डॉ. संजीव कुमार सिंह का लगातार चौथी बार एमएलसी कुर्सी पर कब्जा रहा बरकरार
34 साल तक पिता शारदा प्रसाद सिंह भी थे एमएलसी
अगर कहा जाय कि इस सीट पर 1974 से ही इनके परिवार का कब्जा रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बता दें कि 1974 से 2008 तक उनके पिता शारदा प्रसाद सिंह भी इसी क्षेत्र से एमएलसी रहे। 2008 में उनका निधन होने पर इस सीट के लिए हुए चुनाव में संजीव सिंह ने पहली बार जीत दर्ज की थी। तब से लेकर इस बार के चुनाव तक वह जीतते ही रहे हैं। इसकी कई वजहें बताई जा रही हैं। इस बार के चुनाव में वह महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरे तो भाजपा ने भी अपना प्रत्याशी उतार दिया। लेकिन लगातार तीन बार से जीत रहे और सत्ताधारी दल के प्रत्याशी के खिलाफ भाजपा के उम्मीदवार मजबूत साबित नहीं हुए। स्थिति यह रही कि वे अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। बड़े नामों में टीएमबीयू के डीएसडब्ल्यू प्रो. योगेन्द्र ने भी निर्दलीय दावेदारी पेश की थी। उन्होंने दो बार डीएसडब्ल्यू रहते हुए विवि में सुधार के कई काम किए थे। लेकिन इनमें से ज्यादातर काम छात्रों से जुड़े थे, जो शिक्षक मतदाताओं वाले इस चुनाव में उनके काम नहीं आए।
व्यक्तिगत प्रभाव की बात करें तो कोसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में जो 14 जिले आते हैं, उनमें से 4 जिलों भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया और मधेपुरा में यूनिवर्सिटी हैं। संजीव सिंह इनमें भागलपुर विवि के सिंडिकेट तो पूर्णिया विवि के सीनेट सदस्य हैं। सरकार जो विश्वविद्यालयों को वेतन, पेंशन देने के साथ अन्य वित्तीय मदद करती है, उसके उपयोग के लिए बने नियमों और विवि में लिए जा रहे निर्णयों में सरकार के नियमों के पालन पर वह सीधे रूप में नजर रखते हैं। सिर्फ टीएमबीयू की बात करें तो यहां गेस्ट फैकल्टी की बहाली से लेकर इनके सेवा विस्तार, नियमित शिक्षकों की नियुक्ति की जरूरतों को वह सरकार के स्तर पर लगातार उठाते रहे हैं। पूर्व के प्रभारी कुलपतियों ने जब भी नियमों का उल्लंघन कर खर्च करना चाहा, सिंडिकेट सदस्य के रूप में उन्होंने न सिर्फ आपत्ति की बल्कि निर्णय भी वापस कराया। जब भी बिहार बोर्ड ने वित्त रहित इंटर कॉलेजों की मान्यता खत्म की, संजीव सिंह ने विधान परिषद में इस पर सवाल खड़े किए। स्कूलों में शिक्षकों के नियोजन के मामले भी उठाते रहे हैं। ऐसे लगातार मामलों की वजह से शिक्षकों में उनकी पकड़ मजबूत होती गई।