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दूर-दूर तक फैलेगी मंजूषा कला की खुश्बू

अंग क्षेत्र की मशहूर मंजूषा कला की कृति अब दूर-दूर तक फैलेगी। इसकी खुश्बू अब कलाकारों की तूलिका (ब्रश) से बाहर निकल रही है। बांका को जोड़ने वाली सभी पुलों पर लगे पीलरों पर मंजूषा पेंटिंग लगाई जाएगी। अभी प्रयोग के तौर पर शहरी क्षेत्र में टाउन हॉल के समीप 22 पीलरों पर कलाकार मंजूषा पेंटिंग में रंग भर रहे हैं। इससे बांका आने वाले लोगों के बीच इसका व्यापक प्रचार हो सकेगा। इसका फीडबैक बढि़या होने पर चांदन के 580 पीलरों पर इसे स्थान दिलाया जाएगा।
सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखने के लिए यह प्रयास दिशा ग्रामीण विकास मंच ने किया है। मंच के सचिव मनोज पांडेय कहते हैं कि मंजूषा अंग क्षेत्र की कला है। नाबार्ड के सहयोग से इसे जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है। 2005 के पहले लोग इसे जानते तक नहीं थे। नाबार्ड के डीडीएम रहे नवीन कुमार राय ने इस कला को आगे बढ़ाने में काफी सहयोग दिया है।
भागलपुर में तो यह अब तक बंद कमरे में ही प्रदर्शित रहा है। डीएम आवास और कक्ष, डीआरडीए मीटिंग हॉल, कमिश्नर कक्ष में मंजूषा कला की पेंटिंग लगी है। बांका प्रशासन ने इसे अपने जिले में कमरे से बाहर लगाया है। सबसे पहले पूर्व जिला पदाधिकारी आदेश तितरमारे ने समाहरणालय परिसर में मंजूषा को उचित स्थान दिलाया।
मंजूषा को बढ़ावा देने में लगी हैं महिलाएं
दिशा ग्रामीण विकास मंच के सचिव कहते हैं कि आदमपुर की उलुपी झा, पकरा (नवगछिया) की उषा देवी व बबीता देवी, सिमरा (नवगछिया) की रंजना देवी और बासुदेवपुर शाहकुंड की किरण देवी ने बांका के पुलों पर अपनी हाथ की कला को दिखाया है। पहले ये महिलाएं पीलरों पर आउटलाइन बनाती है। उसके बाद उस पर रंग भरा जा रहा है। मंजूषा में तीन ही रंग का प्रयोग होता है हरा, पीला व गुलाबी। भागलपुर में कई संगठन मंजूषा कला को प्रचारित करने के लिए लगी है। लेकिन इस जिले में प्रचार का उचित प्लेटफार्म नहीं मिला है जब कि बांका में डिस्प्ले मिलने लगा है। यह कार्य अगर विक्रमशिला सेतु, लोहिया पुल, चम्पानाला पुल आदि पर भी किया जाए तो निश्चित रूप से इसे प्रोत्साहन मिलेगा। आम तौर पर शहरों को जोड़ने वाली पुलों के पीलरों पर कंडोम, सेक्स, शिक्षण संस्थान, मंजन आदि का प्रचार लिखा होता है, जो दूर दराज से आने वालों को सांस्कृतिक चेतना का अहसास नहीं करा पाता है। इसके विपरीत मंजूषा की कला क्षेत्र विशेष का भाव प्रकट कराता है। मधुबनी पेंटिंग को बढ़ावा देने के लिए पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने बरौनी से खुलने वाली जयंती जनता एक्सप्रेस के सभी बोगियों में इसकी पेंटिंग लगवायी थी। इसके विपरीत यहां के राजनीतिक दिग्गजों ने इसके प्रति कभी रूचि नहीं दिखाई। जबकि यहां से मुख्यमंत्री और दो-दो विधानसभा अंध्यक्ष जुड़े रहे हैं।
मधुबनी व मंजूषा कला में क्या है खास
मधुबनी पेंटिंग राम और सीता के कोहवर पर आधारित है। जब कि मंजूषा अंग क्षेत्र का लोकपर्व बिहुला-विषहरी पर आधारित है। आज मंजूषा कला के सहारे कई परिवारों की जीविका चलती है। मंच के सचिव कहते हैं कि पांच हजार से 20 हजार रुपये तक की आय इस कला के आधार पर हो रही है।

क्या कहते हैं पदाधिकारी
दीपक आनंद, जिला पदाधिकारी, बांका कहते हैं कि '' अभी टाउन हॉल के समीप मंजूषा पेंटिंग लग रही है। इसका फीडबैक बढि़या मिलने पर चांदन पुल और नए पार्क में भी लगाया जाएगा ''