ऐसा कभी हुआ नहीं और शायद कभी होगा भी नहीं। 52 साल के बेटे ने 28 साल के अपने पिता को मुखाग्नि दी। सुनकर संभव नहीं लगेगा। लेकिन यह हकीकत है। जो बुधवार को राजस्थान के रेवाड़ी जिले के गांव मीरपुर में देखने को मिली।
वर्ष 1968 में सेना के एक विमान हादसे में मारे गए हवलदार जगमाल सिंह का शव 45 साल के बाद गांव पहुंचा तो उसके 52 साल के बेटे रामचंद्र ने उसे मुखाग्नि दी। विमान जब क्रैश हुआ था उस समय जगमाल की उम्र महज 28 साल थी और उसका बेटा 7 वर्ष का था।
पिता ने 28 साल जिंदा रहकर बिताए और 45 साल मौत की गोद में। 45 साल के इंतजार के बाद कुछ दिन पहले ही जगमाल का शव लद्दाख के बर्फीले ग्लेशियर में मिला। इसकी सूचना 30 अगस्त को परिवार के लोगों को मिली थी।
जगमाल के शव को पहले हवाई जहाज से लाया जा रहा था, लेकिन लद्दाख में मौसम खराब होने के कारण हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर पा रहा था। इस कारण शव को गाड़ी में रखकर पहले चंडीगढ़ लाया गया और बुधवार को चंडीगढ़ से गांव मीरपुर लाया गया। दोपहर 12 बजे शव गांव के बस स्टैंड पर पहुंचा।
बेटे ने कहा धन्य हो गया
पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद रामचंद्र ने कहा कि आज वह धन्य हो गया। आज एक बेटा होने का अंतिम फर्ज भी उसने निभा दिया।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
जगमाल का शव उनके बेटे रामचंद्र के घर पर उतारा। धार्मिक परंपराएं निभाने के बाद शव रथ पर रखा गया। बैंड बाजे के साथ पूरे गांव में यात्रा निकाली गई। इसके बाद जगमाल के शव को मीरपुर रीजनल सेंटर के निकट स्थित अंतिम संस्कार स्थल पर लाया गया। जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। बेटे रामचंद्र ने मुखाग्नि दी।
पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद रामचंद्र ने कहा कि आज वह धन्य हो गया। आज एक बेटा होने का अंतिम फर्ज भी उसने निभा दिया।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
जगमाल का शव उनके बेटे रामचंद्र के घर पर उतारा। धार्मिक परंपराएं निभाने के बाद शव रथ पर रखा गया। बैंड बाजे के साथ पूरे गांव में यात्रा निकाली गई। इसके बाद जगमाल के शव को मीरपुर रीजनल सेंटर के निकट स्थित अंतिम संस्कार स्थल पर लाया गया। जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। बेटे रामचंद्र ने मुखाग्नि दी।