है। इसके अलावा साढ़े तीन साल से जापान से परणाणु समझौता अटका हुआ है उस पर भी बात आगे बढ़ सकती है।
सामरिक क्षेत्र में भी कई अहम समझौते हो सकते हैं इसमें एंफिबियन जहाज की खरीद का समझौता हो सकता है। ये एक खास किस्म का जहाज है जो समुद्र और हवा दोनों में ही उड़ सकता है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच बुलेट ट्रेन को लेकर भी समझौता हो सकता है।
परंपरागत रूप से अमेरिका से ही नजदीकी रणनीतिक रिश्ते बनाने वाला जापान अब वियतनाम, इंडोनेशिया, भारत जैसे देशों को खास तवज्जो दे रहा है। मोदी जहां बीजिंग से निवेश चाहते हैं, वहीं टोक्यो के साथ भी नजदीकियां उनके एजेंडे में है। दोनों को साथ लेकर भारत के हित में कदम उठाना सरकार के लिए चुनौती होगी।
क्योटो जैसी बनेगी काशी
क्योटो जहां जापान की सांस्कृतिक राजधानी वहीं काशी या बनारस भारत की। मोदी ने इन दो शहरों के मिलाप का सपना देखा है वाराणसी को क्योटो जैसा उन्नत बनाने लेकिन फिर भी अपनी विरासत को संजोने की कोशिश की जाएगी। इसी कोशिश में दोनों मुल्कों के बीच एक समझौता हुआ वाराणसी को अब क्योटो की तर्ज पर विकसित किया जाएगा, उसका कायाकल्प किया जाएगा।
जापानियों का भारत प्रेम
सायोनारा ये शब्द बेहद मशहूर फिल्म लव इन टोक्यो से प्रचलित हुआ था। सायोनारा यानि गुडबाय जापान ने पिछड़ेपन को, बेरोजगारी को, शहरों की गंदगी को गुडबाय सालों पहले ही बोल दिया था। अब भारत को उससे सीख लेने की जरूरत है पहली प्रयोगशाला बनेगी काशी नगरी क्योंकि अब क्योटो की तरह ही काशी नगरी की शक्लोसूरत बदलने की कोशिश जापान की मदद से ही की जाएगी। जापानी लोगों से बातचीत में इनका भारत के प्रति प्रेम साफ नजर आया।
क्योटो खास है तो खास है वाराणसी भी आखिर क्यों उसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। सीधे चलते हैं यहां से पांच हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूर बनारस में मौजूद मनोज राजन त्रिपाठी के पास। मनोज ने बताया क्योटो से काशी नगरी क्या सीखेगी?
स्मिता की जुबानी बुलेट ट्रेन सफर की कहानी
यकीन मानिए आज मेरी तबीयत खुश हो गई मैं इस वक्त भारत से पांच हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूर जापान के क्योटो शहर में हूं और आज मैं बुलेट ट्रेन में चढ़ी। वो बुलेट ट्रेन जो जापान की आदत में शुमार हो चुकी है। 1964 से ये ट्रेन जापान में चल रही है और भारत अब भी ऐसे किसी अनुभव से न जाने कितने मील दूर है।
बुलेट ट्रेन, वो ट्रेन जो 300 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा रफ्तार से जैसे पटरियों पर उड़ती है। मैं आज बुलेट ट्रेन के अलावा जापान की सामान्य ट्रेन में भी चढ़ी वो ट्रेन भी भारत की बेहतरीन ट्रेन से बहुत आगे है। पीएम मोदी रेलवे को देश का ग्रोथ इंजन कहते हैं। जरा सोचिए अगर जापान की ये ट्रेनें भारत में भी चलने लगें तो विकास की रफ्तार कहां से कहां पहुंच सकती है।
जापान के नारिटा से शिनागावा तक की यात्रा मैंने एक सामान्य ट्रेन से की। हमारे देश में एक आम आदमी ऐसी ट्रेन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। राजधानी और शताब्दी भी इतनी साफ सुथरी नहीं दिखती। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस ये सामान्य ट्रेन मेरे लिए सुखद अनुभव था। मैं तेज रफ्तार चलती ट्रेन से भारत में अपने चैनल पर लाइव मौजूद थी, ट्रेन से सीधे जानकारी दे रही थी। अपने देश में दर्शकों से सीधे रुबरु थी।
उगते हुए सूरज के देश, जापान में सब मुमकिन है, मेरे लिए चमत्कार से कम नहीं था ये। यकीन नहीं होगा आपको लेकिन अगर मैं अपने देश की राजधानी दिल्ली में भी रहूं और मोबाइल से ऐसी तस्वीरें भेजने की कोशिश करूं तो पसीने छूट जाएंगे। भारत में योजनाएं हैं लेकिन फाइलों में। बुलेट ट्रेन तो अभी दूर की कौड़ी है।
लेकिन मैं जापान में थी इसलिए मैं बुलेट ट्रेन में भी बैठी। शिनागावा से क्योटो की यात्रा मैंने बुलेट ट्रेन में की 270 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती बुलेट ट्रेन में सफर का मजा आप टीवी पर देखकर महसूस नहीं कर सकते हैं। चमत्कार यहां भी था। 270 किलोमीटर प्रति घंटे रफ्तार से दौड़ती बुलेट ट्रेन में भी मैं अपने देश के दर्शकों से सीधे रुबरु हुई।
हमारी सोच और बुलेट ट्रेन के सपने को साकार करने की कोशिशों से भी पचास साल पहले यानि आधी शताब्दी पहले ही जापान में बुलेट ट्रेन चलनी शुरु हो गई थी। उस वक्त इस योजना को बनाने वालों पागलों का गैंग तक कहा गया, लेकिन 1964 में जब पहली बार जापान में बुलेट ट्रेन चली तो ये दूसरे विश्व युद्ध में तकरीबन बर्बाद हो चुके जापान के विकास का प्रतीक बन गई। इस प्रतीक में मैं बैठी थी। आधुनिक सुविधाओं से लैस लग रहा था किसी प्लेन में बैठी हूं। रफ्तार के इस आनंद के बीच और भी सुविधाएं थी।
जापान के पास फिलहाल बुलेट ट्रेन का 2,664 किलोमीटर लंबा ट्रैक है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने 2007 और 2012 में जापान की यात्राएं की। इस दौरान उन्होंने बुलेट ट्रेन में भी सफर किया, जापान की तरक्की का जायजा लिया। वो बुलेट ट्रेन से प्रभावित थे। अब प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी ये पहली जापान यात्रा है। जाहिर है अपने सपने को पूरा करने के लिए वो हर संभव कोशिश करेंगे।
एक अनुमान के मुताबिक मुंबई से अहमदाबाद के 500 किलोमीटर के लिए अगर बुलेट ट्रेन चलाई जाती है तो उसमें कम से कम 60 हजार करोड़ का खर्चा है। जानकार मानते हैं कि इस खर्चे को निकालने के लिए ट्रेन का किराया कम से कम 4 हजार से छह हजार के बीच होना चाहिए। यही नहीं जमीन अधिग्रहण, ट्रैक का विकास जैसी सैकड़ों मुश्किलें भी हैं राह में। देश में मोदी विरोध भी इससे इत्तेफाक नहीं रखते।
वैसे भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना को लेकर जापान उत्साहित है। मई 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान की यात्रा पर आए थे तो दोनों देशों ने भारत में बुलेट ट्रेन चलाने की प्रणाली पर सहयोग को लेकर सहमति बनी थी। जापान इस बाबत अपनी रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है जो वो जल्द भारत को सौंपेगा, तो भले ही वक्त लगे। लेकिन उम्मीद कायम है, भारत भी तेज रफ्तार बुलेट ट्रेन का सिरमौर बने।