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बरारी के टिल्हे से दानवीर कर्ण ने शुरू की थी सूर्योपासना

अंग प्रदेश के महान योद्धा दानवीर कर्ण ने जिस जगह (ऊंचे टिल्हे) से सूर्योपासना शुरू की थी, वह भूमि आज भी भागलपुर के मसकंद बरारी चंपानगर में विद्यमान है. इसके उत्तर की ओर चंपानदी बहती थी, जो त्रिमुहान घाट होते हुए गंगा नदी में मिलती है.
 कहा जाता है कि दानवीर कर्ण ने भगवान सूर्य को प्रसत्र करने के लिए व्रत रखा था और गंगा में स्नान कर इसी टिल्हे से भगवान भास्कर को पहला अघ्र्य
दिया था. कर्ण की उपासना से खुश होकर भगवान सूर्य ने उसे कवच कुंडल प्रदान किया था. इस ऊंचे टिल्हे से अब कोई अघ्र्य नहीं देता है, लेकिन इसके नीचे बहने वाली चंपा नदी के तट पर स्थानीय लोग छठ पूजा में भगवान भास्कर को अघ्र्य देते हैं.
क्या कहते हैं लोग
मसकंद बरारी के कालीदास, पृथ्वीराज नवल, कोकिल दास, अमित, राजकुमार, विनोद, चंदन, विक्की आदि बताते हैं कि हमारे पूर्वज बताते थे कि यह टिल्हा पहले बहुत बड़ा था. समय के साथ यह बाढ. व वर्षा की मार से धीरे-धीरे नीचे से कट रहा है. कहा जाता है कि टिल्हे के नीचे पश्‍चिमी किनारे पर एक बहुत बड़ा तुलसी चौरा था, जो मिट्टी के नीचे दब गया है. उसके बगल में टिल्हे के निचले हिस्से में पत्थर का एक कमलगट्टा भी है. वहां पर काफी घना जंगल झाड़ी है, जिसे टिल्हे के ऊपर से आसानी से देखना मुश्किल है. आज भी टिल्हे की तराई से देवी-देवताओं की मूर्तियां निकलती रहती हैं, जिन्हें लोग मंदिरों में स्थापित कर पूजा करते हैं. अब तक मिली मूर्तियों में विष्णु, गणेश, यक्ष, सर्प, छोटे-छोटे शिवलिंग आदि हैं. टिल्हे की खाई में ब.डे-ब.डे विषैले सर्प निकलते रहते हैं जिन्हें लोग मारते नहीं हैं.