आश्रि्वन कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानि सोमवार को माताएं निर्जल व्रत रख
पुत्रों के दीर्घायु की कामना करेंगी। यह व्रत जिउतिया पर्व के नाम से जाना जाता है। जिसे जीवत्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। इस पर्व पर महिलाओं
द्वारा पूजन-अर्चन कर प्रचलित पौराणिक कथाओं का श्रवण कर पूजन किया जाता
है। इस मौके पर पुत्र के गले में जूत बांध कर दीर्घायु व यशस्वी होने की
कामना की जाएगी। पर्व पर भगवान नीलकंठ की आराधना करने की परम्परा है।
आश्रि्वन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताओं द्वारा पुत्र के दीर्घायु के लिए किया जाना वाला निराजल जीवित्पुत्रिका व्रत को परम्परागत ढंग से रखा जायेगा। इस मौके पर माताएं अष्टमी लगते ही निर्जल व्रत का अनुष्ठान शुरू कर दिन भर कथा का महात्म्य सुनने के बाद पुत्र के दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना करती हैं। व्रत की महत्ता वाले बरियार के पौधे व जीवित्पुत्रिका का पूजन किया जाता है। चना, शतंजा, पुष्प आदि चढ़ाने के पश्चात विशेष प्रकार के धागे से बने जीवतिया का पूजन कर पुत्रों के दीर्घायु की कामना कर नीलकंठ की आराधना की परम्परा जाती है।
आश्रि्वन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताओं द्वारा पुत्र के दीर्घायु के लिए किया जाना वाला निराजल जीवित्पुत्रिका व्रत को परम्परागत ढंग से रखा जायेगा। इस मौके पर माताएं अष्टमी लगते ही निर्जल व्रत का अनुष्ठान शुरू कर दिन भर कथा का महात्म्य सुनने के बाद पुत्र के दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना करती हैं। व्रत की महत्ता वाले बरियार के पौधे व जीवित्पुत्रिका का पूजन किया जाता है। चना, शतंजा, पुष्प आदि चढ़ाने के पश्चात विशेष प्रकार के धागे से बने जीवतिया का पूजन कर पुत्रों के दीर्घायु की कामना कर नीलकंठ की आराधना की परम्परा जाती है।