लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को ‘विकास की सीढ़ी नहीं बल्कि विनाश का
गड्ढ़ा’ बताया.
उन्होंने कहा कि
अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित दुनिया के कई देशों में इसके खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं और वहां की सरकारों ने छोटे कारोबारियों के हितों की सुरक्षा के लिए कदम उठाये हैं लेकिन संप्रग सरकार एकदम उलट फैसला करने पर आमादा है. साथ ही सवाल किया कि कहीं एफडीआई का फैसला भ्रष्टाचार की उपज तो नहीं है. निचले सदन में मत विभाजन के प्रावधान वाले नियम-184 के तहत एफडीआई मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सुषमा ने कहा, ‘पूरी दुनिया का अनुभव है कि जहां-जहां पर भी मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई आया, खुदरा बाजार समाप्त हो गया. अमेरिका में ‘स्मॉल बिजनेस सैटरडे’ होता है और लोग हर हफ्ते शनिवार को छोटे दुकानदारों से खरीदारी करने जाते हैं. खुद राष्ट्रपति बराक ओबामा इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि एफडीआई पर बहस नयी नहीं है. राजग सरकार के समय में कभी कांग्रेस ने खुद इसका विरोध किया था. उन्होंने सदन में मौजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सवाल किया कि अब सोच क्यों बदल गयी और क्या बात है.
सुषमा ने कहा कि यूरोपीय संघ की संसद ने इस संबंध में एक घोषणापत्र पारित किया है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जहां कहीं भी कंपनियों ने कम दाम दिये, आंदोलन हुए. सुपर बाजारों के खिलाफ दुनिया के कई देशों में किसानों के आंदोलन हुए.
उन्होंने कहा कि अमेरिकी मीडिया की खबरों में आया कि वालमार्ट ने खुदरा बाजार में प्रवेश करने के लिए कुछ देशों में कथित रिश्वत दी है.
उन्होंने सवाल किया, ‘कहीं ये निर्णय भ्रष्टाचार में से तो नहीं निकला है?’
सुषमा ने कहा कि सरकार का दावा है कि एफडीआई के बाद 30 प्रतिशत उत्पाद छोटे और मंझोले उद्योगों से लेना होगा. लेकिन सबसे ज्यादा बेरोजगारी उत्पादन में आएगी क्योंकि जो छोटे उद्योग अभी शत प्रतिशत बेच रहे हैं, 30 प्रतिशत बेचने के बाद बाकी 70 प्रतिशत कहां ले जाएंगे. यानी सुपर स्टोर बाकी 70 प्रतिशत माल विदेश से आयात करेंगे और सबसे ज्यादा 90 प्रतिशत माल चीन से आएगा. चीन में कारखाने खुलेंगे, उसकी आमदनी बढ़ेगी और वहां रोजगार के अवसर पैदा होंगे. लेकिन भारत में विनिर्माण क्षेत्र खत्म हो जाएगा और 12 करोड़ घरों में अंधेरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार का यह भी दावा है कि इससे लोगों को सस्ती और अच्छी चीजें मिलेंगी. लेकिन अगर बाजार प्रतियोगी होगा तभी उपभोक्ता के हित में होगा. एकाधिकार वाला बाजार उपभोक्ता के हित में नहीं होता. बाजार जितना व्यापक होगा, उतना ही उपभोक्ता के लिए अच्छा है, सिमटे हुए बाजार से उसे कोई फायदा नहीं होता.
उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि एफडीआई किसानों के हित में है. किसान की फसल महंगी दर पर बिकेगी और उसे उसका पूरा दाम मिलेगा. लेकिन सुपर बजार चलाने वाली कंपनियां किसानों से सस्ते में उत्पाद खरीदती हैं. कर्मचारियों को कम वेतन देती हैं. अपने मुनाफे के साथ कोई समझौता नहीं करतीं.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार तर्क देती है कि मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई आने से बिचौलिया खत्म हो जाएगा. हमारे देश में एक क्षेत्र ऐसा है, जहां बिचौलिया नहीं है. गन्ना किसान अपना उत्पाद सीधे चीनी मिलों को बेच देते हैं. कोई बिचौलिया नहीं होता. लेकिन कितनी बार ऐसा हुआ कि अनुबंध के बाद भी चीनी मिल मालिक गन्ना लेने से मना कर देते हैं और भुगतान के लिए किसान मारा-मारा फिरता है.
सुषमा ने कहा कि सरकार दावा करती है कि एफडीआई आने से रोजगार के अवसर पैदा होंगे. वाणिज्य मंत्री (आनंद शर्मा) कहते हैं कि एफडीआई आने से 40 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे. वालमार्ट के पूरी दुनिया में 9826 स्टोर हैं और 21 लाख कर्मचारी वहां काम करते हैं. इस प्रकार प्रति स्टोर 214 कर्मचारी काम करते हैं. अगर मान लिया जाए कि केवल वालमार्ट के जरिए ही 40 लाख रोजगार के अवसर पैदा हों तो 18600 स्टोर खोलने पड़ेंगे. उन्होंने आगे तर्क दिया कि टेस्को के 92 कर्मचारी प्रति स्टोर के हिसाब से काम करते हैं. यदि सारे इस तरह के स्टोर भारत आयें तो 36 हजार से अधिक स्टोर चाहिए. कहा जा रहा है कि एफडीआई के तहत 53 शहरों में स्टोर खुलेंगे. इस हिसाब से एक शहर में 600 स्टोर खुल जाएंगे. हर चौराहे पर एक स्टोर बनेगा तब कहीं जाकर 40 लाख लोगों को रोजगार मिल पाएगा.
सुषमा ने कहा कि 2011 के इसी तरह के शीतकालीन सत्र में हूबहू निर्णय लिया था कि खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाया जाए. उस समय चारों ओर इस फैसले का विरोध हुआ था. सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे सपा बसपा ने भी विरोध किया था. विपक्ष ने तो खर इसका विरोध किया ही था.
उन्होंने कहा कि तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी दलों से कहा कि वह प्रधानमंत्री से बात कर उनकी राय से अवगत कराएंगे. फिर सर्वदलीय बैठक हुई और तय किया गया कि जब तक सभी संबद्ध पक्षों से बात नहीं हो जाती, एफडीआई पर फैसला नहीं होगा. मुखर्जी ने यह भी स्पष्ट किया था कि संबद्ध पक्ष कौन से होंगे. उनका कहना था कि संबद्ध पक्ष राजनीतिक दल और राज्यों के मुख्यमंत्री होंगे.
सुषमा ने कहा कि मुखर्जी जो उस समय नेता सदन भी थे, ने सदन में आकर वक्तव्य दिया था कि जब तक इस मुद्दे पर सभी संबद्ध पक्षों के साथ आम सहमति नहीं बन जाती, एफडीआई पर फैसला स्थगित किया जाता है.
उन्होंने कहा, ‘दु:ख की बात यह है कि आम सहमति बनाना तो दूर, सरकार ने आम सहमति बनाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया. बैठक बुलाना तो दूर सरकार ने न तो कोई पत्राचार किया और न ही किसी से फोन पर बात की.’ सुषमा ने कहा कि एक दिन टेलीविजन पर खबरों में देखा कि कैबिनेट ने एफडीआई पर फैसला कर लिया है. हम अवाक रह गये. सरकार का कहना था कि हमने तो नीति ही बदल दी है. जब इसे लागू करने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया है तो परामर्श की जरूरत ही नहीं है.’
सुषमा ने कहा कि प्रधानमंत्री और सरकार को अमीरों के लिए नहीं बल्कि गरीबों के लिए लड़ना चाहिए. हम हर क्षेत्र में एफडीआई के खिलाफ नहीं हैं. बुनियादी ढांचा, पुल, नहर, सुरंग, विमानन आदि क्षेत्रों में एफडीआई आये, हमें दिक्कत नहीं है लेकिन 'दाल चावल बेचना हमें आता है. दाल चावल बेचने के लिए हमें विदेशी कंपनियों की जरूरत नहीं है. जब पूरा विश्व खुदरा एफडीआई को हटाने के बारे में विचार कर रहा है तो हम अपने छोटे कारोबारियों को खत्म न करें.'
उन्होंने कहा कि
अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित दुनिया के कई देशों में इसके खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं और वहां की सरकारों ने छोटे कारोबारियों के हितों की सुरक्षा के लिए कदम उठाये हैं लेकिन संप्रग सरकार एकदम उलट फैसला करने पर आमादा है. साथ ही सवाल किया कि कहीं एफडीआई का फैसला भ्रष्टाचार की उपज तो नहीं है. निचले सदन में मत विभाजन के प्रावधान वाले नियम-184 के तहत एफडीआई मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सुषमा ने कहा, ‘पूरी दुनिया का अनुभव है कि जहां-जहां पर भी मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई आया, खुदरा बाजार समाप्त हो गया. अमेरिका में ‘स्मॉल बिजनेस सैटरडे’ होता है और लोग हर हफ्ते शनिवार को छोटे दुकानदारों से खरीदारी करने जाते हैं. खुद राष्ट्रपति बराक ओबामा इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि एफडीआई पर बहस नयी नहीं है. राजग सरकार के समय में कभी कांग्रेस ने खुद इसका विरोध किया था. उन्होंने सदन में मौजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सवाल किया कि अब सोच क्यों बदल गयी और क्या बात है.
सुषमा ने कहा कि यूरोपीय संघ की संसद ने इस संबंध में एक घोषणापत्र पारित किया है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जहां कहीं भी कंपनियों ने कम दाम दिये, आंदोलन हुए. सुपर बाजारों के खिलाफ दुनिया के कई देशों में किसानों के आंदोलन हुए.
उन्होंने कहा कि अमेरिकी मीडिया की खबरों में आया कि वालमार्ट ने खुदरा बाजार में प्रवेश करने के लिए कुछ देशों में कथित रिश्वत दी है.
उन्होंने सवाल किया, ‘कहीं ये निर्णय भ्रष्टाचार में से तो नहीं निकला है?’
सुषमा ने कहा कि सरकार का दावा है कि एफडीआई के बाद 30 प्रतिशत उत्पाद छोटे और मंझोले उद्योगों से लेना होगा. लेकिन सबसे ज्यादा बेरोजगारी उत्पादन में आएगी क्योंकि जो छोटे उद्योग अभी शत प्रतिशत बेच रहे हैं, 30 प्रतिशत बेचने के बाद बाकी 70 प्रतिशत कहां ले जाएंगे. यानी सुपर स्टोर बाकी 70 प्रतिशत माल विदेश से आयात करेंगे और सबसे ज्यादा 90 प्रतिशत माल चीन से आएगा. चीन में कारखाने खुलेंगे, उसकी आमदनी बढ़ेगी और वहां रोजगार के अवसर पैदा होंगे. लेकिन भारत में विनिर्माण क्षेत्र खत्म हो जाएगा और 12 करोड़ घरों में अंधेरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार का यह भी दावा है कि इससे लोगों को सस्ती और अच्छी चीजें मिलेंगी. लेकिन अगर बाजार प्रतियोगी होगा तभी उपभोक्ता के हित में होगा. एकाधिकार वाला बाजार उपभोक्ता के हित में नहीं होता. बाजार जितना व्यापक होगा, उतना ही उपभोक्ता के लिए अच्छा है, सिमटे हुए बाजार से उसे कोई फायदा नहीं होता.
उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि एफडीआई किसानों के हित में है. किसान की फसल महंगी दर पर बिकेगी और उसे उसका पूरा दाम मिलेगा. लेकिन सुपर बजार चलाने वाली कंपनियां किसानों से सस्ते में उत्पाद खरीदती हैं. कर्मचारियों को कम वेतन देती हैं. अपने मुनाफे के साथ कोई समझौता नहीं करतीं.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार तर्क देती है कि मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई आने से बिचौलिया खत्म हो जाएगा. हमारे देश में एक क्षेत्र ऐसा है, जहां बिचौलिया नहीं है. गन्ना किसान अपना उत्पाद सीधे चीनी मिलों को बेच देते हैं. कोई बिचौलिया नहीं होता. लेकिन कितनी बार ऐसा हुआ कि अनुबंध के बाद भी चीनी मिल मालिक गन्ना लेने से मना कर देते हैं और भुगतान के लिए किसान मारा-मारा फिरता है.
सुषमा ने कहा कि सरकार दावा करती है कि एफडीआई आने से रोजगार के अवसर पैदा होंगे. वाणिज्य मंत्री (आनंद शर्मा) कहते हैं कि एफडीआई आने से 40 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे. वालमार्ट के पूरी दुनिया में 9826 स्टोर हैं और 21 लाख कर्मचारी वहां काम करते हैं. इस प्रकार प्रति स्टोर 214 कर्मचारी काम करते हैं. अगर मान लिया जाए कि केवल वालमार्ट के जरिए ही 40 लाख रोजगार के अवसर पैदा हों तो 18600 स्टोर खोलने पड़ेंगे. उन्होंने आगे तर्क दिया कि टेस्को के 92 कर्मचारी प्रति स्टोर के हिसाब से काम करते हैं. यदि सारे इस तरह के स्टोर भारत आयें तो 36 हजार से अधिक स्टोर चाहिए. कहा जा रहा है कि एफडीआई के तहत 53 शहरों में स्टोर खुलेंगे. इस हिसाब से एक शहर में 600 स्टोर खुल जाएंगे. हर चौराहे पर एक स्टोर बनेगा तब कहीं जाकर 40 लाख लोगों को रोजगार मिल पाएगा.
सुषमा ने कहा कि 2011 के इसी तरह के शीतकालीन सत्र में हूबहू निर्णय लिया था कि खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाया जाए. उस समय चारों ओर इस फैसले का विरोध हुआ था. सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे सपा बसपा ने भी विरोध किया था. विपक्ष ने तो खर इसका विरोध किया ही था.
उन्होंने कहा कि तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी दलों से कहा कि वह प्रधानमंत्री से बात कर उनकी राय से अवगत कराएंगे. फिर सर्वदलीय बैठक हुई और तय किया गया कि जब तक सभी संबद्ध पक्षों से बात नहीं हो जाती, एफडीआई पर फैसला नहीं होगा. मुखर्जी ने यह भी स्पष्ट किया था कि संबद्ध पक्ष कौन से होंगे. उनका कहना था कि संबद्ध पक्ष राजनीतिक दल और राज्यों के मुख्यमंत्री होंगे.
सुषमा ने कहा कि मुखर्जी जो उस समय नेता सदन भी थे, ने सदन में आकर वक्तव्य दिया था कि जब तक इस मुद्दे पर सभी संबद्ध पक्षों के साथ आम सहमति नहीं बन जाती, एफडीआई पर फैसला स्थगित किया जाता है.
उन्होंने कहा, ‘दु:ख की बात यह है कि आम सहमति बनाना तो दूर, सरकार ने आम सहमति बनाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया. बैठक बुलाना तो दूर सरकार ने न तो कोई पत्राचार किया और न ही किसी से फोन पर बात की.’ सुषमा ने कहा कि एक दिन टेलीविजन पर खबरों में देखा कि कैबिनेट ने एफडीआई पर फैसला कर लिया है. हम अवाक रह गये. सरकार का कहना था कि हमने तो नीति ही बदल दी है. जब इसे लागू करने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया है तो परामर्श की जरूरत ही नहीं है.’
सुषमा ने कहा कि प्रधानमंत्री और सरकार को अमीरों के लिए नहीं बल्कि गरीबों के लिए लड़ना चाहिए. हम हर क्षेत्र में एफडीआई के खिलाफ नहीं हैं. बुनियादी ढांचा, पुल, नहर, सुरंग, विमानन आदि क्षेत्रों में एफडीआई आये, हमें दिक्कत नहीं है लेकिन 'दाल चावल बेचना हमें आता है. दाल चावल बेचने के लिए हमें विदेशी कंपनियों की जरूरत नहीं है. जब पूरा विश्व खुदरा एफडीआई को हटाने के बारे में विचार कर रहा है तो हम अपने छोटे कारोबारियों को खत्म न करें.'