ताजा समाचार :

6/Posts/ticker posts

नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व


नवरात्र में शक्ति स्वरूपा मां भगवती के आराधना का तो महत्व है ही, इस दौरान कन्या पूजन का महत्व भी कम नहीं होता है। धर्मग्रन्थों में कुमारी पूजा को नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग कहा गया है। यही नहीं इस दरम्यान पूजी जाने वाली कन्याओं को देवी के शक्ति स्वरूप का प्रतीक बताया गया है। कहते हैं शक्ति के आराधकों के लिए कन्याएं साक्षात माता के समान होती हैं। इनकी आराधना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती हैं।
नवरात्र में माता के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। लेकिन इनके साथ-साथ दो से दस वर्ष की कन्याओं के विभिन्न रूपों के पूजन का भी खास महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित रमाशंकर तिवारी कहते हैं नवरात्र में किया गया पूजा-पाठ व आराधना कभी निष्फल नहीं होता। अपितु श्रद्धालुओं को उसका फल निश्चित रूप से मिलता है।
अलग नाम से जानी जाती हर उम्र की कन्या
नवरात्र में दो से दस वर्ष की कन्याओं के पूजन का विधान है। दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहते हैं। तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या को कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी, छह वर्ष वाली को कालिका, सात वर्ष की कन्या को चंडिका, आठ वर्ष की कन्या को शांभवी, नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा के नाम से जानते है।
कन्याओं के हर दिन पूजन का है विधान
पंडितों के मुताबिक नवरात्र में अगर उम्र के हिसाब से कन्याएं मिलें तो हर दिन उनके पूजन का विधान है। अन्यथा अष्टमी के दिन कन्याओं को आसन पर बैठाकर मां भगवती के नामों से पृथक-पृथक उनकी पूजा करनी चाहिए। कन्याओं के पूजन और उनकी आरती उतारने के बाद उनको भोजन कराते हुए वस्त्र आदि भेंट कर उन्हें विदा करना चाहिए।
पूजा का अलग-अलग मिलता है फल
कहते हैं कुमारी पूजन से दुख दरिद्र दूर होता है व शत्रु का शमन होता है। इससे धन, आयु व बल की वृद्धि होती है। त्रिमूर्ति की पूजा से धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि मिलती है। इसी तरह कल्याणी की पूजा करने से विद्या, विजय व राजसुख की प्राप्ति होती है। चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की पूर्ति होती है। किसी को मोहित करने, संग्राम में विजय पाने और दुख दारिद्र को हटाने के लिए शांभवी तथा कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए दुर्गा के रूप की पूजा की जाती है। सुभद्रा का पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है तथा रोहिणी की पूजा से व्यक्ति निरोग रहता है।